Bihar Hijab Controversy: हिजाब विवाद की आंच अब बिहार की धरती पर भी सुलग उठी है, जिसने एक महिला डॉक्टर के करियर को चौराहे पर ला खड़ा किया है। नियति की यह कैसी विडंबना कि धर्म का एक छोटा सा टुकड़ा किसी के भविष्य पर भारी पड़ रहा है।
Bihar Hijab Controversy: बिहार में हिजाब विवाद से गहराया डॉक्टर नूसरत परवीन का संकट
Bihar Hijab Controversy: क्या है पूरा मामला?
Bihar Hijab Controversy: हिजाब विवाद की आंच अब बिहार की धरती पर भी सुलग उठी है, जिसने एक महिला डॉक्टर के करियर को चौराहे पर ला खड़ा किया है। नियति की यह कैसी विडंबना कि धर्म का एक छोटा सा टुकड़ा किसी के भविष्य पर भारी पड़ रहा है। बिहार में हिजाब को लेकर उठा विवाद लगातार नया मोड़ लेता जा रहा है और अब यह मामला एक महिला आयुष डॉक्टर के करियर के निर्णायक मोड़ तक पहुंच गया है। डॉक्टर नूसरत परवीन अब तक अपनी नियुक्ति पर ज्वाइन नहीं कर पाई हैं, जबकि 31 दिसंबर अंतिम तिथि तय की गई थी। इस पूरे प्रकरण ने एक बार फिर धार्मिक स्वतंत्रता और पेशेवर कर्तव्यों के बीच संतुलन को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
राज्य के स्वास्थ्य विभाग में आयुष डॉक्टर नियुक्ति प्रक्रिया के तहत नूसरत परवीन का चयन हुआ था। उन्हें आवंटित पद पर कार्यभार ग्रहण करना था, लेकिन हिजाब पहनने के उनके व्यक्तिगत निर्णय ने प्रशासनिक उलझनों को जन्म दे दिया है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। यह मामला अब केवल एक व्यक्ति विशेष का न रहकर, एक व्यापक सामाजिक बहस का हिस्सा बन चुका है, जहां हिजाब को लेकर अलग-अलग दृष्टिकोण सामने आ रहे हैं।
नियुक्ति की अंतिम तिथि बीत जाने के बाद, डॉक्टर नूसरत परवीन का भविष्य अधर में लटक गया है। प्रशासनिक सूत्रों की मानें तो विभाग इस मामले पर कानूनी राय ले रहा है, ताकि किसी भी तरह के पूर्वाग्रह या नियमों के उल्लंघन से बचा जा सके। कुछ लोग इसे धार्मिक स्वतंत्रता का हनन बता रहे हैं, तो कुछ इसे सरकारी संस्थानों में ड्रेस कोड के पालन की अनिवार्यता से जोड़कर देख रहे हैं।
विभाग के सामने चुनौती
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी इस संवेदनशील मुद्दे पर फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं। एक तरफ उन्हें संविधान प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का सम्मान करना है, वहीं दूसरी तरफ प्रशासनिक नियमों और कार्यस्थल पर एकरूपता बनाए रखने की भी जिम्मेदारी है। देश की हर बड़ी ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें https://deshajtimes.com/news/national/। यह मामला केवल बिहार तक सीमित नहीं है, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जहां धार्मिक प्रतीकों को लेकर शिक्षण और कार्यस्थलों पर विवाद उठे हैं।
डॉक्टर नूसरत परवीन के मामले में अब देखना यह होगा कि क्या कोई मध्य मार्ग निकाला जाता है, जिससे उनके करियर को बचाया जा सके और साथ ही प्रशासनिक मर्यादा भी बनी रहे। यह प्रकरण आने वाले समय में ऐसे ही मामलों के लिए एक नजीर बन सकता है। ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर समाज और प्रशासन दोनों को परिपक्वता से सोचने की आवश्यकता है। यह स्थिति स्पष्ट करती है कि आस्था और पेशे के बीच की रेखा कितनी महीन हो सकती है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि इस आयुष डॉक्टर नियुक्ति विवाद का क्या अंजाम होता है।




