Darbhanga News: काशी की विद्वता और मिथिला का ज्ञान, संस्कृत विश्वविद्यालय में हुआ महासंगम, वेदों के रहस्य पर हुई चर्चा
Darbhanga News: ज्ञान की दो महान धाराएं, एक काशी से और दूसरी मिथिला की अपनी, जब दरभंगा की धरती पर मिलीं तो वैदिक ऋचाओं के गहरे अर्थों पर से पर्दा उठना ही था। कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के भव्य दरबार हॉल में कुछ ऐसा ही नज़ारा दिखा, जहां तीन दिवसीय अखिल भारतीय वैदिक संगोष्ठी का उत्सव जैसे माहौल में शानदार आगाज़ हुआ। विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर दर्शन विभाग और महर्षि सांदीपनि वेद विद्यापीठ के संयुक्त प्रयास से आयोजित इस संगोष्ठी का विषय “वैदिक मन्त्राणां दार्शनिकम् विश्लेषणम्” रखा गया, जिसने देश के कोने-कोने से विद्वानों को एक मंच पर ला दिया।
Darbhanga News: वेदों को बताया भारतीय ज्ञान-परंपरा का मूल स्रोत
कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. लक्ष्मीनिवास पाण्डेय ने अपने उद्बोधन में वेदों को भारतीय ज्ञान-परंपरा का अटूट और मूल स्रोत बताया। उन्होंने कहा कि वेद ‘अपौरुषेय’ हैं और यह अद्वितीय है कि इतने विशाल ज्ञान के संकलनकर्ता व्यासजी ने कहीं भी अपना नाम नहीं दिया, जो निःस्वार्थ परंपरा का अद्भुत उदाहरण है। उन्होंने पुरुषसूक्त में वर्णित विराट पुरुष की अवधारणा को आज के 140 करोड़ भारतीयों के ‘राष्ट्रपुरुष’ के रूप में देखने का आह्वान किया। कुलपति ने इस बात पर भी जोर दिया कि प्राचीन काल में गार्गी और मैत्रेयी जैसी विदुषियों की वेदाध्ययन और शास्त्रार्थ में महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
पद्मश्री से सम्मानित और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. अभिराज राजेन्द्र मिश्र ने मिथिला की धरती का वैदिक काल से संबंध स्थापित करते हुए कहा कि यह भूमि केवल ज्ञान की नहीं, बल्कि विमर्श की भी रही है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। उन्होंने विदुषी गार्गी द्वारा इसी नगर में किए गए शास्त्रार्थ का स्मरण कराया और गौतम, अष्टावक्र जैसे मनीषियों की इस भूमि से जुड़ी परंपरा को रेखांकित किया।
काशी के विद्वानों ने रखे अपने विचार
मुख्य अतिथि के रूप में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) के संस्कृत विद्या धर्मविज्ञान संकाय के पूर्व संकायाध्यक्ष प्रो. कृष्णकान्त शर्मा ने श्रुति और स्मृति के बीच किसी भी विरोध की स्थिति में श्रुति को ही प्रामाणिक मानने पर जोर दिया। उन्होंने वेद के चार प्रमुख विभागों—मन्त्र, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद—का सारगर्भित परिचय दिया। उन्होंने पुरुषसूक्त की दार्शनिक व्याख्या करते हुए स्पष्ट किया कि इसमें किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं है, बल्कि यह सम्पूर्ण समाज की एक समन्वित और सामंजस्यपूर्ण संरचना का प्रतीक है। हर एक वैदिक मंत्र अपने आप में गूढ़ अर्थ समेटे हुए है।
वहीं, विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. उमेश शर्मा ने ‘वेद’ शब्द की व्युत्पत्ति पर प्रकाश डालते हुए वैदिक परंपरा में वेदांत और व्याकरण की श्रेष्ठता को समझाया। उन्होंने मंत्रार्थ, सिद्धि-प्रक्रिया और अद्वैत-दृष्टि के मूल तत्वों की गहराई से व्याख्या की, जिसे सुनकर सभागार में मौजूद सभी श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए। बिहार की संस्कृति और ज्ञान की यह परंपरा सदियों पुरानी है। बिहार की लगातार ख़बरें यहां पढ़ें।
त्याग ही देवत्व प्राप्ति का मार्ग
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के वेद विज्ञान केंद्र के संस्थापक एवं पूर्व वेदविभागाध्यक्ष प्रो. उपेन्द्र त्रिपाठी ने कहा कि सभी पदार्थों में ईश्वर को देखना ही वेद का मुख्य उपदेश है। उन्होंने मीमांसा दर्शन में प्रतिपादित ‘अपूर्व सिद्धान्त’ और यज्ञ के वास्तविक उद्देश्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि चित्तवृत्ति-शोधन के तीन आयाम—आध्यात्मिक, आधिभौतिक एवं आधिदैविक—हैं और ‘त्याग’ ही देवत्व की प्राप्ति का सच्चा मार्ग है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। कार्यक्रम का शुभारंभ विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. ब्रजेशपति त्रिपाठी द्वारा अतिथियों के स्वागत से हुआ, जबकि विषय-प्रवर्तन दर्शन विभागाध्यक्ष डॉ. धीरज कुमार पाण्डेय ने किया।
दूसरे सत्र में भी जारी रहा मंथन
संगोष्ठी का द्वितीय सत्र भी ज्ञान और विमर्श से भरपूर रहा, जिसकी अध्यक्षता संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के पूर्व कुलपति प्रो. रामकिशोर मिश्र ने की। इस सत्र में कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. उपेन्द्र झा और प्रो. शशिनाथ झा ने वैदिक साहित्य, दर्शन एवं तत्त्वमीमांसा के विभिन्न आयामों पर अपने महत्वपूर्ण शोधपूर्ण व्याख्यान प्रस्तुत किए। साहित्य विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. लक्ष्मीनाथ झा ने भी वैदिक व्याकरण और मंत्रार्थ का गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया।
इस सत्र में बाहरी विद्वानों ने भी अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए, जिनमें वैदिक मन्त्रार्थ, मीमांसा-दर्शन, और वेद की वैज्ञानिक व्याख्या जैसे विषय प्रमुख रहे। कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. साधना शर्मा और डॉ. सविता आर्या ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सुधीर कुमार और डॉ. सन्तोष तिवारी द्वारा प्रस्तुत किया गया। इस भव्य आयोजन में प्रो. दयानाथ झा, डॉ. पवन कुमार झा, प्रो. दिलीप कुमार झा सहित अनेक विद्वान, शोधार्थी और बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1, जो आपको हर खबर से अपडेट रखता है।


