Muzaffarpur News| शिवदाहा…कैसे करेंगे दाह-संस्कार…खुला आसमान… प्यास बुझाने को गंदा पानी…कोई सुनेगा…जहां प्रतिदिन शमशान जाने वाले पीड़ा के दंश में (The condition of Shivdaha crematorium in Muzaffarpur is worsening) अभिशप्त हैं। एक तो परिजन के जाने का गम। ऊपर से सुविधा कम। आखिर, क्या करेंगे गायघाट के शिवदाहावासी।
Muzaffarpur News| चापाकल है नहीं, कहीं छप्पर है नहीं, चिता में आग जले कैसे…सोचने वाला कोई नहीं
जहां, इनके नसीब में एक श्मशान की हालत विकट है। न तो इस स्थान पर चापाकल है। छप्पर विहीन व्यवस्था में बारिश के दौरान चिता में आग जले कैसे, समस्या के साथ चुनौती बड़ी है। परेशानी देखने, समझने वाला कोई नहीं है। जनप्रतिनिधियों में यह इच्छा आज तक जगी नहीं कि यहां एक अदद चापाकल की व्यवस्था धर्म-के-दाह-संस्कार-के कर्म के दौरान कितना जरूरी है। बड़ी जरूरत है। मगर सुनेगा कौन? समझेगा कौन?
Muzaffarpur News| श्मशान घाट पर सुविधा नदारद
हालात यह हैं। इस श्मशान घाट पर आज तक किसी जनप्रतिनिधि ने एक अदद चापाकल तक नहीं गड़वाया। जनप्रतिनिधियों की उदासीनता, प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही और सामजिक संगठनों की बेपरवाही का दंश झेल रहे गायघाट प्रखंड के शिवदाहा पंचायत के सभी समुदाय के लोग, मजबूरी में धर्म की रक्षा बामुश्किल कर पा रहे हैं।
Muzaffarpur News| बारिश के दिनों में समाज के किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है तो
अगर बारिश के दिनों में समाज के किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है तो जलाने की बड़ी मुसीबत खड़ी हो जाती है। लकड़ी से ज्यादा केरोसिन चीनी के इंतजाम की चिंता करनी रहती है। परिजनों के लिए मौत के गम से कहीं बड़ी शव दाह की चुनौती होती हैं। गिली लकड़िया चिता की आग नहीं पकड़ती है।यहां तक कि चापाकल भी आजतक नहीं लगाया गया।
Muzaffarpur News| तालाब के सहारे गंदे पानी से नहाते, उसी गंदे पानी को पीते…आज तक कोई पहल नहीं
शिवदाहा के ग्रामीणों ने बताया कि वे पीढिय़ों से बगैर चापाकल में ऐसे ही शव दाह कर रहे हैं। मुखाग्नि देने वाले की बहुत परेशानी हो रही है। बगल में तालाब के सहारे गंदे पानी से नहाने पड़ते हैं। अब तक कई पीढ़ियों में दर्जनों शव ऐसे ही जलाने पड़े हैं। शवों का इस तरीके से दाह करना जैसे रीति बन गई है। सबसे बड़ी बात यह है कि पंचायत के जनप्रतिनिधि ने आजतक इस दिशा में कोई पहल नहीं की है।