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17 अगस्त, 2024
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खिरोई और बागमती लौट आओ फिर से धरा पर– 40 साल, पहली बार, ऐसी ‘रुसवाई’- ‘रुख’ मोड़ लिया कैसा -किसानी छोड़ देंगे ‘हम’

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स्पेशल स्टोरी- आंचल कुमारी सावन-भादो में सूखी खिरोई नदी! किसान बोले – 40 साल में पहली बार ऐसी हालत| धान का कटोरा इलाका भी प्यासा! खेत सूख रहे, तालाबों में झांक रही मिट्टी सावन में नाले की तरह बह रही नदी! ग्रामीण बोले – आने वाले दिनों में बड़ी त्रासदी तय।@कमतौल-दरभंगा, देशज टाइम्स।

खिरोई बागमती सूखने के कगार पर

चालीस साल में पहली बार! खिरोई और बागमती नदी खुद जल के लिए तरस रही धान की खेती पर मंडरा रहा संकट! किसान बोले – अब वैकल्पिक फसलों की ओर मुड़ना पड़े खिरोई नदी सूखी तो गांव प्यासे! चापाकल और टैंकर पर टिकी लोगों की उम्मीदें। धान का कटोरा बन जाएगा सूखा इलाका? बारिश नहीं हुई तो किसान छोड़ेंगे धान की खेती@कमतौल-दरभंगा, देशज टाइम्स।

भादो में भी नाले जैसी बह रही खिरोई नदी

दरभंगा जिले के कमतौल प्रखंड से होकर बहने वाली अधवारा समूह की खिरोई नदी ( अधवारा समूह – विकिपीडिया ) इस वर्ष भादो के महीने में भी नाले जैसी स्थिति में बह रही है।
सामान्यतः सावन और भादो में यह नदी उफान पर रहती है, लेकिन इस बार पानी के अभाव ने ग्रामीणों और किसानों को चिंतित कर दिया है।

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सूखे की आशंका और भविष्य का जलसंकट

आषाढ़ और सावन के बाद भादो में भी पर्याप्त बारिश नहीं होने से इलाके में सुखाड़ जैसी स्थिति बन गई है।

खेतों में पानी नहीं भर पाने से धान की खेती प्रभावित हो रही है। छोटे-छोटे गड्ढे और तालाब सूखने लगे हैं।नदी किनारे बसे गांवों के मवेशी और आमलोग पानी के संकट से जूझ रहे हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि आने वाले दिनों में गंभीर जलसंकट का सामना करना पड़ सकता है।

विशेषज्ञों की राय, प्रो. श्रीश चंद्र चौधरी भी चिंतित

आईआईटी मद्रास से सेवानिवृत्त प्रो. श्रीश चंद्र चौधरी ने बताया कि केवल खिरोई नदी ही नहीं, बल्कि केवटी प्रखंड की पिंडारुछ पंचायत से गुजरने वाली बागमती (कमला) नदी भी इस बार पानी की कमी से जूझ रही है।
उनका कहना है:

“सावन-भादो में उफान मारने वाली नदियां इस बार खुद अपनी प्यास बुझाने के लिए इंद्रदेव से गुहार लगा रही हैं।”

ग्रामीणों का अनुभव, पहली बार कर रहा महसूस

ग्रामीण प्रदीपकांत चौधरी, रवीश कुमार, सरपंच मिथिलेश मिश्र सहित कई लोगों का कहना है कि पिछले चार-पांच दशकों में पहली बार ऐसी स्थिति देखने को मिल रही है।

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भादो में जहां नदी के पानी का शोर गूंजना चाहिए, वहां अब घास और झाड़-झंखार उग आए हैं। दो-तीन सालों से बारिश में कमी दर्ज की जा रही है। भूमिगत जलस्तर नीचे जाने से पीने का पानी तक संकटग्रस्त हो गया है।

स्थानीय आवाज़, जो दर्द की टीस को सालता है

अहियारी के सुशील कुमार ठाकुर कहते हैं:

“सरकारी आंकड़े कुछ भी कहें, लेकिन हकीकत यह है कि किसान अब धान छोड़कर दूसरी फसलों की ओर मुड़ने को मजबूर हैं।”

आर्थिक और सामाजिक असर

गर्मी शुरू होते ही लोगों को पीने के पानी के लिए संघर्ष करना पड़ता है। साधन-संपन्न परिवार पानी खरीदकर पी लेते हैं। अधिकांश ग्रामीण दूसरे के चापाकल या टैंकर पर निर्भर हो जाते हैं। तालाब और नदियों के सूखने से सांस्कृतिक व धार्मिक गतिविधियां भी प्रभावित हो रही हैं।

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धान के कटोरे में घट रही खेती

अहियारी, ढढ़िया और मुरैठा समेत आसपास के गांवों के सुशील कुमार ठाकुर, राघवेंद्र ठाकुर, प्रेम प्रकाश यादव, शैलेंद्र मिश्रा सहित कई लोगों ने बताया कि यह इलाका पहले धान का कटोरा कहलाता था।

लेकिन अब: समय पर बारिश नहीं होने से धान की खेती बुरी तरह प्रभावित है। सरकारी नलकूप निष्क्रिय पड़े हैं। निजी बोरिंग से सिंचाई करना किसानों के लिए महंगा सौदा साबित हो रहा है। किसान अब धीरे-धीरे धान की जगह वैकल्पिक फसलों की ओर झुकने लगे हैं।

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव?

विशेषज्ञ मानते हैं कि यह स्थिति जलवायु परिवर्तन ( जलवायु परिवर्तन – विकिपीडिया ) का नतीजा हो सकती है।

बारिश के पैटर्न में बदलाव, भूमिगत जलस्तर का गिरना, मानवजनित गतिविधियां और वनों की कटाई, ये सभी कारक मिलकर भविष्य में और भी गंभीर जल संकट की ओर इशारा करते हैं।

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