राजगीर, नालंदा – देशज टाइम्स: प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एवं नीति चिंतक प्रोफेसर सचिन चतुर्वेदी ने कल नालंदा विश्वविद्यालय के नए कुलपति के रूप में औपचारिक रूप से कार्यभार ग्रहण किया। यह विश्वविद्यालय प्राचीन नालंदा महाविहार की गौरवशाली परंपरा को आधुनिक संदर्भों में पुनर्जीवित करने का एक अंतरराष्ट्रीय प्रयास है। कार्यभार ग्रहण के अवसर पर अंतरिम कुलपति प्रो. अभय के. सिंह और फैकल्टी के साथ साथ पीएचडी के छात्रों ने प्रो. चतुर्वेदी का हार्दिक स्वागत किया और उन्हें इस नई भूमिका हेतु शुभकामनाएं दीं।
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अनो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः” का उल्लेख
इस अवसर पर अपने उद्बोधन में प्रो. चतुर्वेदी ने नालंदा विश्वविद्यालय के ध्येय वाक्य “अनो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः” का उल्लेख करते हुए कहा – “यह वाक्य हमें हमारे शाश्वत मूल्यों से जोड़ता है। नालंदा ने सदैव एक मुक्त और समावेशी बौद्धिक परंपरा का प्रतिनिधित्व किया है, जो वैश्विक दृष्टिकोण और भारतीय विद्वत्ता की समृद्ध विरासत के साथ एक जीवंत संवाद को बढ़ावा देता है।”
डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स, दक्षिण-दक्षिण सहयोग एवं नीति निर्माण में
प्रो. चतुर्वेदी, जो वर्तमान में रिस, दिल्ली स्थित एक थिंक-टैंक के महानिदेशक का दायित्व भी निभा रहे हैं, डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स, दक्षिण-दक्षिण सहयोग एवं नीति निर्माण में अग्रणी भूमिका निभा चुके हैं। उन्होंने 22 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं, NeST व FIDC जैसे मंचों की स्थापना की है और वैश्विक मंचों पर भारतीय दृष्टिकोण को प्रतिष्ठा दिलाई है। प्रो. चतुर्वेदी भारतीय रिजर्व बैंक के बोर्ड में स्वतंत्र निदेशक भी हैं।
उत्कृष्ट शैक्षणिक वातावरण और प्रतिष्ठित शिक्षकों के मार्गदर्शन में
उन्होंने विश्वविद्यालय की हालिया प्रगति की सराहना करते हुए कहा, “पिछले वर्षों में नालंदा ने एक विशिष्ट शैक्षणिक केंद्र के रूप में अपनी पहचान बनाई है। यहाँ का उत्कृष्ट शैक्षणिक वातावरण और प्रतिष्ठित शिक्षकों के मार्गदर्शन में विद्यार्थियों के लिए बहुआयामी बौद्धिक विकास के अवसर उपलब्ध हैं।”
नालंदा की विरासत आज भी विशेष रूप से एशियाई संदर्भ में
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल की नालंदा यात्रा का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा – “प्रधानमंत्री की यह यात्रा विश्वविद्यालय की भावी दिशा को नई ऊर्जा प्रदान करने वाली रही। यह इस बात का प्रमाण है कि नालंदा की विरासत आज भी विशेष रूप से एशियाई संदर्भ में प्रेरणास्रोत बनी हुई है।”
अर्थशास्त्र, अंतरराष्ट्रीय सहयोग एवं नीति निर्माण के क्षेत्रों में
प्रो. चतुर्वेदी ने शिक्षा की परिवर्तनकारी शक्ति में अपनी आस्था प्रकट करते हुए कहा, “अर्थशास्त्र, अंतरराष्ट्रीय सहयोग एवं नीति निर्माण के क्षेत्रों में मेरे अनुभवों के आधार पर मैं शिक्षा को परिवर्तन का माध्यम मानता हूं। नालंदा में हमारा प्रयास भारतीय ज्ञान परंपरा को इस दिशा में प्रभावशाली व समाजोपयोगी बनाना है।”
नालंदा के पुनरुत्थान और विकास में योगदान देना मेरे लिए
अपने नए दायित्व को गर्व और सौभाग्य की अनुभूति बताते हुए उन्होंने कहा, “नालंदा के पुनरुत्थान और विकास में योगदान देना मेरे लिए अत्यंत सम्मान की बात है। मैं सभी के साथ मिलकर कार्य करने के लिए उत्सुक हूं और मुझे पूर्ण विश्वास है कि हमारे सामूहिक प्रयासों से नालंदा वैश्विक विमर्शों का एक सशक्त केंद्र बनकर उभरेगा।”