Gopashtami: भक्ति की धारा बही, कान्हा के रंग में रंगी दुनिया। गोपाष्टमी महोत्सव ने एक बार फिर कृष्ण भक्ति को जीवंत कर दिया, जब बाल गोपाल के जन्म और पूतना वध का मनमोहक मंचन किया गया।
Gopashtami महोत्सव: कृष्ण जन्म और पूतना वध का अद्भुत मंचन, गूंजी जय-जयकार
Gopashtami महोत्सव की धूम: कृष्ण लीलाओं का सजीव चित्रण
नंदनंदन के जन्म और राक्षसी पूतना के संहार की कथाएं अनादि काल से भक्तों को मोहित करती रही हैं। इस वर्ष Gopashtami महोत्सव के पावन अवसर पर इन अलौकिक लीलाओं का भव्य मंचन किया गया, जिसने उपस्थित सभी श्रद्धालुओं को भाव-विभोर कर दिया। मंच पर जैसे ही बाल कृष्ण के रूप में कलाकार ने प्रवेश किया, पूरा वातावरण ‘नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की’ के जयघोष से गूंज उठा। यह क्षण ऐसा था, मानो स्वयं कान्हा धरती पर अवतरित हो गए हों, और इस दिव्य अनुभव के साक्षी बनने वाले हर व्यक्ति के हृदय में भक्ति का सागर उमड़ पड़ा।
इस धार्मिक आयोजन में गोकुल के पारंपरिक दृश्यों को इतनी कुशलता से दर्शाया गया कि दर्शक मंत्रमुग्ध रह गए। कलाकारों ने अपने जीवंत अभिनय से दर्शकों को सीधे द्वापर युग में पहुंचा दिया। माखन चोरी की लीला से लेकर कंस के भेजे गए राक्षसों का संहार, हर दृश्य को बड़े ही कलात्मक ढंग से प्रस्तुत किया गया। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। विशेष रूप से, पूतना वध का दृश्य, जिसमें शिशु कृष्ण अपनी दिव्य शक्ति से राक्षसी पूतना का अंत करते हैं, को बेहद प्रभावी और मार्मिक तरीके से दर्शाया गया, जिसने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया कि कैसे धर्म की स्थापना के लिए ईश्वर विभिन्न रूपों में प्रकट होते हैं।
भक्ति और आस्था का संगम: भक्तों में दिखा उत्साह
इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे, जिन्होंने भक्तिमय वातावरण में डूबकर भगवान कृष्ण की लीलाओं का आनंद लिया। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, हर कोई इस आयोजन का हिस्सा बनने को उत्सुक था। झांकियों की सजावट और कलाकारों के परिधान, सब कुछ पारंपरिक और मनमोहक था, जो उत्सव के आकर्षण को और बढ़ा रहा था। पूरा परिसर कृष्ण भजनों और जयकारों से गुंजायमान रहा, जिसने एक सकारात्मक और ऊर्जावान माहौल का निर्माण किया।
देश की हर बड़ी ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
आयोजकों ने इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए अथक प्रयास किए थे। सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम थे और स्वच्छता का भी विशेष ध्यान रखा गया था। इस तरह के धार्मिक आयोजन न केवल सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हैं, बल्कि नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जुड़ने का अवसर भी प्रदान करते हैं। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। महोत्सव के समापन पर प्रसाद वितरण किया गया, जिसे ग्रहण कर भक्तों ने स्वयं को धन्य महसूस किया। ऐसे कार्यक्रम समाज में सद्भाव और भक्ति की भावना को मजबूत करते हैं। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।

