
पुलिस नाकाम, ग्रामीणों ने खुद तोड़ी शराब की बोतलें! मुजफ्फरपुर के गायघाट में अनोखा आंदोलन। शराबबंदी पर दरक रही नीतीश सरकार! मांझी का बड़ा हमला – माफिया खुले, गरीब जेल में। “नीतीश जी, गरीब जेल में क्यों?” मांझी का सवाल – शराबबंदी पर फंसी सरकार।@गायघाट-मुजफ्फरपुर,देशज टाइम्स।
बिहार में शराबबंदी पर उठे सवाल: नाकाम पुलिस, आगे आए गायघाट के ग्रामीण और हम प्रमुख मांझी का नीतीश सरकार पर वार
मुजफ्फरपुर में शराबबंदी की नई कहानी – ग्रामीण बने पुलिस, चुलाई शराब की दुकानें ध्वस्त। हजारों लीटर शराब वाले माफिया आज़ाद, गरीब अंदर! मांझी बोले – यह कैसा न्याय नीतीश जी? गायघाट में पुलिस हाथ पर हाथ धरे, गांववालों ने खुद छेड़ा अभियान – गायघाट से शुरू हुई शराबबंदी की जंग।शराबबंदी बनी चुनावी हथियार! मांझी ने नीतीश पर बोला धावा, गांव-गांव उठी बगावत@गायघाट-मुजफ्फरपुर,देशज टाइम्स।
शराबबंदी पर फिर सियासत गरमाई
पटना/मुजफ्फरपुर-गायघाट, देशज टाइम्स। बिहार में लागू शराबबंदी (Prohibition in Bihar) एक बार फिर सियासी और सामाजिक चर्चा का बड़ा मुद्दा बन गई है।
2025 विधानसभा चुनाव नज़दीक आते ही शराबबंदी की सफलता और नाकामी दोनों सवालों के घेरे में हैं।
हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (हम) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की शराबबंदी नीति पर तीखा हमला बोला है। वहीं, दूसरी ओर मुजफ्फरपुर जिले के गायघाट थाना क्षेत्र के ग्रामीणों ने पुलिस प्रशासन की नाकामी को देखते हुए खुद शराबबंदी लागू करने का जिम्मा उठा लिया।
मांझी का नीतीश सरकार पर सीधा हमला
केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी ने मीडिया से बातचीत में कहा कि शराबबंदी का उद्देश्य शराब माफिया को रोकना होना चाहिए, न कि उन गरीब और आम लोगों को जेल भेजना जो केवल थोड़ी मात्रा में शराब पीते या रखते पाए जाते हैं।
मांझी ने नीतीश सरकार को याद दिलाया कि तीसरी समीक्षा बैठक में खुद मुख्यमंत्री ने कहा था कि कम मात्रा में शराब रखने वालों पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। उन्होंने मांग की कि सरकार को चुनाव से पहले ऐसे सभी मामलों को खत्म करना चाहिए, जिनमें गरीब लोग सिर्फ थोड़ी शराब पीने या ले जाने के आरोप में जेल में बंद हैं।
शराब माफियाओं पर क्यों नहीं कार्रवाई?
मांझी ने आरोप लगाया कि पुलिस बड़े शराब तस्करों और माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई करने से बच रही है, जबकि खानापूरी के नाम पर गरीब उपभोक्ताओं को जेल भेजा जा रहा है।
उनके मुताबिक: हजारों लीटर शराब बनाने वाले माफिया खुलेआम कारोबार कर रहे हैं। पुलिस केवल छोटे स्तर पर कार्रवाई कर रही है, जिससे शराबबंदी का असली मकसद पूरा नहीं हो रहा।
पुलिस की नाकामी के बाद ग्रामीणों का बड़ा कदम
वहीं, मुजफ्फरपुर जिले के गायघाट थाना क्षेत्र के जारंग पश्चिमी पंचायत के बलुआहा गांव में एक अलग नज़ारा देखने को मिला।
यहां ग्रामीणों ने खुद शराब की दुकानों पर धावा बोला और चुलाई शराब को नष्ट कर दुकानों को बंद कराया। यह कदम तब उठाया गया जब पुलिस गांव-टोले में खुलेआम बिक रही शराब की दुकानों को बंद कराने में नाकाम रही। ग्रामीणों ने समाज को बचाने और शराबबंदी को सफल बनाने की ठानी और अभियान शुरू किया।
भाजपा नेता और ग्रामीणों का नेतृत्व
इस पूरे अभियान का नेतृत्व भाजपा नेता राज कुमार सहनी, ग्रामीण सुकन सहनी और विन्देश्वर सहनी ने किया। पहले ग्रामीणों ने बैठक की और निर्णय लिया कि अब शराब माफियाओं को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। गुरुवार की सुबह सभी चिन्हित दुकानों पर धावा बोला गया। ग्रामीणों ने गैलन और बोतलें तोड़ दीं और दुकानों को जबरन बंद करा दिया।
राज कुमार सहनी ने कहा:
“जब सरकार और पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी है, तब समाज के लोगों को खुद सामने आना पड़ा। यह लड़ाई बलुआहा से शुरू हुई है और जल्द ही पूरे गायघाट को शराब मुक्त बना एक मिसाल पेश की जाएगी।”
चुनाव से पहले शराबबंदी पर बढ़ा दबाव
बिहार में शराबबंदी कानून 2016 में लागू किया गया था। शुरू से ही इस पर सवाल उठते रहे हैं कि क्या यह नीति सही तरीके से लागू हो रही है। चुनाव से पहले एक बार फिर यह मुद्दा सियासत के केंद्र में आ गया है। जहां विपक्ष और मांझी जैसे सहयोगी भी सरकार पर सवाल उठा रहे हैं, वहीं ग्रामीणों की सक्रियता ने यह संदेश दिया है कि अगर पुलिस और प्रशासन असफल रहे तो समाज खुद शराबबंदी की लड़ाई लड़ेगा।
दो मोर्चों पर चर्चा-राजनीतिक-सामाजिक मोर्चा
बिहार की शराबबंदी आज दो मोर्चों पर चर्चा में है: राजनीतिक मोर्चा: जीतनराम मांझी और विपक्ष सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े कर रहे हैं। सामाजिक मोर्चा: ग्रामीण समाज खुद आगे बढ़कर शराब के खिलाफ मोर्चा खोल रहा है। इस घटनाक्रम ने साफ कर दिया है कि आने वाले विधानसभा चुनाव 2025 में शराबबंदी नीति एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनने वाली है।