मई,14,2024
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शैक्षणिक व सांस्कृतिक विरासत को सहेजने में मिथिला व काशी का संबंध गहरा व अटूट

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  • शैक्षणिक व सांस्कृतिक विरासत को सहेजने में मिथिला व काशी का संबंध गहरा व अटूट
    शैक्षणिक व सांस्कृतिक विरासत को सहेजने में मिथिला व काशी का संबंध गहरा व अटूट : तस्वीर देशज टाइम्स

    मुख्य बातें

  • मिथिला और काशी का संबंध गहरा और अटूट : प्रो एस के सिंह
  • शिक्षा का उद्देश्य मात्र ज्ञानवान ही नहीं,बल्कि संवेदनशील मानव बनाना : कुलपति
  • मिथिला त्याग, तपस्या और विद्या की भूमि : प्रो जीवानंद

दरभंगा, देशज न्यूज। मदन मोहन मालवीय एक विराट पुरुष  शिक्षाविद्, राष्ट्रभक्त व समाज सुधारक थे। मिथिला व काशी का संबंध गहरा और अटूट है। विशेष रूप से शैक्षणिक व सांस्कृतिक रूप से दोनों काफी करीब रहे हैं। शिक्षा का उद्देश्य मात्र ज्ञानवान बनाना ही नहीं, बल्कि संवेदनशील व्यक्ति बनाना भी है। इन्हीं उद्देश्यों को लेकर पंडित मालवीय ने 1916 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी, जिसमें दरभंगा महाराज रामेश्वर सिंह का अविस्मरणीय योगदान रहा था।

यह बात विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एसके सिंह ने महामना मालवीय मिशन बिहार इकाई व स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग के संयुक्त तत्वावधान में प्रबंधन भवन में काशी- मिथिला की शिक्षा क्रांति के अग्रदूत महाराज रमेश्वर सिंह व भारतरत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय विषयक संगोष्ठी का मुख्य अतिथि के रूप में उद्घाटन करते हुए कही।

शैक्षणिक व सांस्कृतिक विरासत को सहेजने में मिथिला व काशी का संबंध गहरा व अटूट
शैक्षणिक व सांस्कृतिक विरासत को सहेजने में मिथिला व काशी का संबंध गहरा व अटूट : तस्वीर देशज टाइम्स

उन्होंने कहा, मानवीय मूल्यों की स्थापना में शैक्षणिक संस्थानों का काफी योगदान होता है। पंडित मालवीय का मानना था, सकारात्मक परिवर्तन सिर्फ शिक्षा से ही संभव है। मिथिला की संस्कृति समृद्धशाली रही है, जिसे आगे बढ़ाने की जरूरत है। आज अपनी गौरवशाली परंपरा को वापस लाना आवश्यक है,जिसमें शैक्षणिक संस्थानों की भूमिका अहम है।

काशी व मिथिला दोनों शिक्षा के केंद्र : प्रो. हरेकृष्ण सिंह
विशिष्ट अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय वाणिज्य विभागाध्यक्ष प्रो. हरेकृष्ण सिंह ने कहा, काशी व मिथिला दोनों शिक्षा के केंद्र रहे हैं। यह संगोष्ठी दोनों को जोड़ने का एक सार्थक प्रयास है। बीएचयू की स्थापना में महाराज रमेश्वर सिंह ने न केवल आर्थिक सहायता दी, बल्कि सक्रिय योगदान भी दिया। दोनों महापुरुष समकालीन और शैक्षणिक क्रांति के दूत थे।

महामना का चरित्र बिल्कुल बेदाग : डॉ. जयशंकर झा
मुख्य वक्ता डॉ. जयशंकर झा ने कहा, महामना का चरित्र बिल्कुल बेदाग रहा, जिन्होंने भारतीय भावना से ओतप्रोत शिक्षा-केंद्र के रूप में बीएचयू की स्थापना की,जहां प्राचीन व अर्वाचीन शिक्षा दी जाती है। उन पर भारतीय संस्कृति का व्यापक प्रभाव था, वहीं, रमेश्वर सिंह संस्कृत विद्या के विद्वान् थे, जिन्होंने कई विद्यालयों को साधन युक्त किया था।

बीएचयू की स्थापना में मिथिला की अग्रणी भूमिका : आलोक सिंह
धन्यवाद ज्ञापन करते हुए मिशन के बिहार इकाई के सचिव आलोक सिंह ने कहा, शिक्षा के विकास में मालवीय जी और महाराजा रमेश्वर जी का अमूल्य योगदान रहा है। बीएचयू की स्थापना में मिथिला की अग्रणी भूमिका थी,जहां आज प्राथमिक से लेकर डी.लीट् तक 144 विषयों की पढ़ाई होती है।
मिथिला त्याग, तपस्या व विद्या की भूमि: प्रो. जीवानंद
अध्यक्षीय संबोधन में संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. जीवानंद झा ने कहा, मिथिला त्याग, तपस्या व विद्या की भूमि है। दरभंगा महाराज रमेश्वर सिंह का शिक्षा के क्षेत्र में सराहनीय योगदान रहा है। व्यापक व्यक्तित्व वाले मालवीय जी की ओर से स्थापित बीएचयू 1300 एकर भूमि में फैली हुई है, जहां 14 संकाय तथा 75 छात्रावास हैं, जिस कारण यह एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय है।

संगोष्ठी में मैथिली विभागाध्यक्ष, प्रो. रमण झा, प्रो. एके बच्चन, प्रो. एके मेहता, प्रो. नारायण झा, डॉ. आर एन चौरसिया, डॉ. संजीत कुमार झा, डॉ. मंजू कुमारी, डॉ. विकास सिंह, डॉ. दयानंद मिश्र, प्रो. रविंद्र चौधरी सहित बालकृष्ण सिंह, अजय कुमार, प्रशांत कुमार, योगेंद्र पासवान, स्वेता ऋतु सहित एक सौ से अधिक व्यक्ति उपस्थित थे। आगत अतिथियों का स्वागत फूल-माला व मोमेंटो से किया गया। पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. रामनाथ सिंह के संचालन में आयोजित संगोष्ठी में स्वागत भाषण डॉ. ममता स्नेही ने किया।शैक्षणिक व सांस्कृतिक विरासत को सहेजने में मिथिला व काशी का संबंध गहरा व अटूटशैक्षणिक व सांस्कृतिक विरासत को सहेजने में मिथिला व काशी का संबंध गहरा व अटूट 

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