“घना अंधेरा था…” पति छोड़ गया, अब हर महीने कमाती हैं ₹6000 – सलाम है DARBHANGA की जीविका दीदी को… सबीला की कहानी सबको रुला देगी!मछलीपालन से बदली ज़िंदगी! दरभंगा की इन 7 दीदियों की कहानी पढ़कर आपकी आंखें नम हो जाएंगी।7 महिलाएं, 1 तालाब और हजारों सपने – जीविका दीदियों की मछलीपालन क्रांति@देशज टाइम्स, दरभंगा।
दरभंगा की जीविका दीदियों की मछलीपालन में उड़ान, बनीं आत्मनिर्भरता की मिसाल
दरभंगा, देशज टाइम्स | दरभंगा जिला, जो अब तक पान, पोखर और मखाना के लिए प्रसिद्ध रहा है, अब मछलीपालन के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी के लिए राज्य भर में मिसाल बनता जा रहा है।
बघेला पंचायत, अलीनगर प्रखंड की बघेला मत्स्य उत्पादक समूह से जुड़ी सात जीविका दीदियां न केवल मछलीपालन से आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो रही हैं, बल्कि समाज में महिला सशक्तिकरण का नया अध्याय भी रच रही हैं।
डीपीएम ऋचा गार्गी ने की सराहना, मछली हार्वेस्टिंग में लिया भाग
शुक्रवार को जीविका की जिला परियोजना प्रबंधक (DPM) डॉ. ऋचा गार्गी ने स्वयं बघेला समूह की मछली हार्वेस्टिंग प्रक्रिया में भाग लिया। उन्होंने तालाब में तैयार मछलियों का निरीक्षण किया और तौल, ग्रेडिंग, पैकिंग से लेकर बाजार भेजने तक की पूरी सप्लाई चेन का अवलोकन किया।
डीपीएम ने दीदियों को दी तकनीकी सलाह और भविष्य की योजनाओं पर चर्चा की। उन्होंने कहा:
“मछलीपालन अब जीविका दीदियों की आय का प्रभावी साधन बन गया है। आगे चलकर इन्हें बतख पालन और मत्स्य बीज उत्पादन जैसे उन्नत कार्यों से जोड़ा जाएगा।”
सशक्त हो रही महिलाएं, हर माह ₹4,000 से ₹6,000 की कमाई
बघेला मत्स्य समूह की सदस्याओं ने बताया कि अब उन्हें मछलीपालन से मासिक ₹4,000 से ₹6,000 की आमदनी हो रही है। इस आय से वे बच्चों की पढ़ाई, घर की मरम्मत, और दैनिक खर्चों को आसानी से संभाल पा रही हैं।
जब अंधेरे में उजाला बनी ‘मत्स्य सखी’ की कहानी
सबीला खातून, जो इस समूह की मत्स्य सखी हैं, ने भावुक होकर कहा:
“पति ने तीन बच्चों के साथ छोड़ दिया था। कोई सहारा नहीं था। लेकिन जीविका से जुड़कर मत्स्य सखी बनने का मौका मिला। अब मैं खुद के पैरों पर खड़ी हूं और दूसरे महिलाओं को भी प्रेरित कर रही हूं।”
स्वरोजगार में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी
संचार प्रबंधक राजा सागर ने बताया कि:
“पहले मछलीपालन केवल पुरुषों का काम माना जाता था, लेकिन आज जीविका दीदियां इस सोच को तोड़ चुकी हैं। दरभंगा में महिलाएं स्वरोजगार की राह पर आगे बढ़ रही हैं, और मछलीपालन इस बदलाव का सशक्त उदाहरण है।”
प्रशिक्षण और संसाधनों से हो रहा सशक्तिकरण
पशुधन प्रबंधक श्रेया शर्मा ने बताया कि: मत्स्य सखी की नियुक्ति, जो तालाब की देखभाल, दवा छिड़काव और रिकार्ड संधारण का कार्य करती हैं। बोरबेल, जाल, फिश सीड, पीएच मीटर, दवाइयों और अन्य संसाधनों की निःशुल्क उपलब्धता होगी।
फिशरीज एक्सपर्ट द्वारा निरंतर प्रशिक्षण
इन सब प्रयासों से दीदियों को लंबे समय तक स्थायी और लाभकारी मछलीपालन का अवसर मिला है।
कार्यक्रम में शामिल प्रमुख अधिकारी
डीपीएम डॉ. ऋचा गार्गी, पशुधन प्रबंधक श्रेया शर्मा, बीपीएम राजेश कुमार, क्षेत्रीय समन्वयक उदय प्रताप सिंह, शंकर दयाल यादव व अन्य जीविका कर्मी शामिल थे।