मधुबनी। ‘जो स्वयं से प्रेम करता है, संसार में उसे सभी जगह प्रेम मिलता है। जो स्वयं का ध्यान रखता है और जो स्वयं को सम्मान देते हैं, संसार में उसे सर्वत्र सम्मान मिलता ही है। स्वयं की शक्ति पर विश्वास रखनेवाले को संसार में समस्त शक्तियां मिलती हैं और उसका जीवन सफल होता ही है।
लेकिन, इसके लिए कर्मशीलता जरूरी है। बिना कर्म किए संसार में श्रेष्ठता नहीं मिलेगी। संकल्पबद्ध होकर काम करने से जीवन सार्थक (Gurudev Shrimali said in Madhubani) बनेगा।’
उत्सवी माहौल में साधना शिविर का समापन, हजारों साधकों का हुआ जुटान
यह बातें परम पूज्य गुरुदेव नंदकिशोर श्रीमाली (Gurudev Shrimali) ने कही। मधुबनी के बाबू साहेब चौक स्थित शगुन वाटिका में सिद्धाश्रम साधक परिवार (निखिल मंत्र विज्ञान) के तत्वावधान में सोमवार देररात तक उल्लासपूर्ण वातावरण में आयोजित विश्वामित्र प्रणीत लक्ष्मी आबद्ध साधना शिविर में उपस्थित साधकों व धर्मावलंबियों को वह संबोधित कर रहे थे।
अपने प्रवचन में गुरुदेव श्रीमाली ने कहा कि समय का प्रबंधन सबसे बड़ा धन है। समय सबसे कीमती है। जो समय चला गया, वह फिर लौटकर नहीं आता। जिंदगी हमें रोज नए-नए अवसर देती है, लेकिन सीधा फल की ओर भागने से कुछ नहीं होने वाला। कर्म से भागने वाले को सफलता नहीं मिलती है। आशा, विश्वास और आस्था रहेगी तो सारा काम स्वतः हो जाएगा।
इसके लिए मन से सशक्त होने की आवश्यकता है। मन से कभी रिटायर नहीं होना है। इसके पूर्व गुरुदेव ने ऋषि वशिष्ठ द्वारा विश्वामित्र राजर्षि से ब्रह्मर्षि के रूप में संबोधन का प्रसंग सुनाते हुए जीवन को साधने के गुर सिखाए। कहा कि आज जो हमारा देश भारतवर्ष के नाम से जाना जाता है, वह भरत के नाम से है, जो विश्वामित्र के दौहित्र थे। विश्वामित्र ने अपनी साधना और तपस्या के बल पर लक्ष्मी को अपने अधीन यानी आबद्ध किया और किस प्रकार उन्होंने राजपाट का त्याग कर संसार को गायत्री मंत्र प्रदान किया, इस पर विस्तार से चर्चा की।
आंतरिक खुशी के लिए धन का श्रेष्ठ खर्च जरूरी
गुरुदेव ने बताया कि आध्यात्मिक खुशी का अर्थ प्रसन्नता से है। जब आप भीतर से प्रसन्न होंगे तो ही सफल जीवन जी सकेंगे। वहीं, दूसरी ओर भौतिक खुशी का अर्थ धनसंपदा से है, लेकिन जीवन में धन का श्रेष्ठ उपयोग नहीं करनेवाले के यहां लक्ष्मी कभी स्थाई नहीं रहती। जिस व्यक्ति में धन के श्रेष्ठ खर्च की कामना होगी, लक्ष्मी उसके घर आती ही रहेगी। लक्ष्मी चंचला होती है।
स्वास्थ्य, शिक्षा-दीक्षा धर्म और सबसे महत्वपूर्ण अपने मानसिक स्वास्थ्य व प्रसन्नता पर खर्च को ही श्रेष्ठ खर्च कहा जाता है। व्याधि, विवाद और ऋण की शीघ्र समाप्ति के लिए लक्ष्मी का प्रवाह आवश्यक है। मानसिक और आध्यात्मिक शांति में निवेश करोगे, तो ऋण की स्थिति कभी नहीं बनेगी। दूसरों के सुख से तुलना करने की बजाय अगर स्वयं की प्रगति पर ध्यान दोगे तो जीवन श्रेष्ठ होगा।
लाखों वर्षों से अटूट रहा है गुरु व शिष्य का संबंध
गुरु और शिष्य के संबंधों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि बदलते समय के साथ समस्त संबंधों में परिवर्तन आया है, परंतु लाखों वर्षों बाद भी गुरु-शिष्य का संबंध अटूट रहा है। विष और अमृत एक साथ नहीं रह सकता और गुरु अपने शिष्यों के जीवन के विष खत्म करने का ही काम करते हैं। गुरु-शिष्य का मिलन एक अकस्मात घटना होती है। गुरु के प्रति समर्पण, सदैव उनके निकट होने का जब एहसास हो जाता है, उस दिन आप सही मायने में अपने गुरु से जुड़ जाते हैं। यहीं से संबंध स्वतः घटित हो जाता है।
इस संबंध की पुष्टि के लिए भौतिक रूप से गुरु शिष्य का मिलन होता है। जिस प्रकार एक शांत तालाब में पत्थर मारने पर उसमें हलचल होती है, उसी प्रकार गुरु आपके जीवन में आकर एक हलचल के साथ विशेष बनाते हैं। गुरु की शक्ति और शिष्य के समर्पण से ही स्वयं में बदलाव संभव है। गुरु की धारा में बढ़ने के लिए एकदम खाली मन से उनके पास आओगे तो ही पूर्णता की शक्ति मिलेगी और जीवन के घड़े में कुछ ग्रहण करने के योग्य बन सकोगे।
निखिल परिवार में जुड़े सैकड़ों नए सदस्य
परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी महाराज (डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली) एवं वंदनीय माता भगवती की दिव्यतम छत्रछाया में आयोजित इस शिविर के दौरान सैकड़ों नए सदस्य निखिल परिवार से जुड़े। गुरुदेव श्रीमाली ने उन्हें गुरुदीक्षा प्रदान की और कई साधकों ने शक्तिपात के माध्यम से विशेष दीक्षाएं भी प्राप्त कीं।
इसके पूर्व मंच का संचालन कर रहे मनोज भारद्वाज ने साधकों को विधि-विधान के साथ विश्वामित्र प्रणीत लक्ष्मी आबद्ध साधना संपन्न कराई। शिविर में मधुबनी, दरभंगा, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, ओडिशा सहित देश के कोने-कोने से भारी संख्या में साधक-साधिकाएं उपस्थित रहे। इसके अलावा निकटवर्ती नेपाल और भूटान से ही कई साधकों ने शिविर में हिस्सा लिया। बड़ी संख्या में धर्मावलंबी भी इस शिविर में शामिल हुए और गुरुदेव के प्रवचन का लाभ लिया।
भजनों से देररात तक उत्सवमय बना रहा माहौल
शिविर के दौरान भजन मंच के कलाकार महेंद्र सिंह मानकर और उनकी मंडली द्वारा प्रस्तुत एक से बढ़कर एक भावपूर्ण भजनों ने वातावरण को निखिलमय बना दिया। निखिल नाम के हीरे-मोती…, महापुरुष जन्म लेंगे…, मेरा आपकी दया से सब काम हो रहा है… सहित अन्य भजनों की सुंदर प्रस्तुति से उन्होंने देररात तक समां बांधे रखा।
शिविर का समापन आरती व समर्पण स्तुति से हुआ। इस एकदिवसीय आयोजन को सफल बनाने में राजेंद्र कुमार लाल, भूपेंद्र सिंह, शोभा दास, शैलेंद्र दास, गिरीश प्रसाद, नरेश निखिल, मुरली प्रसाद यादव, राम मनोहर प्रसाद, उमाशंकर सिंह, गणेश कुमार, नवीन निश्चल, किरण कुमारी, पूनम लाल, नीलमणि दास, सविता कुमारी, कुमारी पूनम, साक्षी, संकल्प कर्ण, राहुल रंजन, प्रेमलता देवी, सौरभ रंजन, लक्ष्मी देवी, राजेश रावत, भाग्य नारायण ठाकुर, रतन महतो, धर्मवीर ठाकुर, पुरुषोत्तम सिंह, ललन सिंह, हरि की महत्वपूर्ण भूमिका रही।