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8 जनवरी, 2024
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दरभंगिया जोश से लबरेज़, शिक्षा की अलख जगाने वाला हीरो, पुरे गांव में सिर्फ इंटर पास, अब BPSC Tre-3 परीक्षा में…गज़ब का डेडिकेशन है

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दरभंगा। आज़ादी के सात दशकों बाद भी अगर किसी गांव से पहली बार कोई युवा सरकारी नौकरी हासिल करता है, तो यह न सिर्फ उसके परिवार बल्कि पूरे गांव के लिए गर्व का क्षण बन जाता है। हायाघाट प्रखंड के श्रीरामपुर पंचायत अंतर्गत परमार मुसहरी गांव के मंजय लाल सदा ने ऐसा कर दिखाया। उन्होंने BPSC TRE 3 परीक्षा पास कर शिक्षक बनने का सपना साकार किया और गांव के पहले सरकारी कर्मचारी बनने जा रहे हैं।


शिक्षा से वंचित परमार मुसहरी गांव का हाल

  • गांव में शिक्षा का अभाव:
    परमार मुसहरी गांव की स्थिति बेहद चिंताजनक है। यहां आज तक कोई भी मैट्रिक पास नहीं कर सका था।

    • गांव की आबादी: लगभग 600 लोग।
    • शिक्षा की स्थिति: बच्चों को 5वीं या 7वीं तक पढ़ने के बाद मजदूरी के लिए भेज दिया जाता है।
    • महादलित बाहुल्य: गांव में 50 घरों में अधिकांश मुसहर महादलित समाज के लोग रहते हैं।
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मंजय लाल की प्रेरक कहानी

  1. पढ़ाई का संघर्ष:
    मंजय के पिता ने मजदूरी कर बड़ी मुश्किल से उन्हें पढ़ाई का अवसर दिया।

    • 2018: मैट्रिक पास।
    • 2020: 12वीं पूरी।
    • डीएलएड (शिक्षक प्रशिक्षण): माधोपट्टी से किया।
  2. परिवार और गांव के लिए प्रेरणा:
    मंजय बताते हैं कि उनकी सफलता से गांव के अन्य युवाओं को प्रेरणा मिलेगी। उनका सपना है कि गांव के बच्चे पढ़ाई की अहमियत समझें।
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गांव में शिक्षा का अभाव क्यों?

  • गरीबी और संसाधनों की कमी।
  • बच्चों को पढ़ाने के बजाय मजदूरी में लगा दिया जाता है।
  • शिक्षा के लिए कोई बुनियादी ढांचा या माहौल नहीं।

नए दौर की उम्मीद

मंजय लाल सदा की सफलता न सिर्फ उनके परिवार बल्कि पूरे गांव के लिए नई उम्मीद लेकर आई है।

  • पिता का सपना: बेटे को पढ़ाई कराकर आगे बढ़ते देखना।
  • गांव का सपना: मंजय जैसे और युवाओं को सरकारी नौकरी करते देखना।
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निष्कर्ष

परमार मुसहरी जैसे पिछड़े गांवों में मंजय लाल सदा की सफलता एक मिसाल है। यह दर्शाता है कि संकल्प, मेहनत और समर्थन से कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। आपके अनुसार, क्या सरकार को ऐसे गांवों के लिए विशेष शिक्षा योजनाएं लागू करनी चाहिए?

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