चुनावी कांव-कांव| राजनीतिक डेस्क, देशज टाइम्स| बिहार में बड़ी राजनीतिक हलचल है। इस हलचल में बीजेपी भी है। जदयू तो राजद भी है। हालांकि, इसकी लपेटे में उपेंद्र कुशवाहा हैं। ललन सिंह हैं। राजद के नेता हैं। जदयू के तेवर हैं। इस्तीफा है। पेशकश-दावेदारी है। शामिल होने का न्यौता है। बधाई है। सत्ता की बेदखली है। तो वहीं, बड़ी बात यह, सीएम नीतीश पर बोलना मना है। कुछ भी, कहीं भी बोलना नहीं है। यही हिदायत है। शीर्ष नेतृत्व का आदेश है। साफ है, नीतीश कुमार पर कुछ मत बोलना…। यहीं से 2024 की कुर्सी का रास्ता (It is forbidden to speak on Nitish Kumar…!) खुलता है।
हालिया सर्वे नए समीकरण को जन्म देते हैं। सर्वे में इंडिया को बढ़त दिखाना, बीजेपी को भला कहां पचने वाला है। सो, बिहार सीधा मोदी के रडार पर है। पीएम मोदी लगातार बिहार की गतिविधियों पर पैनी नजर बनाएं हुए हैं। शुरूआत, नीतीश कुमार के सेक्स पर बयान के बाद त्वरित मोदी का सामने आना, आज पटना के गंगा पुल पर छह लेन पुल की स्वीकृति…बार-बार अमित शाह का आना, नड्डा का आना, उस चालीस सीटों की कवायद है, जिसके मध्य में नीतीश कुमार निसंदेह खड़े हैं। नीतीश के बिना बिहार शायद मुमकिन है। अगर, गद्दी पाटलिपुत्र की चाहिए तो सामने नीतीश ही खड़े मिलेंगे जो फिलहाल,अभी दिल्ली में प्रवास कुछेक प्रवास करेंगे। शायद, तीन विकल्पों पर वहीं से बिहार का विकल्प खुलेगा।
तय है, सभी जानते हैं। हर बिहारियों की जुबान पर है कि लोकसभा चुनाव को लेकर बिहार तैयार हो रहा है। सियासी हलचल तेज हो गई हैं। चर्चा है, हकीकत 29 को सामने आएगा कि JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह बनें रहेंगे या जाएंगें।
क्या, सीएम नीतीश कुमार नए राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेंगे। जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर ललन के इस्तीफे के बाद ताज नीतीश के सिर बंधेगा या कोई नया चेहरा सामने आएगा या जैसा कि नीतीश कुमार, खुद ललन सिंह, विजेंद्र चौधरी ने इन बातों से इंकार किया है तो क्या मान लिया जाए कि ललन सिंह पूर्ववत अध्यक्ष की कुर्सी पर विराजमान दिखेंगे। मगर, ऐसा होता दिख नहीं रहा। सुशील मोदी की बातें सच होती दिख रहीं। जदयू में कुछ तो है जो बेचैनी लिए हुए है।
वहीं, उपेंद्र कुशवाहा के जदयू में शामिल होने की भी चर्चा तेजी से फैल रही है। जदयू और कुशवाहा के बीच पिछले कुछ दिनों में कई बठके हुई है। वहीं, कुशवाहा का कहना है कि नेता नीतीश कुमार का कद बहुत बड़ा है। अगर नीतीश कुमार दोबारा से एनडीए में वापसी करना चाहते हैं। तो एनडीए में उनकी पैरवी करने के लिए हम तैयार हैं। कुशवाहा और जदयू के बीच उलझे नीतीश ने जदयू के विधान पार्षदों की बैठक बुलाई है। यह बैठक तब बुलाई गई है जब नीतीश को राष्ट्रीय पदाधिकारियों और राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के लिए दिल्ली जाना है।
मुख्यमंत्री आवास पर नीतीश ने आज बैठक बुलाई है इस बैठक के बाद प्रेस रिलीज की गई है जिसमें बताया गया है कि विधान पार्षदों ने नीतीश कुमार से मिलकर नियोजित शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा दिए जाने पर उन्हें बधाई दी है। इस बैठक में जदयू के कई नेता शामिल हुए है। इनमें विधान पार्षद प्रो. वीरेंद्र नारायण यादव, विधान पार्षद डॉ. संजीव कुमार सिंह, विधान पार्षद प्रो. संजय कुमार समेत कई नेता शामिल हुए।
कयास यह भी है कि फिर से नीतीश एनडीए का हिस्सा हो जाएंगें। हालांकि, गिरिराज सिंह इसे सपने में भी सच होने से सिरे से नकारते हैं। प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष सम्राट चौधरी हों या अश्विनी चौबे, सभी इस बात से साफ इनकार करते रहे हैं। मगर, सियासत में कुछ भी संभव है। यह बात भी सही है।
खैर, माना यह भी जा रहा, कयास यह भी हैं, राजद और जदयू के रिश्ते बस चंद दिनों के हैं। इस बीच, अब लालू की पार्टी राजद, तेजस्वी यादव की पार्टी राजद पूरे मामले में सर्तक है। इस शीर्ष नेतृत्व ने साफ निर्देश दिए हैं, पार्टी का कोई नेता सीएम नीतीश को लेकर कोई बयान नहीं देगा। ना ही अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर कोई पोस्ट करेगा।
यह आदेश सीधे पार्टी नेतृत्व का है। इसके बाद सभी प्रवक्ताओं को भी पत्रकारों से बातचीत पर रोक लगाई जा रही है। ऐसे में, जब राहुल गांधी ने नीतीश कुमार से अपने आगामी यात्रा को लेकर बातचीत की, हो ना हो, नीतीश, इंडिया से ही बाहर हो जाएं।
बिहार में जदयू की आतंरिक स्थिति चरमराई सी है। पार्टी अध्यक्ष ललन सिंह के इस्तीफे के बीच चर्चा तो लोहे वाली गरम है कि नीतीश राजद के साथ संबंध तोड़ सकते हैं। खबर यह भी है कि राजद सीएम की कुर्सी चाहता है। कारण, 2022 में भी एनडीए से रिश्ता तोड़कर राजद के साथ सरकार बनाने के दौरान ऐसी ही स्थिति थी जब पार्टी के सभी नेताओं को किसी प्रकार के बयानबाजी पर रोक लगाने के निर्देश दिए गए थे। इसके बाद बिहार में सरकार बदल गई थी।