जाले न्यूज़: क्या एक साधारण सी दिखने वाली कृषि फसल किसी के जीवन में आर्थिक क्रांति ला सकती है? जी हां, दरभंगा में 30 ग्रामीण युवक-युवतियों ने मशरूम की खेती के जरिए अपने भविष्य को संवारने की राह तलाशी है। पांच दिवसीय इस विशेष प्रशिक्षण ने उन्हें न सिर्फ तकनीकी ज्ञान दिया, बल्कि स्वरोजगार के एक नए युग की शुरुआत का भरोसा भी दिलाया है।
जाले स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में मशरूम की खेती पर आयोजित पांच दिवसीय गहन प्रशिक्षण कार्यक्रम का मंगलवार को सफलतापूर्वक समापन हो गया। इस दौरान दरभंगा जिले के विभिन्न प्रखंडों से आए 30 ग्रामीण युवक-युवतियों को प्रमाण पत्र वितरित किए गए, जिन्होंने मशरूम उत्पादन की बारीकियां सीखीं। इस पहल का उद्देश्य किसानों और बेरोजगार युवाओं को आत्मनिर्भर बनाना है।
स्वरोजगार का नया द्वार: डॉ. दिव्यांशु शेखर का मार्गदर्शन
केंद्र के अध्यक्ष सह वरीय वैज्ञानिक डॉ. दिव्यांशु शेखर ने इस अवसर पर कहा कि मशरूम उत्पादन स्वरोजगार का एक बेहतरीन विकल्प है। उन्होंने जोर देकर कहा कि किसान यदि अपनी पारंपरिक खेती-बाड़ी के साथ-साथ मशरूम का उत्पादन भी करें, तो उनकी आय में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है। डॉ. शेखर ने बताया कि देश में मशरूम उपभोक्ताओं की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है, जिसकी पूर्ति के लिए उन्नत तकनीकी और गहन प्रशिक्षण की अत्यधिक आवश्यकता है। भारत की जलवायु विविधता के कारण यहाँ बटन, ढिगरी (ऑयस्टर), पुआल और दूधिया मशरूम जैसे विभिन्न प्रकार के मशरूम का उत्पादन पूरे साल सरलता से किया जा सकता है।
30 युवाओं ने ली मशरूम खेती की बारीकियां
प्रशिक्षण कार्यक्रम की संयोजिका एवं गृह वैज्ञानिक डॉ. पूजा कुमारी ने बताया कि इस कार्यक्रम में दरभंगा जिले के जाले, कमतौल, दरभंगा सदर और तारडीह जैसे विभिन्न प्रखंडों से कुल 30 ग्रामीण युवक एवं युवतियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया। प्रशिक्षण के दौरान उन्हें विभिन्न प्रकार के मशरूमों को उगाने की तकनीक, उनके लिए कंपोस्ट बनाने की विधि और इनमें लगने वाले रोगों के प्रबंधन के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई।
डॉ. पूजा कुमारी ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत में आमतौर पर उगाई जाने वाली मशरूम की दो प्रमुख प्रजातियाँ सफेद बटन मशरूम और ऑयस्टर मशरूम हैं। उन्होंने बताया कि हमारे देश में सफेद बटन मशरूम का अधिकांश उत्पादन मौसमी होता है और इसकी खेती पारंपरिक तरीकों से की जाती है। डॉ. पूजा ने यह भी उल्लेख किया कि इस प्रशिक्षण से किसान और बेरोजगार लोग स्वरोजगार अपनाकर अधिक से अधिक आय प्राप्त कर सकते हैं। प्रशिक्षुओं को सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली सहायता राशि प्राप्त करने की प्रक्रिया के बारे में भी बताया गया।
कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ ने दिए व्यवहारिक टिप्स
प्रशिक्षण के दौरान डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के प्रोफेसर डॉ. राम प्रवेश प्रसाद ने प्रशिक्षुओं को व्यवहारिक प्रशिक्षण दिया और अपनी देखरेख में बटन मशरूम लगवाया। डॉ. प्रसाद ने किसानों को मशरूम की खेती से होने वाले विभिन्न लाभों से अवगत कराया। इसके साथ ही, उन्होंने मशरूम में लगने वाले प्रमुख रोगों और कीटों के बारे में भी विस्तृत जानकारी प्रदान की।
इस विशेष प्रशिक्षण में मुख्य रूप से बटन मशरूम की खेती पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिसमें निम्नलिखित विषयों पर गहन चर्चा हुई:
- कंपोस्ट बनाने की तकनीक और उसमें बरती जाने वाली सावधानियाँ
- एक अच्छे कंपोस्ट के गुण और केसिंग की गुणवत्ता
- फसल की उचित देखभाल के तरीके
- मशरूम फार्म की संरचना और लेआउट
- मशरूम की बीमारियाँ एवं उनका कीट प्रबंधन, जिसमें सूत्रकृमि (नेमाटोड) और माइट का प्रबंधन शामिल है
- मशरूम से बनने वाले व्यंजन और इसके मूल्य वर्धित उत्पाद
- डिब्बाबंद इकाई की स्थापना और संचालन
औषधीय मशरूम से अधिक लाभ: डॉ. प्रदीप कुमार विश्वकर्मा
उद्यान वैज्ञानिक डॉ. प्रदीप कुमार विश्वकर्मा ने प्रशिक्षु किसानों को औषधीय मशरूम की खेती के माध्यम से अधिक से अधिक लाभ कमाने के तरीकों पर बहुमूल्य जानकारी दी। इस कार्यक्रम में केंद्र के सभी कर्मी उपस्थित थे, जिन्होंने प्रशिक्षण को सफल बनाने में अपना योगदान दिया।








