पटना न्यूज़: बिहार विधानसभा का सत्र शुरू हुआ और पहले ही दिन सदन का नजारा देखने लायक था. एक तरफ संवैधानिक शपथ की गरिमा थी, तो दूसरी तरफ बिहार की सांस्कृतिक इंद्रधनुष के रंग बिखरे हुए थे. किसी ने ‘बिस्मिल्लाह’ से शुरुआत की, तो किसी के संस्कृत श्लोकों से पूरा हॉल गूंज उठा, लेकिन चर्चा का केंद्र बनी एक ऐसी भाषा, जिसने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया.
यह अवसर था नवनिर्वाचित विधायकों के शपथ ग्रहण का. लोकतंत्र के इस मंदिर में जब सदस्य अपनी निष्ठा की शपथ ले रहे थे, तब उनकी जुबान पर सिर्फ संविधान के शब्द नहीं, बल्कि अपनी संस्कृति और भाषाई पहचान की झलक भी थी. यह एक अनूठा दृश्य था, जहां बिहार की भाषाई विविधता अपने पूरे गौरव के साथ प्रकट हो रही थी. सदस्यों ने हिंदी के अलावा कई अन्य भाषाओं को चुनकर यह संदेश दिया कि राजनीतिक विभिन्नता के बावजूद सांस्कृतिक एकता ही इस प्रदेश की असली ताकत है.
जब सदन में गूंजे संस्कृत के श्लोक और उर्दू के शब्द
शपथ ग्रहण की शुरुआत के साथ ही सदन का माहौल तब बदल गया, जब कुछ विधायकों ने देवभाषा संस्कृत में शपथ लेना चुना. उनके स्पष्ट मंत्रोच्चार ने पूरे वातावरण में एक अलग ही ऊर्जा भर दी. यह केवल एक शपथ नहीं थी, बल्कि भारत की प्राचीन परंपरा और ज्ञान के प्रति सम्मान का प्रतीक भी था.
वहीं, दूसरी ओर कुछ सदस्यों ने उर्दू के नरम और सधे हुए लहजे में शपथ लेकर गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश की. उनके शब्दों ने सदन में भाषाई मिठास घोल दी. यह बिहार की उस मिली-जुली संस्कृति का प्रतिबिंब था, जहां अलग-अलग भाषाएं और परंपराएं सदियों से एक साथ फल-फूल रही हैं.
मैथिली ने खींचा सबका ध्यान
संस्कृत और उर्दू की गूंज के बीच जिस भाषा ने सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरीं, वह थी मैथिली. मिथिलांचल क्षेत्र से आने वाले कई विधायकों ने अपनी मातृभाषा मैथिली में शपथ लेकर न केवल अपने क्षेत्र के लोगों का दिल जीता, बल्कि भाषाई गौरव का भी सशक्त प्रदर्शन किया. उनका यह कदम इस बात का प्रमाण था कि लोकतंत्र में स्थानीय पहचान और मातृभाषा का कितना गहरा महत्व है.
कुल मिलाकर, बिहार विधानसभा का शपथ ग्रहण समारोह सिर्फ एक संवैधानिक प्रक्रिया बनकर नहीं रह गया, बल्कि यह भाषाई एकता और सांस्कृतिक समृद्धि का एक उत्सव बन गया. इसने यह दिखाया कि राजनीतिक मतभेद चाहे जो भी हों, बिहार की सांस्कृतिक विरासत सबको एक सूत्र में पिरोए रखती है.








