सिंहवाड़ा, देशज न्यूज। उत्तरी पंचायत के पुरुषोत्तम झा नहीं रहे। तीस दिसंबर को उनके महाप्रयाण ने सदा के लिए संपूर्ण गांव-परिचित-परिजनों को अकेला छोड़ दिया। बुच्चन बाबू के नाम से चर्चित वयोवृद्ध समाजसेवी पुरुषोत्तम सेवानिवृत्ति के बाद से ही जनसरोकार से जुड़े रहे। गंभीर बीमारी से महीनों जूझने के दौरान भी उनका ग्रामीण परिवेश, यहां के लोगों से तारतम्य नहीं टूटा। रांची में इलाज कराकर लौटे, उस दौरान भी गांव की समस्याओं के निदान, लोगों की टूटती-बिखरते परिवार उसके प्रति गंभीर विमर्श उनके दैनिक कार्यों में शामिल रहा। हर किसी का कुशल-क्षेम पूछना बस, इनके स्वभाव में शामिल था।
हर दिन राधा-कृष्ण के दरबार में लगाते थे हाजिरी
सर्वथा नाम के अनुरूप पुरुषोत्तम झा पुरुषोत्तम श्री कृष्ण के बेहद नजदीकी रहे। बचपन से पिता पितांबर झा को श्रीकृष्ण की पूजा करते देखा। घर में ही मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाते रहे। हर दिन श्रीकृष्ण की भक्ति में भजनोत्सव पारिवारिक दिनचर्या में शामिल था। ऐसे में भला, सिंहवाड़ा बुढ़नद नदी के मुहाने पर शीर्षासीन मुनींद्र पंचायतन में विराजमान साक्षात् मालिक श्री-श्री 108 राधा-कृष्ण के दरबार में उनका अनवरत जाना, हर शाम उनके दरबार में बैठना इनकी दिनचर्या कैसे नहीं बनती। हद तो यह, बीमारी ने जैसे-जैसे इन्हें परेशान करना शुरू किया। मालिक राधा-कृष्ण का दर्शन करना वहां तक पैदल जाना जब मुश्किल आन पड़ा बावजूद, ऑटो पर ही सही उन्होंने मंदिर जाना नहीं छोड़ा। हां, इस बीच पैदल जाने के दौरान जो उनका लोगों से मिलना था। रूक-रूककर गांव के लोगों से उनका हाल-चाल पूछने का जो क्रम था वो जरूर टूट गया।
अब जन्माष्टमी पर खलेगी हर बरस कमी
पुरुषोत्तम झा के निवास स्थल पर हर साल जन्माष्टमी का मेला लगता था। अब उस मेले का इनकी कमी हर साल खलेगी। वो नंद बाबा का आसन वो मां की मूर्ति वो श्रीकृष्ण की कलात्मक मूर्ति उनके बिना कैसे सजेगी यह अक्षुपूर्ण से भरा है। जन्माष्टमी का वह पूजन जिसकी मान्यता यही, लोग चांदी की बांसुरी मन्नत पूरी होने पर चढ़ाते थे अब उस बांसुरी के स्वर उस पुरुषोत्तम को जरूर याद करेंगे जिनके बिना पूजा-पद्धति उसकी आलीशान भव्यता सूनी पड़ गई है।
घर-घर के थे सरपंच
गांव में अगर कहीं कोई समस्या या किसी के घर आपसी विवाद-पारिवारिक द्वंद्व रहा उसका निदान मिनटों में करने वाला अगर कोई शख्स इस ग्रामीण परिवेश में था तो वे थे बुच्चन बाबू। इनके दलान पर हर दिन गरीब-गुरबों की फरियाद सुनी जाती थी। ना कहीं जाना-ना कहीं से आना। हर समस्या लेकर लोग बुच्चनजी के पास पहुंचते, उसका निदान करवाते और खुशी-खुशी घर जाते। पंचायत सरकार में पिछले एक दशक को छोड़ दें तो एक समय ऐसा भी था, यहां सरपंच कहीं खोजे नहीं मिलते। बीस सालों तक यहां पंचायत चुनाव नहीं हुआ। उस दौरान अगर हर घर की फरियाद का निबटारा इनके दलान से नहीं होता तो लोग असहज ही रहते। उन्हें सही समाधान देने, राह दिखाने वाला नहीं मिलता। मगर, बुच्चनजी ने उस सरपंच की कमी नहीं होने दी। बस एक चुटकी खैनी बनने से पहले समस्या छू मंतर। इतना ही नहीं, आते-जाते, मंदिर जाने, टहलने के दौरान भी लोग उन्हें रोककर अपनी समस्या सुनाते और हंसकर एक ऐसा मंत्र लेकर घर जाते जिससे जीवन की गाड़ी बेरोक-टोक चलती।
शोक में डूबी है हर आंखें, हर चेहरा बना है खामोश
बुच्चन बाबू के निधन से सिंहवाड़ा उत्तरी पंचायत ने अपना अभिभावक खो दिया है। चाहे राजनीति की बात हो, धर्म-अध्यात्म या फिर हास्य विनोद उनकी कमी हमेशा यहां रहने वालों को ताउम्र सताती रहेगी। उनके त्वरित उत्तर से बड़े-बड़े जानकार, विद्वतजन भी विस्मित हो उठते थे। उनकी हाजिर जवाबी का हर कोई कायल था। यही वजह है, उनके निधन ने संपूर्ण समाज को व्यथित कर दिया है। उनकी याद, हर उस शोक में डूबी आंखों को, हर उस उदास चेहरे को विचलित करती रहेगी। वैसा पुरूषार्थ, वैसा व्यक्तित्व, धोती व कुर्ता की शालीनता अब कहीं और शायद ही देखने को मिले। आज का दस साल का बच्चा जिसने उन्हें देखा है, जिसने उन्हें सुना है कभी भूलेगा नहीं। उनकी कही कई बातें लोगों को झकझोरती रहेगी…एक किस्सा याद आता है। उत्तरी पंचायत जब असुरक्षा बोध से ग्रसित हो उठा तो रात में उनके दरवाजे पर कोई अंजान पहुंचा। दरवाजा खटखटाया…अंदर से बुच्चनबाबू ने पूछा, कै छी…जवाब आया…हम छी..कै हम…हम छी…इस किस्से को जितनी गंभीरता के साथ उन्होंने सुनाया…आज भी हमें वो शब्द कानों को ध्वनिवत किए हुए है। सदैव मुस्कुराता उनका चेहरा अब हमें सदैव रूलाता ही रहेगा। यही सोचकर घड़कते दिलों को थाहने की कोशिश में जुटा हूं।
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम् पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वेदेवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:
सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि ॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥
शतेषु जायते शूरः सहस्रेषु च पण्डितः !
वक्ता दशसहस्रेषु दाता भवति वा न वा !! नमन….देशज परिवार की ओर से नमनाजंलि…हे पुरुषोत्तम…!