मई,16,2024
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Darbhanga के वीर सपूत शहीद कैप्टन दिलीप कुमार की शहादत…जरा याद करो कुर्बानी….वादा था निभाया नहीं

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स्वतंत्रता दिवस के 77वें बर्षगांठ पर बेनीपुर के ऐसे वीर शहीद को शत् शत् नमन! जिन्होंने अल्पायु में देश की सरहद की रक्षा करते हुए अपना प्राण न्यौछावर कर दिया, जरा याद करो कुर्बानी…
सतीश झा, बेनीपुर। प्रखंड क्षेत्र के हरिपुर गांव के शहीद कैप्टन दिलीप कुमार की शहादत के दो दशक बाद आज भी बेनीपुर के लोग अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।

लेकिन शहीद के परिजन सरकार की उपेक्षा भाव से व्यथित नजर आ रहे हैं। जम्मू कश्मीर के पूंछ सेक्टर में देश की सरहद की रक्षा में 2 अक्टूबर 2002 को 8 आतंकवादियों को मौत का घाट उतारते हुए देश के लिए कुर्बान होने वाले कैप्टन दिलीप कुमार झा की शहादत की चर्चा आज भी लोग बड़े गर्व से कर रहे हैं।

2 जनवरी 1977 को बेनीपुर प्रखंड के हरिपुर गांव में जन्म लिए शहीद कैप्टन दिलीप कुमार झा के पिता नथुनी झा रेलवे कर्मचारी थे और माता उद्गार देवी कुशल गृहिणी थी लेकिन मात्र 3 वर्ष के उम्र में ही मां का साया उठ गया और पिता नथुनी झा के देखरेख में उनका लालन-पालन हुआ।

कटिहार उमानाथ विद्यालय से वर्ग तीसरी कक्षा में राष्ट्रीय मेधा  प्रतियोगिता परीक्षा पास कर मंसूरी के ओक ग्रोव विद्यालय से 12वीं तक की शिक्षा प्राप्त की।

इसी दौरान 1995 में उन्होंने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी की परीक्षा पास की और 3 वर्षों तक पुणे के खर्गवासा मे  एवं 1 वर्ष राष्ट्रीय मिलिट्री अकादमी देहरादून से प्रशिक्षण प्राप्त कर 11 नवंबर 1999 को उन्होंने 7 जाट रेजीमेंट के लेफ्टिनेंट के रूप में उन्होंने देश की सेवा देना प्रारंभ की।

लेकिन मात्र 2 वर्षों के कुशल क्रियाकलाप के बदौलत 2001 में कैप्टन के पद पर प्रोन्नति पाकर घातक दस्ता में शामिल हुए और 2 अक्टूबर 2002 को राष्ट्र के लिए अपने आप को न्योछावर  कर दिया।

2 अक्टूबर कि वह डरावनी रात अचानक वितंतु पर संवाद आया की मंडार और पूछ के बीच कुछ आतंकवादी घुसपैठ करने को तत्पर हैं उन्होंने तुरंत अपने सहयोगियों के साथ उक्त स्थल पर पहुंचकर पोजीशन ले ली और 6 घंटे तक चली कड़ी मुठभेड़ में 8 आतंकवादी को मौत के घाट उतार दिए।

लेकिन,अपने ही मेडिकल टीम की ओर से फैलाए गए रोशनी के दौरान वह भी आतंकवादी के निशाने के शिकार हो गए। मेडिकल टीम की ओर से एंबुलेंस से अस्पताल ले जाने के  दौरान रास्ते में उन्होंने दम तोड़ दिया।

अगले 4 अक्टूबर को सेना के जवानों के साथ शहीद का पार्थिव शरीर उनके पैतृक गांव हरिपुर लाया गया जहां लोगों को अपने वीर सपूत को खोने का गम से अधिक देश के लिए शहादत होने पर गर्व दिख रहा था।

शहीद कैप्टन दिलीप कुमार की शहादत पर अगले 15 अगस्त 2003 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम के द्वारा उन्हें कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया और उनके पुण्यतिथि पर 3 अक्टूबर 2003 को स्थानीय सांसद कीर्ति झा आजाद के पहल पर तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस हरिपुर गांव पहुंचकर शहीद के नाम सांसद मद से निर्मित विवाह भवन और आदम कद प्रतिमा का अनावरण किया।

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इस दौरान तत्कालीन प्रमुख स्वर्गीय हरेंद्र नारायण झा के पहल पर शहीद के नाम संग्रहालय का भी निर्माण किया गया। और, तत्कालीन स्थानीय विधान परिषद सदस्य नीलांबर चौधरी के एच्छिक कोष से हरिपुर में शहीद के नाम एक द्वार का भी निर्माण किया गया था।

लेकिन उनके शहादत के डेढ़ दशक बीत जाने के बाद शहीद के पिता नथुनी झा अपने  पुत्र के शहादत पर गर्व तो करते हैं लेकिन स्थानीय जनप्रतिनिधियों एवं बिहार सरकार और केंद्र सरकार की ओर से शहीद के नाम पर किए गए छलावा पूर्ण घोषणा से व्यथित नजर आ रहे हैं।

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उन्होंने देशज टाइम्स को बताया कि वर्ष 2006 में विधान परिषद सदस्य संजय झा की पहल पर पथ निर्माण मंत्री नंदकिशोर यादव ने दरभंगा कुशेश्वरस्थान पथ का नामकरण शहीद के नाम पर किए जाने की घोषणा की थी।

लेकिन वह हवा हवाई ही रह गई। साथ ही शहीद के परिजन को मात्र विजय वीर आवास योजना के तहत राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक फ्लैट मिला। और, न ही परिजन को कृषि योग्य या बास गीत भूमि का आज तक आवंटन किया गया और ना तो आश्रितों को नौकरी दी गई।

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धरौड़ा चौक पर शहीद का स्मारक निर्माण के लिए पिता नथुनी झा का कई जोड़ी चप्पल घिस गये, लेकिन फलाफल शून्य रहा। अन्य मांगों के लिए राज्य सरकार और केंद्र सरकार एक दूसरे के पल्ले टालते रह  गए।

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