Madhubani News। देखें PHOTO VIDEO| कारगिल युद्ध की गाथा सुनिए युद्ध के सूबेदार मेजर कृष्ण कांत झा से, जब पानी की बूंदों को तरसती थी मिलिट्री फौजें|देखें PHOTO VIDEO|
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1999 में हुई कारगिल युद्ध के सूबेदार मेजर बेनीपट्टी के नागदह के कृष्ण कांत झा ने बताया आंखों देखा हाल। जब, कारगिल युद्ध में पानी के लिए तरस जाया करती थी मिलिट्री फौजें। कुछ पानी की बूंदों और दालभरी पूरियों से चलता था काम। कारगिल युद्ध के दौरान मिशन में शामिल सूबेदार मेजर कृष्ण कांत झा की देखें PHOTO VIDEO|
बेनीपट्टी प्रखंड के नागदह गांव निवासी और सन 1999 में कारगिल युद्ध में भाग ले चुके शिवाजी के 12 वें रेजिमेंट के सूबेदार मेजर कृष्ण कुमार झा ने बताया कि “मिशन कारगिल” के दौरान फौजी पानी के लिये तरस जाया करते थे। बहुत ही मुश्किल से पानी की कुछ बूंदों और दाल भरी कुछ पूरियां खाने को मिलती थीं।
जवानों को स्नान किये कई दिन बीत चुके थे और कपड़ों से दुर्घन्ध सी आने लगी थी। सन 1999 में 8 मई से 26 जुलाई तक लड़ाई चली थी और 26 जुलाई को कारगिल विजय की घोषणा हुई थी। उस समय श्री झा सागर सेंटर में तैनात थे। सूबेदार मेजर श्री झा ने बताया कि श्रीनगर से लेह लद्दाख तक जानेवाली लाइफ लाइन हाइवे जाती है। जहां सोनामार्ग, द्रास, पुतखरगु व कारगिल की पहाड़ियां हैं। ये सभी काफी ऊंचाई वाली पहाड़ियां हैं।
कारगिल और द्रास के बीच वाले लेह लद्दाख में उस समय अधिक बर्फ गिरता था। पाक और भारतीय दोनों फौजों में समझौता था कि जब बर्फ अधिक गिरता था तो फोर्स पीछे हट जाया करती थी और फिर बर्फ के पिघल जाने के बाद दोनों देश की फौज युद्ध करने लगती थी। इसी क्रम में जब बर्फ पिघलने के वजह से भारतीय फौज पीछे हट गई तो पाकिस्तानी घुसपैठिये और पाकिस्तानी फौज पाकिस्तान के जनरल परवेज मुशर्रफ के कहने पर बंकर पर कब्जा कर लिया और खाली पड़े जगह पर आकर बैठ गए।
साथ ही धीरे-धीरे पहाड़ी के ढलान में आकर फायर पावर से रोड को सीधे प्रबल हमला करने लगे। इस लाइफलाइन हाइवे में श्रीनगर के बाद सोनामार्ग, उसके बाद द्रास फिर पुतखरगु और पुतखरगु के बाद कारगिल की पहाड़ी है।
इसी क्रम में कारगिल में भेड़ बकरी चरा रहे कुछ गड़ेरिया आये और कारगिल के कमांडर को सूचना दी कि पहाड़ पर कुछ पाकिस्तानी फौज दिखाई दिया है। तब बर्फ हल्की -हल्की पिघलने लगी थी। इसके बाद सबसे पहले कैप्टन कालिया का एक ट्रूप्स पेट्रोलिंग के लिये पहाड़ पर गया, जहां कैप्टन कालिया सहित पूरे ट्रूप्स को घुसपैठिए और पाक फौज ने विभत्स रूप से हत्या कर दी।
सभी शहीद जवानों का शव अमृतसर के बाघा सीमा से प्राप्त किया गया। इसके बाद आर्मी द्वारा सरकार को सूचना दी गई कि अपनी ही जमीन पर लिमिटेड लड़ाई चल रही है। इसके बाद पूरा मामला स्पष्ट हो गया और लड़ाई डिक्लियर हो गयी। भारतीय बंकर को हासिल करने के लिये द्रास सेक्टर में तीन जगहों द्रोरोलीन की पहाड़ी, टाइगर हील और इसके सामने बायें भाग में मास्को घाटी थी। उस समय श्री झा शिवाजी रेजिमेंट के 12 वीं बटालियन के सूबेदार थे और सागर स्थित सेंटर में ड्यूटी पर तैनात थे।
पाक आक्रमणकारियों के पहाड़ की ऊंचाई पर होने और भारतीय फौज के निचले भाग में होने के कारण लड़ाई की शुरुआत में पहले हमले के दौरान भारतीय फौज के एक कंपनी के 10 जवान शहीद हो गये और करीब 35 से 40 की संख्या में जवान घायल भी हो गये। कुल मिलाकर आधी कंपनी खाली हो गई। जिसके बाद तुरंत रिफिल के लिये लेफ्टिनेंट जनरल भास्कर के साथ 72 जवानों को द्रास में शपथ दिलाकर शहीद व घायल जवानों के स्थान पर क्षतिपूर्ति के लिये भेजा गया।
इसमें श्री झा भी शामिल थे। इसके बाद द्रोरोलीन, टाइगर हिल और मास्को घाटी इन तीनों मोर्चे पर एक साथ लड़ाई शुरू हो गई। उन्होंने बताया कि कारगिल युद्ध में शहीद हुए परमवीर चक्र से सम्मानित विक्रम बत्रा द्रास सेक्टर से डेढ़ से 2 किलोमीटर की दूरी पर सामने वाला द्रोरोलीन पहाड़ी पर लोहा लेने के दौरान शहीद हो गये। द्रोरोलीन व टाइगर हिल को सागर से सीधे देखा जा सकता और युद्ध के दौरान तमाम मीडिया कवरेज भी इसी जगह से हुआ था।
मास्को घाटी व टाइगर हिल के बांये भाग में डेढ़ से दो किलोमीटर पीछे-पीछे दो नागा रेजिमेंट, 12 शिवाजी रेजिमेंट और 17 जाट रेजिमेंट के जवान उस इलाके में जा घुसे और स्टेप बाई स्टेप 200 से 400 मीटर तक के भाग को क्लियर कराते-कराते टाइगर हिल को घेर लिया और पाकिस्तानी आक्रमणकारियों के लिये राशन आनेवाले रास्ते को रोक लिया।
इसी क्रम में पहले से भंडारण किये राशन को बीएसएफ के जवानों ने वायुयान से नष्ट कर दिया। जिसके बाद रास्ता कट अप हो गया और भारतीय बंकर पर पुनः भारत का कब्जा हो सका। उन्होंने यह भी बताया कि इस मिशन के दौरान भारतीय फौज पाकिस्तान की सीमा के भीतर तक प्रवेश कर चुकी थी लेकिन सरकार द्वारा लाइन ऑफ कंट्रोल पर आने को कहा गया तो वापस आ गये।