जाले, दरभंगा | जिले के जाले प्रखंड के कुछ गांवों में 7 अगस्त की रात हुई मूसलधार बारिश ने स्थानीय किसानों को राहत की सांस दी है। इस बारिश से खेतों में पर्याप्त जलभराव हुआ है, जिससे धान की फसल (Paddy Crop) के लिए अनुकूल परिस्थिति बन गई है।
किन गांवों को मिली राहत?
गांव जैसे जाले, लतराहा, दोघरा, राढ़ी, कछुआ ब्रह्मपुर और रतनपुर में हुई बारिश से अधिकांश खेतों के मेड़ डूब गए हैं। इससे धान की बुआई और रोपाई कार्य में तेजी आई है। स्थानीय किसानों राजा सहनी, चंदर दास, राज कुमार मांझी और दशरथ सहनी ने बताया:
“अब तक इतनी जोरदार बारिश नहीं हुई थी। धान के लिए यही पानी चाहिए था। खेतों में भरपूर पानी आ गया है और चापाकल भी पर्याप्त जल दे रहा है।”
सूखे से जूझते हैं ये गांव
वहीं दूसरी ओर, जोगियारा, गररी और देउरा जैसे गांवों में केवल सावन की फुहारें ही देखने को मिलीं, जिससे खेतों में नमी नहीं आ पाई है। पानी की भारी किल्लत के कारण अब तक धान की रोपनी (Rice Transplantation) भी पूरी नहीं हो सकी है।
गररी गांव के किसान वली इमाम बेग चमचम ने बताया:
“यही है प्रभुजी की माया – कहीं धूप, कहीं छाया।“
“हमारे गांव में जिनके पास निजी नलकूप (Tubewell) हैं, केवल उन्हीं ने सीमित मात्रा में रोपनी की है। बाकी खेत खाली पड़े हैं।”
खेती में असमानता बनी चिंता का विषय
इस वर्षा की भौगोलिक असमानता (Geographic Rainfall Imbalance) ने खेती पर दोहरी मार डाली है। एक ओर जहां कुछ गांवों में धान की फसल लहलहाने की उम्मीद बनी है, वहीं कई गांवों में किसान अब भी बारिश का इंतजार कर रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन का असर?
जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के प्रभावों पर विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की असमान और असमय वर्षा आने वाले समय में कृषि को और भी अस्थिर बना सकती है। यह स्थिति किसानों की आर्थिक स्थिरता और उत्पादन क्षमता दोनों को प्रभावित कर सकती है।
स्थानीय प्रशासन की भूमिका
स्थानीय प्रशासन को चाहिए कि वो सूखा प्रभावित गांवों में नलकूप और सिचाई योजनाएं सक्रिय करें, ताकि बारिश न होने पर भी किसान धान की रोपनी कर सकें।
किसानों की मांग और उम्मीदें
कई किसानों ने मांग की है कि सरकार को ऐसे क्षेत्रों के लिए ड्रिप इरिगेशन, सौर पंप, और जल संरक्षण योजनाएं शुरू करनी चाहिए जिससे भविष्य में इस प्रकार की वर्षा असमानता का सामना किया जा सके।
निष्कर्ष…चेतावनी
जहाँ एक ओर कुछ गांवों में प्राकृतिक वर्षा से कृषि कार्य को गति मिली है, वहीं दूसरे गांवों के किसान जल संकट और रोपनी की कठिनाइयों से जूझ रहे हैं। यह परिस्थिति कृषि नीति निर्माताओं, प्रशासन, और जल प्रबंधन एजेंसियों के लिए एक चेतावनी है कि वर्षा आधारित खेती की निर्भरता को कम करने के लिए वैकल्पिक उपाय जरूरी हैं।