दरभंगा, देशज टाइम्स अपराध ब्यूरो। शहर के विभिन्न चौक-चौराहों पर लगे ठेले के कारण जाम की समस्या हमेशा बनी रहती है। आप जहां देखेंगे वहीं यह नजारा देखने को मिल जाएगा।
यहां तक कि सड़कों पर बोरी डालकर भी लोग बैठ जाते हैं। अब सवाल उठना लाजमी है कि इसपर नगर निगम सख्त क्यों नहीं होती या पुलिस कर्मी इसे हटाते क्यों नहीं है? क्योंकि ठेले और पुलिस वालों के बीच यह रिश्ता क्या कहलाता है, पढ़िए संजय कुमार राय की आंख खोल देने वाली यह रपट
आपको बता देना चाहते हैं कि सड़कों पर ठेला कोई और नहीं पुलिस वाले लगवाते हैं। और, इनसे भारी भरकम नजराना वसूलते हैं। एक ठेले वाले से साप्ताहिक 14 सौ रुपए की अवैध उगाही की जाती है। अब एक ठेले से मासिक वसूली की बात करें तो 56 सौ रुपए की नाजायज वसूली की जाती है।
अब लहेरियासराय थाना से हजमा चौक एवं हजमा चौक से लहेरियासराय बस स्टैंड और उसके इर्द-गिर्द तकरीबन सौ से ज्यादा ठेले लगते हैं। अब मासिक अगर एक ठेले से 56 सौ रुपये की वसूली होती है तो सौ ठेले में पांच लाख साठ हजार की नाजायज वसूली मासिक हो जाती है।
अगर इसे एक साल का नाजायज वसूली जोड़े तो तकरीबन 67 लाख बीस हजार की वसूली हो जाती है। अब आप सोच रहें होंगे कि यह वसूली कौन करता है, तो जाहिर सी बात है कि या तो आम गुंडे कर रहें होंगे या पुलिस वाले गुंडे कर रहें होंगे।
अब आम गुंडे कि क्या बिसात कि इन जगहों पर से वसूली कर लें और यहां से चला जाए। क्योंकि चारों तरफ पुलिस ही पुलिस है। जब इस बात की सच्चाई का पता लगाने की कोशिश की तो सच सामने आया। लेकिन किसी की क्या औकात कि कोई कुछ बोल दे क्योंकि यहां पुलिस वाले गुंडे ही पैसे वसूलते हैं और वो भी एक दो रुपए नहीं कई लाखों में। अगर आपने बोलने की हिम्मत जुटाई तो बस गोली मार देने की धमकी दे बैठते हैं। एसडीपीओ सदर के कार्यालय के भीतर गाड़ी लें जाने में स्वयं एसडीपीओ सदर को दिक्कत होती है। इनके मुख्य सड़क गेट के सामने ठेला ही ठेला। यही नजारा दरभंगा टावर चौक का है। यहां भी पुलिस वाले ही पैसा वसूलते हैं। फिर यहां की वसूली को जोड़ दे तो करोड़ में पहुंच जाएगी।
पूरे दिन लाखों लोग इसके कारण जाम की समस्या से जूझते हैं। पर, जिला प्रशासन मूकदर्शक है। पुलिस प्रशासन अवैध उगाही करती है तो फिर बात ही क्या है।
इस बाबत एसडीपीओ अमित कुमार से पूछा कि आपके गेट पर और सड़क पर इतनी ठेले लगते हैं। अगर बाहर जिले के लोग इस तरह एसडीपीओ कार्यालय के गेट और अगल बगल ठेला देखेंगे तो क्या सोचेंगे।
फिर उनका जवाब था कि ठेले वाले हैं। गरीब हैं। उनके इस उत्तर से में भी सहमत हुआ लेकिन भावनाओं से ना पुलिसिंग की जा सकती ना ही अवैद्य रूप से चल रहे कार्यों को रोका जा सकता है।
इस बाबत हमने लहेरियासराय थानाध्यक्ष से भी कहा लेकिन उन्होंने भी इस बात से पलटी मार दी। जिला प्रशासन ने इन सभी को ठेला लगाने या सब्जी बेचने की अनुमति पोलो मैदान के आगे दे दी थी। बावजूद, सड़कों पर ठेले लगते है। पुलिस वाले इनसे रंगदारी के तौर पर पैसे वसूलते हैं। अब जिनकी कमाई सालाना 50-60 लाख रुपए हो जाय तो उनके मन के तेवर और पुलिस की वर्दी से इतना तो तय है कि ये वर्षों से जमे पुलिस के दूसरे रूप में पुलिस वाले गुंडे ही हो सकते हैं।
कई लोग दबे जुबान कहते हैं कि इस मामले की जांच सख्त और ईमानदार पुलिस पदाधिकारी से करायी जाए ताकि समय रहते इस पर पाबंदी लगे। और लोगों को राहत मिलें। वरना एक दिन ऐसा भी आ जाएगा जब नगर निगम और थाना पुलिस इसे खाली कराने पहुंचेगी तो इस भीड़ का उन्हें सामना करना पड़ेगा।