केंद्र सरकार ने मिथिला के मखाना को जीआई टैग क्या दिया, इससे क्या लाभ मिला। किसान इससे कितने खुश हैं। टैग से उन्हें उनकी खेती, व्यापार में कहां क्या कुछ लाभ मिलता दिखा।
इसको लेकर कई सवाल अब उठने लगे हैं। सरकार ने मिथिला की मिठास को भुनाया, पीठ थपथपाई लेकिन किसान हाशिए पर हैं। किसानों में हताशा है। वह निराश पड़े हैं। उन्हें इस टैग से उनकी आर्थिक संपन्नता का कहीं कोई सुधारात्मक कदम नहीं मिलता दिख रहा। पढ़िए रितेश कुमार सिन्हा की यह पड़ताल करती रिपोर्ट…
जीआई टैग मिलने से मखाना व्यवसाय से जुड़े लोग काफी उत्साहित भी थे। उन्हें उम्मीद थी कि मखाना व्यवसाय को नया आयाम मिलेगा। लेकिन ऐसा होता हुआ दिखाई नही दे रहा है। ऐसा मानना है मखाना व्यवसाय से जुड़े लोगों का।
मखाना उत्पादन से जुड़े किसानों को उत्पादन के अनुरूप कीमत नही मिल पा रहा है। अभी दरभंगा में मखाने का खुदरा बाजार मूल्य 400 से 500 रुपये प्रति किलो है।
मखाना किसानों को आशा के अनुरूप कीमतों वृद्धि नहीं हो पाई है। इसका मुख्य कारण वर्ष 2022 के मखाने की कीमत में अप्रत्याशित कमी रही है। इस कारण से मखाना की खेती के प्रति किसानों का उत्साह कम हो गया है। लेकिन इस वर्ष फिर से मखाना की कीमत तेजी से बढ़ी है जिससे मखाना की किसानों की रुचि फिर से बढ़ने की उम्मीद जगी है।
दरभंगा स्थित राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मनोज कुमार का मानना है कि पिछले 5 वर्षों में मखाना की खेती का विस्तार दोगुना हो गया है। जीआई टैग मिलने और जरूरी अनुसंधान में त्वरित विकास से लंबी अवधि में मखाना की खेती का और विस्तार होगा। यह किसानों को बेहतर आमदनी देने में सक्षम है।
5 वर्ष पहले जिले में मखाने की खेती लगभग 15000 हेक्टेयर में होती थी जो अब 30 से 35000 हेक्टेयर में हो रही है। इसकी उत्पादकता इस दौरान 14 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हुआ करती थी जो अब बढ़कर 20 से 25 क्विंटल तक हो गई है। अब किसानों की आमदनी प्रति हेक्टेयर 50 से 60 हजार से बढ़कर 125000 से डेढ़ लाख तक अनुमानित है। मखाना किसानों और उद्यमियों की संख्या में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई है।
बहादुरपुर प्रखंड के कपछाही गांव के किसान महेश मुखिया और बेनीपुर के मखाना किसान कंचन कुमारी ने बताया है कि पिछले साल मखाना की गुड़ी की कीमत काफी कम थी इस बार गुड़ी की कीमत अधिक है लेकिन उत्पादन पर असर पड़ा है।इसके पिछे प्रतिकूल मौसम मुख्य वजह रही है।
इस वर्ष मई, जून और जुलाई में भीषण गर्मी रही और बारिश औसत से काफी कम है। अभी थोक विक्रेता ₹3000 क्विंटल मखाना की बिक्री कर रहे हैं। खुदरा विक्रेता 400 ₹500 किलो बेच रहे हैं। मखाना के कारोबार से जिले के करीब 30000 किसान जुड़े हुए हैं। इसकी खेती के लिए उद्यान विभाग एक लाख रुपये अनुदान भी देती है।