बिरौल न्यूज़: एक ऐसा दिन जब देश के सर्वोच्च ग्रंथ, संविधान की सर्वोच्चता पर फिर से मुहर लगी। जनता कोशी महाविद्यालय के प्रांगण में जुटे शिक्षाविदों और छात्रों ने सिर्फ संविधान दिवस नहीं मनाया, बल्कि उसके हर पन्ने में छिपी राष्ट्र की आत्मा को टटोला। सवाल ये है कि आखिर क्यों इसे ‘हमारी पहचान’ और ‘समस्त समस्याओं का समाधान’ कहा गया? जानने के लिए पढ़िए पूरी रिपोर्ट…
बिरौल स्थित जनता कोशी महाविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा ‘हमारा संविधान, हमारी पहचान’ कार्यक्रम का भव्य आयोजन किया गया। इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. सूर्य नारायण पाण्डेय ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य भारत के संविधान की सर्वोच्चता को पुनः स्थापित करना तथा विद्यार्थियों में संवैधानिक चेतना, कर्तव्य-बोध और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करना था।
संविधान की नींव और लोकतंत्र का आधार
प्राचार्य डॉ. सूर्य नारायण पाण्डेय ने भारतीय संविधान की लचीली, प्रगतिशील एवं लोकतांत्रिक संरचना पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत का संविधान किसी तानाशाही का नहीं, बल्कि विशुद्ध लोकतंत्र का आधार है। इसमें निहित संशोधनों की व्यवस्था इसे समय के साथ सशक्त बनाती है, वहीं राजसत्ता जनता से प्राप्त होती है और कानून का शासन सर्वोच्च होता है। डॉ. पाण्डेय ने स्वतंत्र न्यायपालिका को लोकतंत्र का एक मजबूत रक्षक बताते हुए कहा कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जिसकी जड़ें वैदिक-वैशाली गणराज्यों तक फैली हुई हैं। उन्होंने अधिकार और कर्तव्य को एक-दूसरे का पूरक बताया।
इसी अवसर पर मैथिली विभाग के डॉ. राज कुमार प्रसाद द्वारा लिखित पुस्तक ‘एफआईआर’ (कथा संग्रह) का विशेष विमोचन किया गया। डॉ. प्रसाद ने संविधान को ‘प्रकाश’ की संज्ञा देते हुए कहा कि संवैधानिक न्याय, स्वतंत्रता, अधिकार और कर्तव्य के बीच संतुलन ही किसी राष्ट्र को मजबूती प्रदान करता है। डॉ. दिलीप कुमार ने गणमान्य अतिथियों, प्राध्यापकों, मीडिया प्रतिनिधियों एवं छात्र-छात्राओं का स्वागत करते हुए कार्यक्रम के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि संविधान दिवस को पूर्व में ‘विधि दिवस’ के रूप में मनाया जाता था। आजादी के संघर्ष में सभी का योगदान रहा, और इसी समन्वय से भारत का संविधान लिखा गया। डॉ. दिलीप ने सामाजिक लोकतंत्र के पुरोधा डॉ. आंबेडकर द्वारा समता और स्त्री-पुरुष समानता को संविधान का आधार बनाए जाने पर भी जोर दिया, साथ ही नेहरू जी की आर्थिक लोकतंत्र की व्याख्या को पुनर्जीवित किया।
अधिकार और कर्तव्य: राष्ट्र निर्माण में भूमिका
श्री क्रांति कुमार ने भारत को विश्व का सबसे प्राचीन गणराज्य बताते हुए कहा कि हमारा संविधान विश्व के अनेक देशों की श्रेष्ठ संवैधानिक व्यवस्थाओं का समन्वित रूप है। उन्होंने स्वच्छता, समता और राष्ट्रनिर्माण में नागरिकों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया। डॉ. भवेश कुमार ने डॉ. भीमराव अम्बेडकर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए संवैधानिक चेतना के मनोवैज्ञानिक महत्व को स्पष्ट किया। डॉ. बिन्दुनाथ झा ने संविधान सभा की बहसों, धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और संप्रभुता के विषयों पर चर्चा की। उन्होंने ‘सेकुलर’ शब्द की व्याख्या करते हुए आरक्षण की मूल भावना—सामाजिक-शैक्षणिक-आर्थिक समानता—को विस्तार से समझाया।
डॉ. शिवकुमार ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि संविधान अपने उद्देश्यों को उतना नहीं पा सका, जितना अपेक्षित था, क्योंकि अधिकार पाने की होड़ में हम कर्तव्यों से दूर होते गए। वहीं, डॉ. नरेश कुमार ने संविधान को ‘समस्त समस्याओं का समाधान’ बताते हुए कहा कि यह समानता का अधिकार देता है और सामाजिक विषमता को कम करता है। डॉ. राम शेख पंडित ने लोकतंत्र की गहरी जड़ों, पंचायती राज एवं न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा पर विशेष बल दिया। डॉ. आबिद करीम ने संविधान को सर्वोपरि बताते हुए संशोधनों को उसकी जीवंतता का प्रमाण करार दिया। उन्होंने संविधान की प्रस्तावना को ‘संविधान की कुंजी’ बताया। डॉ. राम नरेश ने कहा कि संविधान किसी भी राष्ट्र की स्वतंत्रता का आधार है तथा भारत के लोकतांत्रिक ढाँचे को मजबूती प्रदान करता है।
छात्रों की दृष्टि में संविधान: हमारा मार्गदर्शक
इस कार्यक्रम में छात्रों ने भी बढ़-चढ़कर अपनी सहभागिता निभाई और संविधान को लेकर अपने विचारों को व्यक्त किया:
- निशात फातिमा: “संविधान जितना अच्छा हो, उसकी सफलता उसके क्रियान्वयन पर निर्भर करती है। संविधान मार्गदर्शक है, सिर्फ किताब नहीं।”
- निगार फातिमा: “संविधान ने हमें समानता, अभिव्यक्ति और धर्म की स्वतंत्रता दी है। यही हमारी पहचान है।”
- तस्लीम अहमद: गांधीजी के ‘हिन्द स्वराज’ और स्वप्निल भारत की अवधारणा पर अपने विचार प्रस्तुत किए।
- सरिफ़ूल: भेदभाव-निरोध में संविधान की केंद्रीय भूमिका बताई।
- कन्हैया कुमार: उन्होंने संक्षिप्त वक्तव्य दिया।
- मंकुश पौद्दर: अनुच्छेद 19(क) के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता व अवसर की समानता पर चर्चा की।
- अंजनी कुमारी: संविधान दिवस का इतिहास और प्रारूप समिति पर अपने विचार रखे।
- सुभाष कुमार: विश्व के सबसे बड़े लिखित संविधान की विशेषताओं पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम का समापन डॉ. शारदा कुमारी के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। उन्होंने सभी प्राध्यापकों, छात्र-छात्राओं, आयोजन समिति एवं विशेष रूप से कार्यक्रम में सहयोग देने वाले छात्रों नीशू कुमार, विनीत कुमार, मन्कुश कुमार, तस्लीम अहमद, बंटी, निगार फातिमा, निस्साता, कन्हैया, दिल मोहन, सुभाष, रघु, आदित्य, चंदन, समीत का आभार व्यक्त किया।







