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13 अगस्त, 2024
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जो रहबर भी ये हमदम भी ये ग़म-ख़्वार हमारे…,आइए, मनाते हैं शिक्षक दिवस…. Manoranjan Thakur के साथ 

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हम आज इस शिक्षक दिवस पर याद कर रहे हैं, दरभंगा के यशस्वी उन गुरुओं को जो दरभंगा की शैक्षणिक उत्थान में अपना बहुमूल्य विमर्श कर रहे हैं। शिक्षा को विस्तृत-विस्तारित मानक तक स्थापित करने में जुटे हैं। चाहे बात, महात्मा गांधी शिक्षण संस्थान के निदेशक हीरा कुमार झा हों, ओमेगा स्टडी सेंटर के निदेशक सुमन कुमार ठाकुर, दरभंगा पब्लिक स्कूल के विशाल गौरव हों या फिर रेडिएंस क्लासेस के निदेशक आशुतोष झा, इनकी सार्थकता, सटीकता, कर्त्तव्यनिष्ठता और समर्पण ने दरभंगा की शिक्षा को जिस नववाद से जोड़ा है, इस खास दिवस पर देशज टाइम्स परिवार की ओर से ऐसे शिक्षकों-गुरुओं-मार्गदर्शक जो रहबर भी ये हमदम भी ये ग़म-ख़्वार हमारे, उस्ताद ये क़ौमों के हैं मे'मार हमारे….को कोटि-कोटि प्रणाम…अभिनंदन…।

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म आज गौरवान्वित हैं, यह सोचकर हमारा संपूर्ण भारत वर्ष आज गुरूओं के आदर में श्रद्धानिवेदित है। वैसे, हर देश में शिक्षक दिवस मनाने की सनातन पंरपरा है।

सनातन इस वजह से, शिक्षकों का सम्मान ना कभी घटा है। न कभी घटेगा। वशिष्ठ, बुद्ध, चाणक्य, टैगोर, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद, राधाकृष्णन ने जिस निहित क्षमता को समृद्ध कर, मूल्यों और मनोवृत्तियों को गढ़ा, आज उसी पदचिह्नों पर चलकर मेरे स्मरण में, मन की हर सांसों में गुरु के आदर्श और उनकी तेजस्वी छवि संपूर्ण आकार लेकर एक परिपक्व आदर्श के रूप में सामने खड़ा है।

बदलते दौर में चीजें जरूर बदलती या धुंधलती दिख रहीं हों। या फिर, हर देश के लिए हर तारीख भलें अलग-अलग हों लेकिन मकसद, लक्ष्य, अभिप्राय यही है, हम शिक्षकों का सम्मान करते हैं, यही हमारा, हर व्यक्ति का धर्म था, है और रहेगा।

ले, चीन में दस सितंबर। अमेरिका में छह मई। ऑस्ट्रेलिया में अक्टूबर का अंतिम शुक्रवार। ब्राजील में पंद्रह अक्टूबर। पाकिस्तान में पांच अक्टूबर। ओमान, सीरिया, मिस्र, लीबिया, संयुक्त अरब अमीरात, यमन, सऊदी अरब, अल्जीरिया, मोरक्को समेत कई इस्लामी देशों में 28 फरवरी को शिक्षक दिवस मनाया जाता हो। अपने देश में यह पांच सितंबर, डॉ. राधाकृष्णन के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता हो। मगर, मकसद सिर्फ एक है…शिक्षकों की पूजा। गुरुओं का सम्मान।

शिक्षक यानी, हर व्यक्ति के जीवन की रीढ़। विद्यार्थियों को जीवन का नया अर्थ। सही रास्ता दिखलाने वाला। गलत करने से जो रोकता हो।

बिल्कुल,
कबीर दास की मानें,
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़ै खोट, अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।

यानी, संपूर्णता का प्रथम अध्याय। नव जीवन का उत्साह। समर्थ धैर्य को वाचने वाला। एक स्वस्थ व्यक्ति। जो विकारों से दूर हो। जो लावण्य की धार हो। राष्ट्र का विपुल प्रकाश स्तंभ एकमात्र निःस्वार्थ व्यक्ति जो शिक्षक है। जिसके मन में विकास की कामना। व्यक्तित्व को ढालते। सारा ज्ञान देते। पूरी दुनिया में अंधकार होने के बाद भी प्रकाश बिखेरते। हमारे ज्ञान। कौशल के स्तर। विश्वास को बढ़ाते। शिक्षक एक मार्गदर्शक। गुरु। मित्र। कई भूमिकाओं में।

बतौर, संत तुलसी दास,
“जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।

यानी, भगवान, गुरु एक व्यक्ति को वैसे ही नजर आएंगे जैसा कि वह सोचेगा। अर्जुन, भगवान श्रीकृष्ण को अपना मित्र मानते थे। वहीं मीरा भगवान श्रीकृष्ण को अपना प्रेमी। यही सटीक है, उन आदरणीय शिक्षकों पर जो समाज के पथ-प्रदर्शक हैं।

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यही वजह है, मानव सभ्यता के संदर्भ में अध्यापन-कार्य न केवल दूसरे व्यवसायों की तुलना में सदैव विशेष महत्व का रहा है, बल्कि अन्य सभी व्यवसायों का आधार भी है। तभी तो, दुनिया के एक सौ से अधिक देशों में इस सनातनी परंपरा की नींव आज भी उतनी ही पैठ और गहरी है।

भारत में 1962 की यह सनातनी परंपरा गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए की सीख दे रहा है।

तभी, आज भी गुरु का स्थान ईश्वर से भी बड़ा है। आज, संपूर्ण विश्व और सभी देशों महापुरुषों ने शिक्षकों को राष्ट्र निर्माता की संज्ञा दी है। आज भले ही शिक्षा प्राप्त करने या ज्ञानोपार्जन के लिए अनेक तकनीकी साधन सुलभ हैं, लेकिन एक योग्य शिक्षक की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता। शिक्षक हर समाज के असली शिल्पकार हैं। जो, अपनी मर्यादा, अनुशासन, ज्ञान और विवेक से व्यक्ति ही नहीं संपूर्ण देश के भविष्य के वास्तविक आकृतिकार बने हैं। हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जा रहे हैं।

राधाकृष्णन का कहना था, हमें मानवता को उन नैतिक जड़ों तक वापस ले जाना चाहिए, जहां से अनुशासन और स्वतंत्रता दोनों का उद्गम हो

शिक्षा के परिसर में अध्यापक के व्यवहार के जो नैतिक और आचारगत परिणाम होते हैं। वे समाज की नैतिक परिपक्वता और विवेक को निश्चित करते हैं। ऐसे में, शिक्षक को जांचने-परखने के लिए ऊंचे निष्कर्ष और मानक तय किए जाते हैं, जिन्हें दूसरे व्यवसाय के लोग आसानी से नहीं स्वीकारते।

आचरण में उचित और अनुचित का विवेक। योग्यता, कुशलता और गुणवत्ता जिस व्यवहार से झलकती है। प्रतिबद्धता, काम के प्रति समर्पण, सत्यनिष्ठा, ईमानदारी और पूर्वाग्रहमुक्त आचरण की मिसाल जो प्रस्तुत करते हैं। मानसिक और व्यावहारिक रूप से दूसरों की भलाई करने में जिन्हें महारथ हासिल है।

विष्य का नज़रिया रखने वाले एक इंसान जिसकी प्रतिष्ठित, प्रेरणास्रोत और हमेशा हितैषी स्वभाव, सत्यपथ पर जाने की राह दिखाता है। चरित्र-निर्माण करते मनुष्यता और देश के सर्वोच्च नागरिक बनाने की लालसा और कर्तव्यनिष्ठता का जो सबसे बड़ा पैमाना है, वही गुरु है।

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यही वजह है, शिक्षक का जीवन राष्ट्र के लिए अतुलनीय पाथेय है। और, उसी गुरु की समाज में ऊंची साख है और रहेगा। वह निर्भय है। बिना किसी लाग-लपेट के लोक-हित की बात कहता है। समाज, आर्थिक कारोबार, संचार, प्रशासन, मूल्य, मानक, भूमिकाएं सभी नए ढांचे में खुद को ढालते जो समाज के हर वर्ग को समेटे शिक्षा का क्षेत्र विस्तृत और विस्तारित करने में जुटा है। नैतिक निर्णयों के क्षेत्र को जो फलक पर बैठाए हुए व्यवसाय और शिक्षण-प्रक्रिया के नैतिक मानकों की उलझनों को दरकिनार करता हर पल मिल रहा है।

सैद्धांतिक रूप में मानव मूल्य, मानवीय गरिमा, केंद्रीय सरोकार, उसका संपोषण बनें। आज शिक्षक-प्रशिक्षण का अहं हिस्सा बनकर हमारे बीच अलगाव और नासमझी की ठोर को थामे खड़ा मिल रहा है।

मानवीय रिश्ता/ उनके अधिकारों का आदर/ सामुदायिक भावना/ भागीदारी/ सामाजिक मूल्यों/ मानकों के साथ न्याय की रक्षा/ आचरण की पवित्रता और सदाशयता/ पक्षपातविहीन रहना/ समानुभूति और निष्ठा के साथ नैतिक क्षमता और नैतिक योग्यता को दुर्लभ संयोग में बदलता/ अकर्मण्य बने रहने की दुविधा/ सुविधाभोगी होने की प्रवृत्ति/ नकारात्मक रिश्ता रखने की जिद/ खराब आचरण/ अपर्याप्त जानकारी/ अनुशासन की कमी/ अनैतिक भावनाएं/ अपर्याप्त तैयारी/ और आत्म-नियंत्रण की कमी को अपने मूल शब्दों से दरकिनार करता जो संज्ञानात्मक और भावात्मक कल्याण के साथ हमारे बीच है, वही तो हमारा शिक्षक है।

अकादमिक प्रशासन और नेतृत्व की संवेदनहीनता के सवाल को बिना किसी झमेले में पड़े, हितों की उपेक्षा करने और शिक्षण के प्रसंग में अनैतिक कार्यों के दायरे में डरावने अभ्यास/ निर्णय लेने के गैरकानूनी तरीके/ स्वीकृत नीतियों का उल्लंघन/ विद्यार्थियों को उपलब्ध विकल्पों की अस्वीकृति और उपेक्षा/ सार्वजनिक रूप से अवमानना और उपहास के दुष्परिणाम/ शिक्षा के परिसरों में हिंसा/ दुराचार, आत्म-हत्या/ दुर्व्यवहार  के बीच विद्यार्थियों को मानसिक मजबूती देते जो आज निरंतर खड़ा है। वही तो गुरु है।

भले, सुरक्षित शैक्षिक परिवेश की राह में आज बड़ी चुनौती खड़ी हो, नैतिकता और शिक्षा प्रक्रिया (पेडागोजी) के बीच के संबंध को न्याय और ईमानदारी की भावना से दायित्व के साथ स्थापित करना जरूरी लगता हो, लेकिन सामाजिक मूल्यों और मानकों का पालन, गुणवत्तापूर्ण सीखने-सिखाने की प्रक्रिया छात्रों की आवश्यकताओं को जान कर ईमानदार और न्यायपूर्ण समाधान आज वही दे रहा है जो शिक्षक है।

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मानवीय गरिमा का आदर स्थापित करते, प्रभावी संचार, सामूहिक दायित्व का निर्वाह और निजता की रक्षा को जरूरी हथियार मानते आज के संदर्भ में अध्यापन, मूल्यांकन और अभिव्यक्ति समेत शिक्षा के विभिन्न पक्षों में आधुनिकता का समुचित उपयोग करने की प्रभावी नीति तात्कालिक जरूरतों में शुमार रखने वाला एक शिक्षक ही है।

डॉ.राधाकृष्णन का शिक्षकों के बारे में मत था कि शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे। वास्तविक शिक्षक तो वह है जो छात्र को आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करे। शिक्षा अत्यंत ही अनमोल और मूल्यवान है। इससे विद्यार्थी अपने स्वयं के ज्ञान का विस्तार तो करता ही है, साथ ही देश को भी मजबूत करता है।

डॉ. राधाकृष्णन ने अपनी पुस्तक आधुनिक भारत के राजनीतिक विचारक में भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में शिक्षकों और शिक्षा के महत्व को बताया है। डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षक देश के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसी वजह से हुए अधिक सम्मान के योग्य होते हैं।

भारत में सनातन काल से गुरु और शिष्य का संबंध समर्पण की भावना से परिपूर्ण रहा है। गुरु देश के भविष्य को संवारता है। वर्तमान पीढ़ी देश का भविष्य है। गुरु जैसे संस्कार युवा पीढ़ी को देंगे वैसा ही देश का चरित्र बनेगा।

म आज इस शिक्षक दिवस पर याद कर रहे हैं, दरभंगा के यशस्वी उन गुरुओं को जो दरभंगा की शैक्षणिक उत्थान में अपना बहुमूल्य विमर्श कर रहे हैं। शिक्षा को विस्तृत-विस्तारित मानक तक स्थापित करने में जुटे हैं। चाहे बात, महात्मा गांधी शिक्षण संस्थान के निदेशक हीरा कुमार झा हों, ओमेगा स्टडी सेंटर के निदेशक सुमन कुमार ठाकुर,रभंगा पब्लिक स्कूल के विशाल गौरव हों या फिर रेडिएंस क्लासेस के निदेशक आशुतोष झा, इनकी सार्थकता, सटीकता, कर्त्तव्यनिष्ठता और समर्पण ने दरभंगा की शिक्षा को जिस नववाद से जोड़ा है, इस खास दिवस पर देशज टाइम्स परिवार की ओर से ऐसे शिक्षकों-गुरुओं-मार्गदर्शक जो रहबर भी ये हमदम भी ये ग़म-ख़्वार हमारे, उस्ताद ये क़ौमों के हैं मे’मार हमारे….को कोटि-कोटि प्रणाम…अभिनंदन…। आइए, मनाते हैं शिक्षक दिवस…. Manoranjan Thakur के साथ

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