Bangladesh Hindu persecution: जब किसी समाज की आत्मा कराह उठती है, तो सभ्यता का माथा कलंकित हो जाता है। पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश से आ रही खबरें एक बार फिर इसी कसौटी पर खरी उतर रही हैं, जहां अल्पसंख्यक हिंदुओं पर अत्याचारों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा।
अखिल भारतीय शांति व एकजुटता संगठन के सदस्य डॉ गौरीशंकर पासवान ने हाल ही में बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं की बिगड़ती स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि पड़ोसी देश में हिंदुओं की स्थिति दिन-ब-दिन बद से बदतर होती जा रही है, जो मानवता के लिए एक गंभीर चेतावनी है। यह केवल एक धार्मिक समूह पर हो रहा अत्याचार नहीं, बल्कि सभ्य समाज के मूल्यों पर सीधा हमला है।
Bangladesh Hindu persecution: बद से बदतर होती स्थिति
डॉ. पासवान ने स्पष्ट किया कि बांग्लादेश में हिंदू समुदाय लगातार उत्पीड़न, भेदभाव और हिंसा का शिकार हो रहा है। उनकी संपत्तियों पर कब्जे, धार्मिक स्थलों पर हमले और जबरन धर्मांतरण की घटनाएं आम हो गई हैं। ये घटनाएं न केवल मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन हैं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की भी अवहेलना करती हैं, विशेषकर अल्पसंख्यक अधिकारों से जुड़े कानूनों की। इन अत्याचारों के कारण एक बड़ा वर्ग भय और असुरक्षा के माहौल में जीने को मजबूर है, जिससे उनका पलायन भी बढ़ रहा है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। इन परिस्थितियों में, बांग्लादेश सरकार की चुप्पी और उदासीनता अधिक चिंताजनक है।
अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उठती आवाज़
डॉ. गौरीशंकर पासवान जैसे कई मानवाधिकार कार्यकर्ता और संगठन लगातार इस मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठा रहे हैं। वे दुनिया भर से अपील कर रहे हैं कि बांग्लादेश में हिंदू समुदाय के प्रति हो रहे अन्याय पर ध्यान दिया जाए और उन्हें सुरक्षा प्रदान की जाए। इन संगठनों का मानना है कि जब तक इन अत्याचारों के खिलाफ ठोस कदम नहीं उठाए जाते, तब तक शांति और सह-अस्तित्व की बात बेमानी है। अल्पसंख्यक अधिकार किसी भी लोकतांत्रिक देश की नींव होते हैं, और उनका हनन सीधे तौर पर देश की मूल भावना पर चोट करता है।
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इस विकट स्थिति पर विश्व समुदाय को एक साथ आकर बांग्लादेश सरकार पर दबाव बनाना चाहिए ताकि अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
मानवाधिकारों का उल्लंघन
यह मुद्दा केवल बांग्लादेश का आंतरिक मामला नहीं रह गया है, बल्कि यह क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक मानवाधिकारों के लिए एक बड़ा खतरा है। धार्मिक स्वतंत्रता और सहिष्णुता किसी भी समाज की प्रगति के लिए अनिवार्य है, और जब इन मूल्यों का हनन होता है, तो पूरा समाज कमजोर पड़ता है। डॉ. पासवान का यह बयान कि ‘बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार सभ्यता के माथे पर कलंक है’, पूरी स्थिति को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। हमें उम्मीद है कि इस गंभीर विषय पर जल्द से जल्द अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान जाएगा और बांग्लादेश में रह रहे हिंदुओं को न्याय और सुरक्षा मिल पाएगी। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।



