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मधेपुर के प्राथमिक विद्यालय विष्णुपुर खजुरी का मामला
फोटो :प्राथमिक विद्यालय विष्णुपुर खजुरी में पढ़ने को मजबूर बच्चे
मधेपुर, मधुबनी देशज टाइम्स। कभी संसद में तो कभी विधानसभा में माननीयों का वेतन बढ़ाने की बात पर पक्ष हो या विपक्ष सब एक साथ हामी भरते हुए तालियां बजाकर बिल पास करा लेते हैं। पर अगर कुछ नही बदला तो वो है शिक्षा। जो किसी भी देश या फिर राज्य की रीढ़ होती है।
कहने को तो सरकार शिक्षा पर भारी भरकम रकम खर्च करती है। पर जमीनी हकीकत कुछ और ही देखने को मिलती है। प्रखंड क्षेत्र के खजुरी गांव स्थित एक विद्यालय जिसके एक ही कमरे में बच्चे पढ़ते भी हैं, एमडीएम भी बनता है और कार्यालय एवं स्टोर रूम भी है। जी हां एक अजीब विडंबना है।आखिर शिक्षा विभाग को यह दुर्दशा दिखाई क्यों नहीं देती। क्लास रूम में ही बच्चों के बीच एमडीएम बनाया जाता है।
बात इतनी ही नहीं है, इसी कमरे में विद्यालय का कार्यालय एवं स्टोर रूम भी है। यह नजारा है मधेपुर प्रखंड के बरसाम पंचायत स्थित प्राथमिक विद्यालय विष्णुपुर खजुरी का। जिसे देखने भर से ही यह सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस तरह इन छोटे-छोटे बच्चों की जिंदगी को खतरे में डालकर पठन – पाठन किया जाता है। दो कमरे के इस प्राथमिक विद्यालय में लगभग 535 छात्र- छात्राएं नामांकित हैं।
विद्यालय में बच्चों की उपस्थिति भी अच्छी खासी रहती है। लेकिन बच्चों को बैठने तक के लिए जगह नहीं मिलती है। विद्यालय के प्रभारी शिक्षिका अनीता देवी ने बताया कि परीक्षा रहने के बावजूद भी मजबूरन कुछ बच्चों को घर भेज दिया। आखिर बच्चों को बिठाएं तो कहां। बरामदे पर चिलचिलाती धूप और उमस भरी गर्मी में बच्चे बैठे हैं। स्कूल में चार शिक्षक हैं। लेकिन रसोईया की संख्या नौ। एचएम छुट्टी पर देवघर गए हुए थे।
और छुट्टी के लिए दिए आवेदन जो विद्यालय शिक्षा समिति के नाम था उसे सहायक शिक्षक द्वारा स्वीकृत किया गया था। एक कमरे में बड़ी गैस सिलिंडर रख बच्चों के बीच खाना भी बन रहा है। प्रभारी शिक्षिका से जब पूछा गया कि बच्चों के बीच गैस सिलेंडर रखकर खाना बनाना जिससे खतरा भी हो सकता है, तो उन्होंने बताया कि आखिर क्या करें। जबसे विद्यालय बना है यही हाल है।
एमडीएम बनना भी जरूरी है, और बच्चों का पढ़ना भी है। वर्षों से यही हाल है।विद्यालय में जगह का घोर आभाव है। विद्यालय में जीर्ण – शीर्ण अवस्था में शौचालय है। किचेन का छत इस तरह जर्जर होकर झुक गया है। जिसे गिरने की आशंका में बन्द कर रखते हैं। आखिर इस लापरवाही और अनदेखी का जिम्मेदार कौन है। और क्या उन्हें इस विद्यालय की बदहाली नही दिखती या फिर देखकर भी आंखें बंद कर लेने की आदत सी पड़ गई है।
इन मासूम बच्चों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ करने का हक इन्हें आखिर किसने दिया। अगर कभी कोई अप्रिय दुर्घटना घटती है तो फिर क्या होगा, कौन होंगे इसके जिम्मेदार। सच मानिए तो शायद उस दिन इसकी जिम्मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं होंगे सब एक दूसरे पर उनकी जिम्मेदारी मढ़ते हुए निकल लेंगे।