आंचल कुमारी। कमतौल: मिथिला की प्राचीन परंपरा और अतिथि सत्कार ने श्रीराम बरात में शामिल साधु-संतों को भाव-विभोर (Sadhus and saints of Ayodhya in Darbhanga are thrilled with the hospitality of Mithila) कर दिया। अयोध्या से आई इस धार्मिक यात्रा में शामिल हुए साधु-संतों ने कहा कि मिथिला की संस्कृति और रीति-रिवाज अतिथियों को जो सम्मान और स्नेह प्रदान करते हैं, वह अनूठा और अभिभूत करने वाला है।
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विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय मंत्री सह श्रीराम बरात यात्रा के संयोजक राजेंद्र सिंह पंकज ने अहल्यास्थान से बेनीपट्टी के लिए प्रस्थान करते समय मीडिया से कहा:
“श्रीराम के आदर्शों और संस्कारों को समाज में जीवंत बनाए रखने के उद्देश्य से हर पांच वर्ष में अयोध्या से जनकपुर तक श्रीराम बरात यात्रा निकाली जाती है।”
उन्होंने कहा कि यह यात्रा भगवान श्रीराम और माता सीता के विवाह की स्मृतियों को पुनर्जीवित करने का एक प्रयास है।
यात्रा का रूट और स्वागत-सत्कार
- श्रीराम बरात यात्रा रूट:
- अयोध्या से प्रस्थान: 26 नवंबर
- मार्ग: आजमगढ़, बक्सर, पटना, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, पुपरी होते हुए अहल्यास्थान।
- अंतिम गंतव्य: जनकपुर धाम (3 दिसंबर)।
- अहल्यास्थान पर स्वागत:
- प्रतीकात्मक दूल्हा श्रीराम और बारातियों का मिथिला के रीति-रिवाजों से स्वागत किया गया।
- भावपूर्ण परंपराएं अतिथियों को भाव-विह्वल कर देती हैं।
जनकपुर धाम में वैवाहिक रस्में
- 3 दिसंबर: जनकपुर धाम आगमन।
- 6 दिसंबर:
- श्रीसीताराम विवाह की रस्मों का आयोजन।
- हजारों श्रद्धालु इस आयोजन का हिस्सा बनेंगे।
- 7 दिसंबर:
- एक दर्जन से अधिक आर्थिक रूप से कमजोर कन्याओं का सामूहिक विवाह कराया जाएगा।
- 8 दिसंबर:
- जनकपुर से प्रस्थान।
- वीरगंज और गोरखपुर होते हुए 9 दिसंबर को अयोध्या वापसी।
संस्कृति और आदर्शों की झलक
राजेंद्र सिंह पंकज ने कहा कि श्रीराम की मर्यादा और आदर्श समाज को शिक्षित करने का सबसे प्रभावी माध्यम हैं। श्रीराम विवाह के माध्यम से इन संस्कारों को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है। मिथिला के आतिथ्य और परंपराओं ने अयोध्या से आए साधु-संतों को गहरी छाप दी है। यह यात्रा भारतीय संस्कृति को जीवंत रखने का एक प्रेरणादायक प्रयास है।