दरभंगा | जगत जननी मां दुर्गा की आराधना के पावन पर्व शारदीय नवरात्रि के तृतीय दिवस पर मां चंद्रघंटा की पूजा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय कार्यकारणी मार्गदर्शक मंडल सदस्य पंडित जिवेशवर मिश्र जी ने बताया कि मां दुर्गा का यह रूप अत्यंत शौर्य, पराक्रम और समता का संगम है।
पूजा का महत्व और प्रतीक
मां चंद्रघंटा के मस्तक पर अर्धचंद्र के आकार की घंटा शोभायमान है।
माता चंद्रघंटा साधक को शत्रु एवं संकट से मुक्त करती हैं।
उनका पूजन भक्तों के हृदय में साहस, आत्मविश्वास और जीवन में स्थिरता प्रदान करता है।
मां का स्वरूप युद्धप्रिय और करुणामई दोनों है।
आध्यात्मिक दृष्टि से इस दिन उपासना करने से साधक का मणि पूरक चक्र जागृत होता है, जिससे ऊर्जा, पराक्रम और आत्मबल की प्राप्ति होती है।
सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संदेश
असनातन संस्कृति की रक्षा में मां के पूजा का उद्देश्य अन्याय और अधर्म का प्रतिकार करना ही धर्म की रक्षा है।
पूजा स्मरण कराती है कि शक्ति ही सृष्टि का मूल आधार है और नारी को करुणा के साथ-साथ शौर्य का भी स्वरूप मानना चाहिए।
मां चंद्रघंटा की पूजा से जन-जन के मन में सनातन संस्कृति के लिए आत्मबल, संयम और कर्तव्यपरायणता का बोध होता है।
इन गुणों से संपन्न साधक वसुधैव कुटुंबकम के महामंत्र का जाप करते हुए अपना जीवन चराचर जगत में जीव-जंतु, वनस्पति एवं सभी के कल्याण के लिए, पर्यावरण की सुरक्षा, मानवता की रक्षा और राष्ट्र रक्षा में अपना सर्वस्व अर्पित करने का भाव प्राप्त करता है।