बिहार Election: लोकतंत्र की बुनियाद मानी जाने वाली चुनावी निष्पक्षता पर जब सवाल उठते हैं, तो पूरे तंत्र में एक हलचल मच जाती है। बिहार के सियासी गलियारों में इन दिनों कुछ ऐसा ही माहौल है, जहां हालिया चुनाव नतीजों को लेकर एक नया विवाद गहरा गया है।
बिहार चुनाव: नतीजों पर उठा सियासी बवंडर, कांग्रेस ने हाईकोर्ट का खटखटाया दरवाजा
बिहार चुनाव: कांग्रेस का दावा और निर्वाचन आयोग पर सवाल
बिहार की राजनीति में विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद एक नया विवाद सामने आया है। कांग्रेस के कई वरिष्ठ और सक्रिय नेताओं ने निर्वाचन आयोग की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाते हुए पटना हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इन नेताओं का आरोप है कि चुनावी नतीजों में धांधली की गई है और निर्वाचन आयोग ने पूरी निष्पक्षता से काम नहीं किया है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। यह मामला केवल नतीजों पर असहमति तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे कहीं आगे जाकर चुनावी प्रक्रिया, सरकारी हस्तक्षेप और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा जैसे बड़े मुद्दों को भी उठा रहा है।
कांग्रेस नेताओं का स्पष्ट मत है कि चुनाव आयोग ने सत्ताधारी दल के दबाव में काम किया है, जिससे मतदान और मतगणना की शुचिता प्रभावित हुई है। उनका दावा है कि कई सीटों पर जानबूझकर ऐसे निर्णय लिए गए, जिनसे विपक्षी उम्मीदवारों को नुकसान हुआ। इन आरोपों के केंद्र में कुछ ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां जीत का अंतर बेहद कम रहा और जहां वोटों की गिनती में कथित तौर पर अनियमितताएं देखी गईं।
यह याचिका ऐसे समय में दायर की गई है जब राज्य में नई सरकार का गठन हो चुका है, लेकिन विपक्षी दल लगातार चुनाव परिणामों की वैधता पर सवाल उठा रहे हैं। देश की हर बड़ी ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। कांग्रेस का तर्क है कि यदि चुनावी प्रक्रिया ही सवालों के घेरे में आ जाए, तो जनता का लोकतंत्र पर से विश्वास उठना स्वाभाविक है।
पटना हाईकोर्ट में कांग्रेस की दलीलें और आगे की राह
पटना हाईकोर्ट में दायर अपनी याचिका में कांग्रेस नेताओं ने विस्तृत दलीलें पेश की हैं। उन्होंने उन सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला है जहां उन्हें निर्वाचन आयोग की कार्यप्रणाली में खामियां नजर आईं। इसमें ईवीएम की विश्वसनीयता से लेकर मतगणना के दौरान अपनाई गई प्रक्रियाओं तक, हर बिंदु पर सवाल उठाए गए हैं। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से अपील की है कि इन चुनावी नतीजों की गहन जांच की जाए और यदि आवश्यक हो, तो संबंधित सीटों पर फिर से चुनाव कराए जाएं या वोटों की दोबारा गिनती करवाई जाए।
इस कानूनी लड़ाई का परिणाम बिहार की राजनीति में दूरगामी प्रभाव डाल सकता है। यदि कोर्ट कांग्रेस के तर्कों से सहमत होता है, तो यह निर्वाचन आयोग की साख और भविष्य की चुनावी प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े करेगा। वहीं, अगर याचिका खारिज हो जाती है, तो भी विपक्षी दल इन मुद्दों को जनता के बीच उठाते रहेंगे। यह पूरा घटनाक्रम बिहार के सियासी तापमान को और बढ़ा रहा है और आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि न्यायालय इस मामले में क्या रुख अपनाता है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह केवल एक कानूनी चुनौती नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संदेश भी है जो कांग्रेस अपने कार्यकर्ताओं और जनता तक पहुंचाना चाहती है कि वह जनहित के मुद्दों पर लगातार संघर्षरत है।


