मुख्य बातें: नौकरी हो तो मनरेगा कर्मी जैसी। यह है बहादुरपुर मनरेगा कार्यालय। यहां के साहेब, न समय पर कार्यालय आने का कोई टेंशन न अधिकारियों का भय। बहादुरपुर मनरेगा के साहेब! कार्यालय कब आएंगें…उनकी मर्जी है। अगर आपको कार्यालय और हाकिम से कुछ काम है तबतक ऑफिस में झूलते ताले को नमस्कार कीजिए…बैठे रहिए?
दरभंगा, देशज टाइम्स। सरकार लाख चाह ले। कार्ययोजना बना ले। सुधार की कोई गुंजाइश ही ना छोड़े। मगर, धरातल पर उसकी हकीकत चौंकाती है। शिक्षा विभाग की लचर व्यवस्था को सुधारने के लिए विभाग के मुख्य सचिव केके पाठक काफी कुछ करने लगे हैं। स्कूलों में शिक्षक व छात्रों की ऑनलाइन उपस्थिति बनाने के निर्देश दिए हैं।
मगर, अन्य विभागों में ऑनलाइन हाजिरी कब लगेगी। यह चर्चा का विषय है। ताजा मामला, दरभंगा के बहादुरपुर मनरेगा कार्यालय का है जहां कार्यालय में बैठने में अधिकारियों का मन नहीं लग रहा। अधिकारी कार्यालय कब आएंगें…यह उनकी मर्जी पर निर्भर है। आए तो ठीक नहीं तो भोजन करने के बाद दोपहर बाद टहलते आराम फरमाने के लिए आ जाएं तो बहुत।
जानकारी के अनुसार, ग्रामीण विकास विभाग में पूर्व से ही सरकारी कर्मियों की उपस्थिति बनाने के लिए थम इम्प्रेशन मशीन का उपयोग किया जा रहा है। लेकिन, जिला मुख्यालय से करीब एक किमी की दूरी पर स्थित बहादुरपुर प्रखंड मुख्यालय में मनरेगा कर्मियों की बहार है।
कार्यालय के कर्मियों को न समय से आने का टेंशन है न किसी पदाधिकारी के निर्देशों का भय। कार्यालय के कर्मी व अधिकारी अपने मन के मनमौजी हैं। मनरेगा कार्यालय में पीओ, लेखापाल, जेई, पीटीए, पीआरएस, बीएफटी व कंप्यूटर ऑपरेटर जैसे सात पदों पर कर्मी नियुक्त हैं।
इसमें पीआरएस, पीटीए और जेई को ज्यादातर अपने आवंटित पंचायतों में समय देना पड़ता है। वहीं, पीओ, बीएफटी और लेखापाल को प्रतिदिन समय से कार्यालय आना होता है।
लेकिन, बहादुरपुर मनरेगा कार्यालय के लेखापाल कभी भी दिन के दो बजे से पहले नहीं आते। शुक्रवार को दिन के 11 बजकर 20 मिनट पर मनरेगा कार्यालय में पीओ और लेखापाल के कमरे के बाहर ताला झूल रहा था।
बगल के कमरे में कंप्यूटर ऑपरेटर बैठे थे। कंप्यूटर ऑपरेटर से जब अधिकारियों के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि अभी तक कोई नहीं आए हैं। वहीं, सूत्रों की मानें तो मनरेगा कार्यालय में लेखापाल व पीओ के न आने का कोई समय निर्धारित है न जाने का। सप्ताह में एक दिन मीटिंग कर बांकी के दिनों में अधिकारी गायब रहते हैं। स्थानीय लोगों ने इस कार्यसंस्कृति के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी है।