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दिसम्बर, 31, 2025

बिहार हिजाब विवाद: आयुष डॉक्टर नुसरत परवीन की नियुक्ति पर गहराया संकट, जानें क्या है सिविल सर्जन का दो टूक बयान

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Bihar Hijab Controversy: शिक्षा के मंदिर में यूनिफॉर्म पर दशकों से चली आ रही बहस अब सरकारी नौकरियों के गलियारों तक आ पहुंची है, जहां एक डॉक्टर का भविष्य एक कपड़े के टुकड़े में उलझ गया है। यह सिर्फ एक परिधान का मामला नहीं, बल्कि आस्था और नियमों के बीच फंसे एक पेशे की कहानी है।

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Bihar Hijab Controversy: बिहार में हिजाब को लेकर पनपा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। यह विवाद अब एक चयनित आयुष महिला डॉक्टर की नियुक्ति तक पहुँच गया है, जहाँ हिजाब पहनने के कारण उन्होंने अब तक अपनी ज्वाइनिंग नहीं दी है। पटना के सिविल सर्जन डॉक्टर अविनाश सिंह ने इस मामले में एक कड़ा बयान जारी कर सबको चौंका दिया है।

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मामला आयुष महिला डॉक्टर नुसरत परवीन से जुड़ा है, जिन्हें हाल ही में नियुक्त किया गया था। उन्हें 31 दिसंबर तक अपनी नियुक्ति पर कार्यभार ग्रहण करना था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। सूत्रों के मुताबिक, नुसरत परवीन हिजाब पहनकर ड्यूटी करने की अनुमति चाहती हैं, जिस पर विभाग द्वारा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। इसी गतिरोध के कारण वे अब तक अपनी नई ज़िम्मेदारी नहीं संभाल पाई हैं।

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बिहार हिजाब विवाद: सिविल सर्जन का स्पष्ट रुख

पटना के सिविल सर्जन डॉक्टर अविनाश सिंह ने इस पूरे प्रकरण पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि यदि कोई डॉक्टर अपने धर्म से संबंधित ड्रेस कोड का पालन करना चाहता है, तो उसे सरकारी नियमों के दायरे में रहकर ही करना होगा। उन्होंने साफ किया कि सरकार द्वारा निर्धारित यूनिफॉर्म या सामान्य शालीन परिधान में ही कार्य करना अनिवार्य है। धर्म के नाम पर सरकारी कार्यप्रणाली में बाधा उत्पन्न करने की कोई गुंजाइश नहीं है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। उन्होंने चेतावनी दी कि अंतिम तिथि तक ज्वाइन न करने पर नियुक्ति रद्द कर दी जाएगी।

यह मामला केवल नुसरत परवीन तक सीमित नहीं है, बल्कि बिहार में आयुष डॉक्टर नियुक्ति प्रक्रिया और उसमें धार्मिक प्रतीकों के इस्तेमाल पर एक व्यापक बहस छेड़ रहा है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि वे किसी भी धार्मिक भावना का अनादर नहीं करना चाहते, लेकिन सरकारी अस्पताल जैसे संवेदनशील स्थानों पर एक निश्चित प्रोटोकॉल का पालन आवश्यक है।

देश की हर बड़ी ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। ऐसे मामलों में अक्सर व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संस्थागत अनुशासन के बीच संतुलन खोजना एक चुनौती बन जाता है। इस विवाद के बीच, स्वास्थ्य सेवाओं के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करना भी एक प्रमुख चिंता का विषय है, आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।

क्या है आगे की राह और नुसरत परवीन का पक्ष?

हालांकि, नुसरत परवीन की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है कि उन्होंने ज्वाइन क्यों नहीं किया है या वे किन शर्तों पर ज्वाइन करना चाहती हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वे 31 दिसंबर की समय सीमा से पहले कोई रास्ता निकाल पाती हैं या यह मामला और अधिक कानूनी पेचीदगियों में उलझ जाता है। सरकारी महकमों में नियमों और आस्था के बीच की यह tug-of-war बिहार में एक नया राजनीतिक और सामाजिक विमर्श पैदा कर सकती है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। इस मामले पर सबकी निगाहें टिकी हैं।

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