मुजफ्फरपुर न्यूज़: मिट्टी की सेहत, फसल की पैदावार और किसान के भविष्य पर मंडराते संकट के बीच मुजफ्फरपुर के किसानों को एक नई राह मिली है। रासायनिक खादों के मायाजाल से निकलकर अब वे प्रकृति की गोद में लौटने की तैयारी में हैं, जहां खेती सिर्फ फसल नहीं, बल्कि जीवनदायिनी होगी। आखिर क्या है यह बदलाव, जो धरती और किसान दोनों के लिए संजीवनी बूटी साबित हो सकता है?
समय के साथ बढ़ती जनसंख्या और खाद्य सुरक्षा की चुनौती ने कृषि पद्धतियों में बड़े बदलाव किए हैं। अधिक उपज के लालच में रासायनिक खादों और कीटनाशकों का अंधाधुंध उपयोग किया गया, जिससे मिट्टी की उर्वरता घटती गई और पर्यावरण को भी भारी नुकसान हुआ। इसी पृष्ठभूमि में, मुजफ्फरपुर में किसानों को प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण दिया गया है, जिसका उद्देश्य उन्हें टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल कृषि विधियों से अवगत कराना है।
इस प्रशिक्षण सत्र का मुख्य लक्ष्य किसानों को रासायनिक मुक्त खेती के सिद्धांतों और तकनीकों से परिचित कराना था। इसके माध्यम से, किसानों को यह समझाया गया कि कैसे वे बिना रासायनिक इनपुट के, प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर उच्च गुणवत्ता वाली और स्वस्थ फसलें उगा सकते हैं। यह पहल न केवल किसानों की आय बढ़ाने में सहायक होगी, बल्कि उपभोक्ताओं को भी सुरक्षित खाद्य उपलब्ध कराएगी।
प्राकृतिक खेती: क्यों है आज की ज़रूरत?
आज जब जलवायु परिवर्तन और भूमि की उर्वरता में कमी जैसी वैश्विक चुनौतियाँ सामने हैं, प्राकृतिक खेती एक समाधान के रूप में उभर रही है। यह खेती की वह विधि है, जिसमें सिंथेटिक उर्वरकों, कीटनाशकों, खरपतवारनाशकों और आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMOs) का उपयोग नहीं किया जाता। इसके बजाय, यह मिट्टी के स्वास्थ्य, जैव विविधता और पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने पर जोर देती है।
प्राकृतिक खेती के कई फायदे हैं। यह मिट्टी की संरचना और जल धारण क्षमता में सुधार करती है, जिससे सूखे या भारी बारिश के दौरान भी फसलें बेहतर प्रदर्शन कर पाती हैं। यह भूमिगत जल प्रदूषण को कम करती है और लाभकारी कीटों व सूक्ष्मजीवों के लिए अनुकूल वातावरण बनाती है। किसानों के लिए, इसका मतलब है रासायनिक खादों और कीटनाशकों पर होने वाले खर्च में भारी कमी, जिससे उनकी उत्पादन लागत घटती है और शुद्ध लाभ बढ़ता है।
प्रशिक्षण में क्या सिखाया गया?
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में किसानों को प्राकृतिक खेती के विभिन्न आयामों से रूबरू कराया गया। इसमें बीज उपचार के लिए बीजामृत, मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए जीवामृत, और मल्चिंग जैसी विधियों पर विशेष ध्यान दिया गया।
- बीजामृत: बीजों को बोने से पहले प्राकृतिक घोल से उपचारित करना, जिससे वे रोगों से सुरक्षित रहें और उनकी अंकुरण क्षमता बढ़े।
- जीवामृत: गाय के गोबर, गोमूत्र, गुड़, दाल के आटे और मिट्टी के मिश्रण से तैयार एक प्राकृतिक उर्वरक, जो मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ाता है।
- मल्चिंग: खेत में फसलों के अवशेष या सूखी घास बिछाना, जिससे मिट्टी में नमी बनी रहे और खरपतवारों की वृद्धि रुक जाए।
- प्राकृतिक कीट नियंत्रण: नीम आधारित उत्पादों और अन्य वानस्पतिक घोलों का उपयोग कर कीटों को नियंत्रित करना।
- फसल चक्र: मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए विभिन्न फसलों को क्रम से उगाना।
इन तकनीकों को व्यवहारिक रूप से समझाया गया, ताकि किसान उन्हें आसानी से अपने खेतों में अपना सकें। विशेषज्ञों ने किसानों के सवालों के जवाब दिए और उन्हें प्राकृतिक खेती अपनाने में आने वाली संभावित चुनौतियों और उनके समाधानों पर भी मार्गदर्शन दिया।
भविष्य की कृषि और किसानों का उत्थान
मुजफ्फरपुर में प्राकृतिक खेती का यह प्रशिक्षण कार्यक्रम भविष्य की कृषि को दिशा देने वाला एक महत्वपूर्ण कदम है। यह किसानों को आत्मनिर्भर बनाने और उन्हें पर्यावरण-हितैषी पद्धतियों की ओर मोड़ने में मदद करेगा। रासायनिक अवशेषों से मुक्त, स्वस्थ और पौष्टिक भोजन की बढ़ती मांग के बीच, प्राकृतिक खेती को अपनाना किसानों के लिए आर्थिक रूप से भी फायदेमंद साबित हो सकता है।
ऐसी पहलें न केवल स्थानीय कृषि परिदृश्य को बदलेंगी, बल्कि पूरे क्षेत्र में स्थायी कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देने में भी सहायक होंगी। यह उम्मीद की जाती है कि प्रशिक्षण प्राप्त किसान अपने ज्ञान को अन्य किसानों के साथ साझा करेंगे, जिससे प्राकृतिक खेती का आंदोलन मुजफ्फरपुर और उसके आसपास के क्षेत्रों में और तेजी से फैलेगा।








