पटना: बिहार की सियासत में वो हो गया है, जिसका अंदाज़ा बड़े-बड़े राजनीतिक पंडितों को भी नहीं था। एनडीए की नई सरकार में विभागों का बंटवारा हुआ तो एक ऐसा फैसला सामने आया जिसने 19 साल पुरानी परंपरा को तोड़ दिया। जेडीयू का वो किला, जिसे अभेद्य माना जाता था, वो अब सहयोगी दल के हवाले है।
19 साल बाद टूटा JDU का तिलिस्म
बिहार में साल 2005 के बाद से यह एक अघोषित नियम सा बन गया था कि गृह विभाग का ज़िम्मा मुख्यमंत्री अपने पास ही रखेंगे, यानी जेडीयू के कोटे में। लेकिन इस बार जब नई एनडीए सरकार का गठन हुआ तो सियासी समीकरण पूरी तरह बदल गए। विभागों के बंटवारे में गृह विभाग जेडीयू के हाथ से निकलकर सहयोगी दल भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के खाते में चला गया। इस फेरबदल ने राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज कर दी और चर्चाओं का बाज़ार गर्म हो गया।
मंत्रिमंडल विस्तार और बदला हुआ शक्ति संतुलन
बिहार विधानसभा चुनाव के बाद जब एनडीए की सरकार बनी और मंत्रियों के बीच विभागों का आवंटन हुआ, तो सभी की निगाहें गृह विभाग पर टिकी थीं। जब सूची सामने आई तो यह स्पष्ट हो गया कि इस बार सत्ता का शक्ति संतुलन पहले जैसा नहीं है। गृह विभाग जैसे महत्वपूर्ण विभाग का बीजेपी के पास जाना इस बात का साफ़ संकेत है कि नई सरकार में बीजेपी की भूमिका और वज़न, दोनों ही बढ़े हैं।
आखिरकार JDU ने तोड़ी अपनी चुप्पी
गृह विभाग हाथ से जाने पर कई दिनों तक जेडीयू की तरफ से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई थी, जिससे अटकलों को और बल मिल रहा था। लेकिन अब पार्टी ने इस मामले पर पहली बार अपनी चुप्पी तोड़ी है। जेडीयू ने इस फेरबदल को ज़्यादा तवज्जो न देते हुए कहा है कि ‘वित्त और वाणिज्य से बड़ा कोई विभाग नहीं होता’। इस बयान के ज़रिए जेडीयू ने यह जताने की कोशिश की है कि भले ही गृह विभाग उनके पास नहीं है, लेकिन वित्त और वाणिज्य जैसे अहम विभाग मिलना भी बड़ी उपलब्धि है और पार्टी के लिए इसका महत्व कम नहीं है।








