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27 नवम्बर, 2025

दरभंगा में गूंजी संविधान की महत्ता, लॉन्च हुई नई मैथिली पत्रिका ‘एफआईआर’

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दरभंगा से एक अनोखी खबर सामने आई है। जिस दिन पूरा देश संविधान के सम्मान में डूबा था, उसी दिन मिथिला की सांस्कृतिक गरिमा को एक नया आयाम मिला। एक ओर जहां संविधान के मूल्यों पर गहन मंथन हुआ, वहीं दूसरी ओर एक नई आवाज़ ने साहित्य जगत में दस्तक दी। क्या था इस डबल इवेंट का पूरा माजरा, जानने के लिए पढ़ते रहिए…

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संविधान दिवस के पावन अवसर पर दरभंगा में राष्ट्र निर्माण के प्रति जागरूकता बढ़ाने और संवैधानिक मूल्यों को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह आयोजन राजनीति विज्ञान विभाग की पहल पर हुआ, जिसने “हमारा संविधान, हमारी पहचान” विषय को केंद्र में रखा।

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इस कार्यक्रम का मुख्य लक्ष्य युवा पीढ़ी और आम नागरिकों को भारतीय संविधान की मूल भावना, इसके सिद्धांतों और अधिकारों के प्रति जागरूक करना था। वक्ताओं ने संविधान निर्माताओं के विजन और भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने में इसकी भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि किस प्रकार संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि देश के हर नागरिक की पहचान और गौरव का प्रतीक है।

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संविधान की गरिमा और युवा पीढ़ी की भूमिका

इसी ऐतिहासिक दिन, दरभंगा ने एक और महत्वपूर्ण सांस्कृतिक आयोजन का गवाह बना। संविधान दिवस के शुभ अवसर पर मैथिली भाषा की एक नई पत्रिका ‘एफआईआर’ का लोकार्पण किया गया। यह घटना मैथिली साहित्य और भाषाई विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।

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‘एफआईआर’ पत्रिका का विमोचन न केवल मैथिली साहित्य को समृद्ध करेगा, बल्कि यह मिथिलांचल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और भाषाई पहचान को भी बल प्रदान करेगा। इस पत्रिका के माध्यम से स्थानीय लेखकों और कवियों को अपनी रचनाएं प्रस्तुत करने का एक नया मंच मिलेगा, जिससे मैथिली भाषा में लेखन को प्रोत्साहन मिलेगा। यह कदम क्षेत्रीय भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में एक सकारात्मक प्रयास है।

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मैथिली साहित्य को नई उड़ान: ‘एफआईआर’ का लोकार्पण

दरभंगा में संविधान दिवस पर आयोजित इन दोनों कार्यक्रमों ने एक साथ संवैधानिक जागरूकता और सांस्कृतिक चेतना का संदेश दिया। एक ओर जहां देश के सर्वोच्च कानून के प्रति सम्मान और समझ को मजबूत किया गया, वहीं दूसरी ओर स्थानीय भाषा और साहित्य को प्रोत्साहित कर क्षेत्रीय पहचान को भी मजबूती प्रदान की गई।

ये आयोजन दर्शाते हैं कि शिक्षा और संस्कृति दोनों ही समाज के विकास के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं। संविधान हमें अधिकार और कर्तव्य देता है, जबकि साहित्य हमारी जड़ों से हमें जोड़े रखता है।

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