लम्फी रोग से आक्रांत पशुओं को इलाज के कारगर इलाज को लेकर पशुपालक दर व दर भटक रहे हैं। कुकुरमुत्ते की तरह गांव-गांव में फैले झोलाछाप चिकित्सक इस रोग को अच्छी तरह समझ भी नहीं पा रहे हैं।
प्रखंड क्षेत्र के गररी गांव के पशुपालक मो. हसनैन, घमाद के अजय पासवान, काजी-बहेड़ा के राजू कामती और एवम कुमार ने देशज टाइम्स को बताया कि दुधारू पशुओं के शरीर पहले चकत्ता हो गया फिर धीरे-धीरे वह गिल्टी बनने लगा।
पशु अस्पताल दूर होने की वजह से आक्रांत पशुओं को वहां इलाज के लिए ले जाना असंभव है। वहीं, सरकारी भ्रमणशील पशु चिकित्सक का कोई अता-पता नहीं है।
बताया कि प्रखंड में दो पशु चिकित्सक की जगह एक पशुचिकित्सक पदस्थापित हैं, जिन्हें वाहन की कोई सुविधा नहीं रहने से महिला पशु चिकित्सक से क्षेत्र का भ्रमण किया जाना संभव नहीं है।
पदस्थापित भ्रमणशील पशु चिकित्सक डॉ. शालु पाठक ने बताया कि उन्हें आक्रांत पशुओं की सूचना है, उनकी ओर से पशुपालकों को सलाह दी जा रही है सरकारी स्तर पर इस रोग की दवाएं नहीं सप्लाई है।
उन्होंने बताया कि इस रोग का इलाज लक्षणात्मक होता है, साफ-सफाई पर ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए। पीड़ित पशु को नीम अथवा शरीफा का पत्ता उसके निवास स्थल पर रखा
जाए, जिससे संक्रमित करने वाला बैक्टेरिया मर सके, आक्रांत पशुओं को टीका नहीं दिया जाता है, बताया कि उन्होंने इसकी सूचना जिला पशु चिकित्सा पदाधिकारी को दे दी है।