आंचल कुमारी, कमतौल, दरभंगा । सावन जैसे बारिश के मौसम में भी खिरोई नदी का नाले की तरह बहना और दर्जनों पोखरों का सूख जाना इलाके में भयानक सूखा (drought situation) की चेतावनी दे रहा है। सावन के महीने में भी नदी, तालाब और पोखर पानी के लिए तरस रहे हैं, जिससे कृषि, मत्स्य पालन और जल जीवन सभी प्रभावित हो रहे हैं।
चार दशक में पहली बार दिखा खिरोई नदी का ऐसा रूप
प्रगतिशील किसानों धीरेन्द्र कुमार, नरेंद्र कुमार सिंह, अनिल कुमार सिंह और स्नेही सिंह ने बताया कि उन्होंने पिछले 40 वर्षों में कभी खिरोई नदी को इतना सूखा नहीं देखा। सावन में उफनने वाली नदी अब एक संकरे नाले की तरह बह रही है।
तालाब और गड्ढों में भी नहीं बचा पानी
क्षेत्र के सत्ती पोखर, जोकरहिया, सेठजी पोखर, महाराजी पोखर जैसे दर्जनों तालाब व पोखर सूख चुके हैं। इससे देशी मछलियों की प्रजाति विलुप्ति की ओर है और मछुआरों की आजीविका पर गहरा संकट है।
खेतों में फटी दरारें, नहीं हो पा रही धान की रोपनी
लगातार बारिश नहीं होने से खेतों में दरारें पड़ गई हैं। किसान पम्पसेट से रोपनी शुरू तो कर रहे हैं, पर मौसम की अनिश्चितता उन्हें सशंकित कर रही है। यदि दो-तीन दिन और बारिश नहीं हुई, तो धान की फसल पूरी तरह चौपट हो जाएगी।
मखाना और सब्जियों की खेती भी प्रभावित
अनावृष्टि (low rainfall) की स्थिति ने केवल धान ही नहीं, मखाना और मौसमी सब्जियों की खेती को भी नुकसान पहुंचाया है। किसानों की उत्पादन लागत तो बढ़ी है, लेकिन उपज घटने से आय में गिरावट तय है।
शिक्षाविद और ग्रामीणों ने जताई चिंता
प्रो. श्रीश चंद्र चौधरी ने कहा कि पिछले 50 वर्षों में सावन में नदी-तालाब का इतना सूखा रूप नहीं देखा गया। गांवों के बुजुर्ग किसानों और ग्रामीणों ने बताया कि पांच साल पहले तक यहां बाढ़ की स्थिति बनती थी, लेकिन अब चापाकल तक सूखने लगे हैं, जिससे पीने के पानी की भी किल्लत हो रही है।