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2 दिसम्बर, 2025

34 साल का हुआ जिला, लेकिन आज भी किराए पर चल रहे ये बड़े सरकारी दफ्तर, जानिए क्यों?

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सरकारें बदलीं, अफसर बदले, लेकिन नहीं बदली तो इन सरकारी दफ्तरों की किस्मत। एक-दो नहीं, पूरे 34 साल बीत गए, लेकिन जिले के कई बड़े विभाग आज भी किराए के मकानों में अपनी फाइलें समेटने को मजबूर हैं। आखिर क्या है वो वजह जो ‘अपना भवन’ बनने की राह में रोड़ा बनी हुई है?

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भभुआ जिला बने भले ही 34 वर्ष बीत गए हों, लेकिन आज भी भभुआ में कई सरकारी कार्यालय बदहाली की मार झेल रहे हैं। जिला मुख्यालय हो या प्रखंड स्तर—कई विभाग निजी भवनों में किराये पर या जर्जर इमारतों में संचालित किए जा रहे हैं। इससे न सिर्फ सरकारी कामकाज बाधित होता है, बल्कि कर्मचारियों और आमजनों की सुरक्षा पर भी बड़ा खतरा बना रहता है।

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चकबंदी कार्यालय सबसे बदहाल स्थिति में

सबसे गंभीर स्थिति चकबंदी कार्यालय की है। जिले का मुख्य चकबंदी कार्यालय आज तक अपने भवन के अभाव में किराये की इमारत में चलता आ रहा है।

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प्रखंड स्तर पर भी हालात अलग नहीं हैं। रामपुर प्रखंड सहित कई प्रखंडों के चकबंदी कार्यालय जर्जर भवनों में संचालित हो रहे हैं।

दीवारों में दरारें, छत से प्लास्टर झड़ना आम बात

जर्जर भवनों की हालत इतनी खराब है कि

  • दीवारों में बड़ी-बड़ी दरारें साफ दिखाई देती हैं

  • छत का प्लास्टर लगातार झड़ता रहता है

  • बरसात में पानी रिसना आम बात हो गई है

कर्मचारियों का कहना है कि ऐसी स्थिति में कार्यालय में बैठना भी जोखिम भरा है, फिर भी मजबूरी में काम चलाना पड़ता है।

सीडीपीओ और अन्य कार्यालय भी किराये/जर्जर भवनों में

जिले में कई अन्य विभागों की स्थिति भी चिंताजनक है।

  • उद्योग कार्यालय,

  • चकबंदी कार्यालय,

  • सीडीपीओ कार्यालय
    —ये सभी या तो स्टेडियम के भवन में अस्थायी रूप से चल रहे हैं या निजी किराये की इमारतों में संचालित हो रहे हैं।

स्थानीय लोग बोले—सरकार को जल्द संज्ञान लेना चाहिए

स्थानीय लोगों का कहना है कि 34 साल बाद भी स्थायी भवन न होना जिले के विकास पर सवाल उठाता है। आमजन ने सरकार से मांग की है कि जल्द से जल्द नए भवनों का निर्माण कराया जाए ताकि

  • कार्य संस्कृति सुधरे

  • कर्मचारियों को सुरक्षित माहौल मिले

  • जनता को सेवाएं मिलने में सुविधा हो

जिला गठन के 34 साल पूरे होने का जश्न भले ही मनाया जा रहा हो, लेकिन इस विकास के दावे की पोल कुछ सरकारी कार्यालयों की स्थिति खोल देती है। आज भी जिला मुख्यालय में कई महत्वपूर्ण सरकारी विभाग अपनी छत के लिए तरस रहे हैं और किराए के भवनों से संचालित हो रहे हैं। यह स्थिति न केवल सरकारी खजाने पर बोझ डाल रही है, बल्कि आम लोगों के लिए भी परेशानी का सबब बनी हुई है जो अपने कामों के लिए इन दफ्तरों के चक्कर लगाते हैं।

यह जानकर आश्चर्य होता है कि जिला स्तर के दो सबसे महत्वपूर्ण कार्यालय, यानी उद्योग विभाग और चकबंदी कार्यालय, दशकों बाद भी निजी मकानों में चल रहे हैं। इन कार्यालयों के पास अपना कोई स्थायी पता नहीं है, जिससे दूर-दराज के गांवों से आने वाले लोगों को इन्हें ढूंढने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है।

किराए के भवन में चल रहे महत्वपूर्ण विभाग

जिले की स्थापना के समय से ही कई विभागों को अपनी जमीन और भवन आवंटित नहीं हो सका। इनमें से उद्योग और चकबंदी कार्यालय प्रमुख हैं, जो आज तक किराए के मकानों से ही काम कर रहे हैं। इन कार्यालयों में न तो कर्मचारियों के लिए पर्याप्त जगह है और न ही रिकॉर्ड और महत्वपूर्ण दस्तावेजों को सुरक्षित रखने की उचित व्यवस्था। किराए के मकानों की अपनी सीमाएँ होती हैं, जिसके चलते इन दफ्तरों का कामकाज भी प्रभावित होता है।

अधिकारियों और कर्मचारियों को तंग कमरों में बैठकर महत्वपूर्ण फाइलों का निपटारा करना पड़ता है। कई बार जगह की कमी के कारण फाइलों का अंबार लगा रहता है, जिससे उनके खराब होने का खतरा भी बना रहता है। यह स्थिति प्रशासनिक कार्यकुशलता पर सीधा असर डालती है।

जनता परेशान, हर महीने लाखों का खर्च

सरकारी विभागों का किराए के भवन में चलना दोहरी मार जैसा है। एक तरफ जहां सरकार को हर महीने लाखों रुपये किराए के रूप में खर्च करने पड़ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ आम जनता को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। इन कार्यालयों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव रहता है, जिसका असर सीधे तौर पर काम की गुणवत्ता पर पड़ता है।

लोगों की मुख्य समस्याएँ:

  • कार्यालयों का स्थायी पता न होने से उन्हें ढूंढने में परेशानी।
  • पार्किंग की कोई व्यवस्था नहीं होती, जिससे लोगों को अपने वाहन सड़क पर खड़े करने पड़ते हैं।
  • दफ्तरों में बैठने या इंतजार करने के लिए पर्याप्त जगह का अभाव।
  • कई बार मकान मालिक बदलने पर कार्यालय का पता भी बदल जाता है, जिससे भ्रम की स्थिति पैदा होती है।

34 सालों से ‘अपने भवन’ का इंतजार

सवाल यह उठता है कि आखिर 34 साल के लंबे अरसे में भी इन विभागों के लिए अपनी जमीन और भवन की व्यवस्था क्यों नहीं हो सकी? यह प्रशासनिक उदासीनता और इच्छाशक्ति की कमी को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। हर साल किराए पर लाखों रुपये खर्च करने के बजाय, यदि एक स्थायी भवन का निर्माण कर दिया जाता, तो यह सरकारी खजाने के लिए एक बेहतर कदम होता।

स्थानीय नागरिक और बुद्धिजीवी लगातार इस मुद्दे को उठाते रहे हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। अब देखना यह होगा कि जिला प्रशासन कब इस गंभीर समस्या पर ध्यान देता है और इन विभागों को उनका ‘अपना घर’ कब नसीब होता है।

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