दरभंगा। जाले में वट सावित्री पर्व का आयोजन आस्था व श्रद्धा के साथ किया गया। वट सावित्री पर्व को मिथिला में बरसाइत के नाम से मनाया जाता है। बरगद के पेड़ के नीचे वट सावित्री पूजन पर सुहागिनें 16 श्रृंगार करके बरगद की पूजा कर फेरें लगाती हैं ताकि उनके पति दीर्घायु हों।परिवार के सभी सदस्य निरोगी रहें।
आरोग्य, ऐश्वर्य बना रहें। प्यार, श्रद्धा और समर्पण का यह भाव इस देश में सच्चे और पवित्र प्रेम की कहानी कहता है। यदि धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से न समझ पाये तो बस इतना समझ लीजिये की ये उत्सव है प्रकृति के पूजन का।पेड़ पौधों के प्रति उनके अनगिनत उपकारों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का पूर्वजों की परम्परागत देन है। हम ज्यादा से ज्यादा बड़, पीपल के पेड़ लगाये ताकि आने वाली पीढ़ी का बचपन भी किसी बड़ की छाँव में खेल सके।वट सावित्री पर उनका पूजन कर सके।अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर सकें।
धार्मिक मान्यता के अनुसार मूलं ब्रह्मा त्वचा विष्णुः शाखा रुद्र महेश्वर: पत्रे-पत्रे तु देवानां वृक्षराज नमोस्तुते अर्थ हे वृक्षों में श्रेष्ठ ! हम तुम्हें नमन करते है।तुम्हारे मूल (जड़) मे ब्रह्मा जी निवास करते हैं और छाल में विष्णु भगवान का निवास है , शाखाओं मे देवाधिदेव रुद्र (शिव जी) तथा पत्ते पत्ते मे विभिन्न देवगण निवास करते हैं।मानस में लिखा है तहं पुनि संभु समुझिपन आसन। बैठे वटतर, करि कमलासन।। अर्थात कई सगुण साधकों, ऋषियों यहां तक कि देवताओं ने भी वटवृक्ष में भगवान विष्णु की उपस्थिति के दर्शन किए हैं।
हिन्दू धर्मानुसार पांच वटवृक्षों का महत्व अधिक है।अक्षयवट, पंचवट, वंशीवट, गयावट और सिद्धवट…इनकी प्राचीनता के बारे में कोई नहीं जानता। संसार में उक्त पांच वटों को पवित्र वट की श्रेणी में रखा गया है। प्रयाग में अक्षयवट, नासिक में पंचवट, वृंदावन में वंशीवट, गया में गयावट और उज्जैन में पवित्र सिद्धवट है।बरसाइत पर्व मना रहे मीना देवी,अनुपमा, अनुप्रिया एवं पूनम देवी ने बताया कि इस पर्व में सावित्री सत्यवान की कथा सुनी जाती है वहीं पांच प्रकार के फल फूल मिष्ठान्न चढाकर पूजा अर्चना की गई है।

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