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14 अगस्त, 2024
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Madhubani के बेनीपट्‌टी का धनौजा गांव…जहां प्राकृतिक घटाओं के बीच पूजा, नेहा, महिमा, अमिषा और राधा करतीं अपनी सहेलियों संग हंसी ठिठौली, क्योंकि, इनकी सुरलहरियों से गूंजायमान है मधुश्रावणी की हर नवविवाहिताओं का घर-आंगन

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फोटोः बेनीपट्टी के धनौजा में फुल लोढ़कर जाती नवविवाहिताएं

बेनीपट्टी, मधुबनी देशज टाइम्स। संपूर्ण मिथिलांचल क्षेत्र में हर वर्ष की भांति इस बार भी श्रावण में नवविवाहितों का प्रसिद्ध पर्व मधुश्रावणी अपने परवान पर चढ़ने लगा है। इस पर्व के आने से प्रखंड क्षेत्र सहित पूरे मिथिलांचल में आनंदमय बहार आ गया है।

जब नवविवाहिता सज धज कर फुल लोढ़ने के लिए बाग बगीचे में निकलती हैं तब मानों घर आंगन, बाग बगीचा, खेत, खलीहान व मंदीर परिसर में इनकी पायलों की झंकार छटा बिखेर देतीं हैं और मैथिली गीतों से माहौल में अपना अलग ही रंग बिखेरकर माहौल को मनमोहक बना देती हैं।

जब नवविवाहिता की टोली फूल लोढ़ने को निकलती हैं तो उनका रुप, श्रृगांर, गीत और सहेलियों में परस्पर प्रेम देखते ही बनता है। बता दें कि नवविवहिता के द्वारा आदिकाल से मनाया जाने वाला 15 दिनों का यह अति महत्वपूर्ण पर्व अपने सुहाग की लंबी आयु के लिए किया जाता है।

नागपंचमी के दिन से निर्जला व्रत के साथ नवविवाहिताएं इस पर्व को आरंभ करती हैं और लगातार पंद्रह दिनों तक निष्ठापूर्वक रहकर अखा अरवाइन भोजन ग्रहण करती हैं। हालांकि इसबार अधिकमास रहने के कारण यह पर्व इसबार एक महीनें तक चला है।

इधर, प्रतिदिन महिला पंडिताइन की ओर से इस पर्व से जुड़ी किंवदंतियो की कथाओं का वाचन किया जाता है और नवविवाहिताएं ध्यानमग्न होकर कथा का निष्ठा व श्रद्धापूर्वक श्रवण करतीं हैं।

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सायंकाल में नवविवाहिताएं टोली बनाकर बाग बगीचों में फूल लोढ़ने के लिए के लिये निकलती है तो प्राकृतिक घटाओं के बीच सहेलियों के साथ आपस में हंसी-ठिठोली का अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है।

बांस के डलिया में चुने हुये बासी फूलों से प्रतिदिन कथा वाचन करने का विधि विधान है। नवविवाहिता ससुराल से आये वस्त्र व खाद्य सामाग्रियों का ही उपयोग इस पंद्रह दिनों में करती है।

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वहीं धनौजा गांव की पूजा, नेहा, महिमा,अमिषा और बेहटा की राधा सहित अन्य लड़कियों ने बताया कि अपने सुहाग के मंगल कामना के लिये नविवाहिताओं की ओर से भगवान शिव एवं विषहरा की आराधना की जाती है। और यह पर्व सभी नवविवाहिताओं के जीवन में महज एक बार विवाहोत्सव के तुरंत बाद पड़ने वाले पहले सावन महीने में ही रखने का मौका मिलता है।

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नवविवाहिताओं को 15 दिनों तक सावन हरा-भरा और मधुरतम सा महसूस होता है इसीलिए भी इस पर्व को मधुश्रावणी कहा जाता है। यह पर्व अपने आप में एक अलग महत्व रखता है और सभी सखी सहेलियों से मुलाकात भी हो जाती है।

साथ ही पर्व के अंतिम दिन नवविवाहिता के घुटनों पर आग युक्त टेमी से दागा जाता है। जिससे फफोले उगने आवश्यक होते हैं हालांकि एक और तीन फफोले बेहद शुभ मानें जाते हैं। मान्यता है कि फफोला जितना बड़ा होगा, पति की आयु भी उतनी ही लंबी होगी।

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