पढ़ते रहिए देशज टाइम्स। बिहार में शराब कौन-कौन आज की तारीख में पी रहा। कितनी फीसद शराब की बिक्री अंदरखाने बिहार में हो रहीं, इसकी पड़ताल कौन करेगा? कहीं कोई आंकड़ा नहीं? क्योंकि हम मानकर बैठे हैं बिहार में शराबबंदी है? भला ऐसे में शराब पीता कौन है? कैसे है? इसकी ताकीद के लिए फुर्सत ना तो निजाम को है, न ही कर्ता को। गुनहगार कौन है? गुनाह कौन कर रहा है? गुनाह के पीछे की मंशा क्या है? सब कुछ बेखौफ। न पीने वालों में डर। ना ही पिलाने वालों में डर? खुद से आंख मिलाते डरता है कौन…?
बिहार में शराबबंदी: कानून में छेद क्यों?
बिहार में शराबबंदी को लेकर कार्रवाई सिर्फ छोटे स्तर पर हो रही है। बड़े शराब माफिया आज भी खुलेआम धंधा चला रहे हैं। सवाल उठते हैं:
- सरगना क्यों नहीं पकड़े जाते?
- सिर्फ छोटे कोरियर पकड़े जाते हैं, जबकि असली मास्टरमाइंड बच निकलते हैं?
- पुलिस प्रशासन की निष्क्रियता का कारण क्या है?
जिन्हें आपस में टकराने से ही फुर्सत नहीं मिलती
कोई टूटी सी कश्ती ही बगावत पर उतर आए तो…कुछ दिन को ये तूफां सर उठाना भूल जाते हैं। जिन्हें आपस में टकराने से ही फुर्सत नहीं मिलती, उन्हीं शाखों के पत्ते लहलहाना भूल जाते हैं।। यह आज की बात नहीं है। प्रदेश यानि बिहार में शराब बंदी लागू होने के साथ ही, राज्य सरकार ने बार-बार स्पष्ट किया कि चौकीदारों को अवैध शराब के धंधे और शराब माफियाओं की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखनी होगी। चौकीदारों को स्थानीय पुलिस को सूचना देकर शराबबंदी कानून को लागू करवाने की जिम्मेदारी दी गई। पढ़ते रहिए देशज टाइम्स
📢 धरातल पर शराबबंदी की असलीयत पुलिस को भी पता है। सरकार को भी
डीएम स्तर से कई चौकीदारों की लापरवाही सामने आने पर कार्रवाई सामने है। मगर, चौकीदारों का एक पक्ष लगातार इस कानून की धज्जियां ही नहीं उछाल रहा। बल्कि इसे गटक भी रहा। वजह भी है। बिहार पुलिस अब शराब पकड़ने की कार्रवाई को मिशन नहीं मान रही। इसे हल्के में ले रही। भले, कागज पर यह गंभीर लकींर खिंचीं हुईं दिखाई दे, लेकिन धरातल पर शराबबंदी की असलीयत पुलिस को भी पता है। सरकार को भी। पढ़ते रहिए देशज टाइम्स
📢 यही वजह है, दरभंगा का रखवाला, गटक रहा मदिरा का प्याला
यही वजह है, दरभंगा का रखवाला, गटक रहा मदिरा का प्याला। क्योंकि निलंबन और स्पष्टीकरण से अब अधिकारियों से लेकर कर्मियों तक को डर नहीं लगता। अब सोचिए ना। जितने प्रखंड स्तर पर या जिलास्तर पर स्पष्टीकरण पूछे जाते हैं। अखबारों में खबर बनती है। स्पष्टीकरण पूछा गया। फलां-फलां अधिकारियों से पूछा गया शोकॉज। पढ़ते रहिए देशज टाइम्स
📢 मगर, उस शोकॉज का जवाब शीर्ष नेतृत्व को क्या मिला?
मगर, उस शोकॉज का जवाब शीर्ष नेतृत्व को क्या मिला? यह कहीं किसी अखबार में छपता है। या कोई पत्रकार जाकर उन अधिकारियों से प्रश्न पूछता भर भी है कि आखिर उस अधिकारी ने जवाब क्या दिया? नहीं? क्योंकि जवाब को सार्वजनिक करने की परंपरा न तो सिस्टम का पार्ट है न ही अखबार की जरूरत। अधिकारी स्तर पर शोकॉज किए जाते हैं, अखबारों में वाहवाही और फिर जवाब गोल डब्बे में? पढ़ते रहिए देशज टाइम्स
📢 मगर, इस सिस्टम में दम नहीं है
दरअसल, सिस्टम ही लचर है। इस सिस्टम में दम नहीं है। गरीब, लाचार, आम आदमियों के लिए सिस्टम और लॉ है। मजबूत लोगों के लिए सिस्टम में इतने छेद हैं, कौन कहां से कब निकल जाए कहना समझना मुश्किल। पढ़ते रहिए देशज टाइम्स
शराबबंदी की सख्ती सिर्फ कागजों पर?
बिहार में डीएम स्तर से कई चौकीदारों की लापरवाही सामने आने पर कार्रवाई की गई, लेकिन यह सिर्फ निलंबन और स्पष्टीकरण तक ही सीमित रही।
- सवाल उठता है कि कितने पुलिस के अधिकारी खुद शराब पीते हैं?
- क्या बिहार में कभी इसकी जांच हुई कि शराबबंदी कानून लागू करने वाले अधिकारी खुद इसका पालन करते हैं? इसकी भी आगे हम बात करेंगे….पढ़ते रहिए देशज टाइम्स
- शोकॉज नोटिस जारी तो होते हैं, लेकिन जवाब का क्या होता है? पढ़ते रहिए देशज टाइम्स
📢 अधिकारी शराब पीते हैं, इसकी कहीं कोई पुष्टि हुई?
खैर, यहां बात हो रही चौकीदारों की शराब पार्टी की? सवाल उठता है? पुलिस प्रशासन ने कभी इसकी तहकीकात करने की जरूरत समझी, कितने पुलिस के अधिकारी या थाना प्रभारी या उसके अधीनस्थ के कर्मी या अधीनस्थ और निचले स्तर के अधिकारी शराब पीते हैं?
📢 जब हम पार्टी सुप्रीमो जीतन राम मांझी ने कहा था?
जब हम पार्टी सुप्रीमो जीतन राम मांझी ने कहा था कि बिहार के अधिकारी शराब पीते हैं, इसकी कहीं कोई पुष्टि हुई? जांच हुई? कोई अधिकारी सकते में आया? नहीं? पढ़ते रहिए देशज टाइम्स
📢 पुलिस प्रशासन का सबसे कमजोर तबका है चौकीदार?
पुलिस प्रशासन का सबसे कमजोर तबका है चौकीदार। एक समय था चौकीदार रातों को लोगों को जगाते मिलते थे। समय और आधुनिक पुलिसिंग के साथ यह आवाज गुम हो गई। अब, 112 आ गया। गश्ती बढ़ीं। गश्ती टीम गई उत्तर, अपराधी पहुंच गए पश्चिम। क्राइम बदस्तूर जारी है। पढ़ते रहिए देशज टाइम्स
पुलिसिंग की सच्चाई: अपराधी बेलगाम, जनता असुरक्षित
एक समय था जब चौकीदार रातों को पहरा देते थे। लेकिन आज हालात बदल गए हैं।
- गश्ती दल के होने के बावजूद अपराधियों का आतंक जारी है।
- लोग रातों को जागने को मजबूर हैं, क्योंकि कानून-व्यवस्था पर भरोसा नहीं रहा।
- अगर कोई रखवाला अपराधियों का विरोध करता है, तो उसे खुद मारपीट का शिकार होना पड़ता है। यह भी विस्तार से जानेंगे…पढ़ते रहिए देशज टाइम्स
📢 न चौकीदारों के हटने का कोई प्रभाव दिखा, ना ही गश्ती दल के आधुनिक होने का?
न चौकीदारों के हटने का कोई प्रभाव दिखा। न ही गश्ती दल के आधुनिक होने का। लोग, आम-आवाम अभी भी रातों को जागते हैं। घर बंद कर बाहर जाने से पहले सौ बार सोचते हैं? खुद को यकीं नहीं होता, लौटेंगे तो सही सलामत घर के सामान बचे मिलेंगे।
📢 समाज के हालात इस कदर भयभीत है… मालिक अब हम ना सोएंगें…। हमें भी जान प्यारी है।?
इतना ही नहीं, अगर कोई अपने घर के लिए निजी रखवाला रखकर कोई कहीं जाता है। वह रखवाला भी अपराधियों के हाथों पिटता है। खून से लथपथ यही कहता है, मालिक अब हम ना सोएंगें…। हमें भी जान प्यारी है। हालिया उदाहरण समाजिक ताने-बाने को बिगाड़ती भयभीत करती मिल रहीं हैं।
📢 यहां हम, पुलिसिंग का विरोध नहीं कर रहे?
यही समाज है। यही सामाजिक स्थिति है। यहां हम, पुलिसिंग का विरोध नहीं कर रहे। लेकिन, चौकीदारों की भूमिका को लेकर पुलिस प्रशासन के शीर्ष नेतृत्व को एकबार जरूर सोचना चाहिए।
📢 आज चौकीदारों की भूमिका बदल गई है, यह बदलाव ?
चौकीदार समाज का व्यक्ति होता है। वह पुलिस से ज्यादा पहले आम लोगों की जरूरत उनके बीच उठता-बैठता था। वहां से खुफिया जानकारी बंटोरता था। फिर आगे की कार्रवाई, तहकीकात होती थी। आज चौकीदारों की भूमिका बदल गई है। यह बदलाव किस दिशा में पुलिस के शीर्ष नेतृत्व को सोचना चाहिए।
📢 अब सवाल यही है, क्या होगा? निलंबन…बस?
वैसे, ताजा मामला, बहेड़ी थाना के दो चौकीदारों का है। दोनों की शराब पीते वीडियो वायरल हुई है। बहेड़ी थानाध्यक्ष वरुण कुमार गोस्वामी इसकी जांच कर रहे हैं। एक इसमें से चौकीदार बताया जा रहा है। अब सवाल यही है, क्या होगा? ज्यादा से ज्यादा उक्त चौकीदार सस्पेंड की जद में आएंगें, निलंबित हो जाएंगें।
- संभावित कार्रवाई: चौकीदारों को निलंबित कर दिया जाएगा।
- लेकिन क्या इससे समस्या खत्म हो जाएगी? क्या चौकीदारों की शराब पीने की प्रवृत्ति रुक जाएगी?
- या फिर अवैध शराब का कारोबार यूं ही जारी रहेगा?
📢 तो क्या सचमुच शराब पीना चौकीदार बंद कर देंगे?
तो क्या सचमुच शराब पीना चौकीदार बंद कर देंगे। या फिर आम लोग, या यूं कहें कि पुलिस जिस शराब के बड़े-बड़े कार्टन के साथ तस्वीरें छपवाती हैं, या आम के बगीचे या कहीं किसी लावारिस वाहनों से शराब की खेप पकड़ती है, वह शराब की खेप आनी बंद हो जाएंगीं। नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है?
📢 शराब को बिहार में एक हौवा बना दिया गया है?
दरअसल, शराब को बिहार में एक हौवा बना दिया गया है। इस तरीके की बंदी पर सवाल उठना लाजिमी है। कठोर, निचले, ग्राउंड लेवर पर कार्रवाई नहीं हो रही। सरगना नहीं पकड़ा जाता। कोरियर पकड़े जा रहे हैं। क्यों? इसपर कोई ठोस पहल बिहार स्तर के शीर्ष पुलिस के अधिकारी क्यों नहीं कर रहे? मंशा में खोट है या सचमुच शराब की जरूरत हर किसी को हो?
📢 अगस्त 24 में, इसी दरभंगा में ?
अगस्त 24 में, इसी दरभंगा में शराबबंदी कानून की धज्जियां उड़ाते चौंकाने वाली वीडियो सामने आई थी। केवटी थाना क्षेत्र के दो चौकीदारों ने एक युवक की जन्मदिन पार्टी में शराब पार्टी और बार बालाओं के अश्लील डांस के प्रायोजक के रूप में सामने आए थे।
📢 केवटी के बाद अब बहेड़ी के?
रनवे इलाके में आयोजित इस पार्टी में कुछ स्थानीय लोग, कुछ शराब कारोबारी और केवटी थाना के दो चौकीदार सोनू पासवान और ओम पासवान शामिल थे। मगर, हुआ क्या? क्या चौकीदारों ने शराब पीनी छोड़ दी। सोनू पासवान और ओम पासवान के बाद अब बहेड़ी में फिर एक नया पासवान…?
📢 सोचना होगा…?
सोचना होगा? समाज से कुविकृति यूं ही नहीं चली जाती। क्योंकि आज की तारीख में कोई घर ऐसा बचा है जिन्हें शराब की दरकार हो, जो शराब पीना चाहते हों और उन्हें शराब ना मिलें…आपके घर के बगल से शराब पहुंच रही है, क्या सरकार और पुलिस प्रशासन इससे बेखबर है? अगर, हां…तो फिर बातें हैं बातों का क्या…
निष्कर्ष: शराबबंदी कानून को लेकर सख्ती जरूरी
बिहार में शराबबंदी को सफल बनाने के लिए केवल दिखावटी कार्रवाई नहीं, बल्कि ठोस रणनीति की जरूरत है।
- शराब माफियाओं पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
- थाना स्तर पर गहन जांच की जरूरत है कि पुलिस अधिकारी खुद इस कानून का पालन कर रहे हैं या नहीं।
- शराबबंदी की समीक्षा कर इसे व्यावहारिक बनाया जाना चाहिए।
शराबबंदी कानून का भविष्य क्या होगा? क्या यह सिर्फ एक राजनीतिक मुद्दा बनकर रह जाएगा? या सच में बिहार में शराबबंदी सफल होगी? यह सवाल अब जनता के मन में घर कर चुका है।