Climate-Friendly Farming: धरती का मिजाज बदल रहा है, कभी बेमौसम बारिश तो कभी भीषण सूखा। ऐसे में अन्नदाताओं के सामने अपनी फसल बचाने की चुनौती पहाड़ सी खड़ी है। इस बदलती चुनौती से निपटने और भविष्य की खेती को सुरक्षित बनाने के लिए अब किसानों को एक नई राह पर चलने को कहा जा रहा है, एक ऐसी राह जो प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर चलेगी।
किसानों के लिए वरदान ‘Climate-Friendly Farming’: बिहार में जलवायु अनुकूल खेती पर दिया जा रहा विशेष जोर
Climate-Friendly Farming: क्यों है आज की जरूरत?
बिहार के कृषि विशेषज्ञों और सरकारी एजेंसियों द्वारा किसानों को जलवायु-अनुकूल खेती (Climate-Friendly Farming) अपनाने के लिए लगातार प्रेरित किया जा रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से कृषि क्षेत्र को बचाना और किसानों की आय को सुरक्षित करना है। हाल के वर्षों में हमने देखा है कि अनियमित मॉनसून, अचानक बाढ़ या सूखे की स्थिति ने किसानों की कमर तोड़ दी है। ऐसी परिस्थितियों में पारंपरिक खेती के तरीकों से हुए नुकसान की भरपाई करना मुश्किल हो जाता है।
जलवायु-अनुकूल खेती के तहत ऐसे तरीके अपनाए जाते हैं जो पानी का कम उपयोग करें, मिट्टी की उर्वरता बनाए रखें, और रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों पर निर्भरता घटाएं। इसमें फसल विविधीकरण, जैविक खाद का उपयोग, वर्षा जल संचयन, और कीट प्रबंधन के प्राकृतिक तरीके शामिल हैं। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। ये पद्धतियां न केवल पर्यावरण के लिए बेहतर हैं, बल्कि लंबी अवधि में किसानों के लिए अधिक स्थायी कृषि लाभ भी प्रदान करती हैं। सरकार का लक्ष्य किसानों को ऐसी स्थायी कृषि (sustainable agriculture) पद्धतियों की ओर मोड़ना है, जो भविष्य के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकें।
कृषि विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सरकार किसानों को इन आधुनिक तकनीकों को अपनाने के लिए विभिन्न योजनाओं के माध्यम से आर्थिक सहायता और प्रशिक्षण भी प्रदान कर रही है। इससे किसान नई जानकारी प्राप्त कर रहे हैं और उन्हें अपने खेतों में लागू करने में सक्षम हो रहे हैं। यह पहल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। देश की हर बड़ी ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें: देश की हर बड़ी ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
कई सफल किसान, जिन्होंने इन तकनीकों को अपनाया है, अपने अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि कैसे उन्होंने कम लागत में बेहतर उपज प्राप्त की है। उनका कहना है कि शुरुआत में यह थोड़ा चुनौतीपूर्ण लग सकता है, लेकिन इसके दीर्घकालिक फायदे स्पष्ट हैं।
खेती की स्थायी पद्धतियों का महत्व और लाभ
जलवायु अनुकूल खेती न केवल किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त करती है, बल्कि यह मृदा स्वास्थ्य और जल संरक्षण में भी सहायक होती है। इन पद्धतियों को अपनाने से भूमि की उर्वरता बनी रहती है और पानी का सदुपयोग सुनिश्चित होता है। इसके परिणामस्वरूप, कम पानी और कम रासायनिक इनपुट के साथ भी अच्छी पैदावार संभव हो पाती है। यह हमारे पर्यावरण के लिए भी एक बड़ा कदम है, क्योंकि इससे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम होता है और जैव विविधता को बढ़ावा मिलता है।
आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। विशेषज्ञों का मानना है कि किसानों को अपनी फसलों का चुनाव करते समय स्थानीय जलवायु और मिट्टी की विशेषताओं का ध्यान रखना चाहिए। उदाहरण के लिए, सूखे वाले क्षेत्रों में ऐसी फसलें बोई जानी चाहिए जिन्हें कम पानी की आवश्यकता हो, वहीं अत्यधिक बारिश वाले क्षेत्रों में जल निकासी प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना चाहिए। यह सिर्फ खेती का एक तरीका नहीं, बल्कि भविष्य की खाद्य सुरक्षा की गारंटी भी है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
सरकार और कृषि विज्ञान केंद्र मिलकर किसानों को लगातार शिक्षित कर रहे हैं और उन्हें नवीनतम शोधों से अवगत करा रहे हैं। इसका लक्ष्य है कि बिहार का हर किसान जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहे और अपनी आय को दोगुना कर सके। यह समय की मांग है कि हम प्रकृति के साथ मिलकर काम करें, ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी हम उपजाऊ भूमि और स्वच्छ वातावरण छोड़ सकें।


