Kishanganj Army Camp: विकास और विरोध की जंग में, जहां एक तरफ देश की सुरक्षा सर्वोपरि है, वहीं स्थानीय सरोकार भी अपनी जगह महत्वपूर्ण हैं। किशनगंज जिले में प्रस्तावित आर्मी कैंप का मामला अब सियासी अखाड़े में गर्मा रहा है, जहां एक विधायक ने इसके विरोध में मोर्चा खोल दिया है।
किशनगंज आर्मी कैंप: सकोर में सैन्य छावनी के निर्माण पर गरमाई सियासत, AIMIM विधायक ने की जमीन बदलने की मांग
Kishanganj Army Camp: सकोर में क्यों हो रहा है विरोध?
किशनगंज जिले में प्रस्तावित आर्मी कैंप को लेकर सियासी गलियारों और सामाजिक मंचों पर गहमागहमी तेज हो गई है। बहादुरगंज विधानसभा क्षेत्र से AIMIM विधायक तौफीक आलम ने सकोर इलाके में चिन्हित की गई जमीन पर सैन्य छावनी के निर्माण का कड़ा विरोध किया है। उन्होंने मांग की है कि इस कैंप को किसी अन्य उपयुक्त स्थान पर स्थानांतरित किया जाए, जिससे स्थानीय लोगों के हितों का संरक्षण हो सके। विधायक आलम का कहना है कि यह जमीन खेती योग्य है और इस पर किसानों की जीविका निर्भर करती है।
उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन ने किसानों और स्थानीय निवासियों की सहमति के बिना ही भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू कर दी है, आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। जिससे उनमें भारी आक्रोश है। उन्होंने यह भी दावा किया कि सकोर क्षेत्र में प्रस्तावित सैन्य छावनी के लिए भूमि का अधिग्रहण कृषि भूमि को प्रभावित करेगा और इससे विस्थापन की समस्या उत्पन्न होगी।
किसानों की चिंताएं और विधायक की दलील
विधायक तौफीक आलम ने साफ शब्दों में कहा है कि यदि सरकार और प्रशासन उनकी मांगों पर ध्यान नहीं देता है, तो वे किसानों के साथ मिलकर एक बड़ा आंदोलन शुरू करने के लिए मजबूर होंगे। उनका तर्क है कि रक्षा उद्देश्यों के लिए भूमि की आवश्यकता को समझते हुए भी, सरकार को ऐसे स्थान का चयन करना चाहिए जहां न्यूनतम मानवीय और पर्यावरणीय प्रभाव पड़े। उन्होंने वैकल्पिक स्थानों की भी पेशकश की है, जो उनके अनुसार, सैन्य आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ-साथ स्थानीय आबादी के लिए भी कम विघटनकारी होंगे।
इस मामले पर जिला प्रशासन की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन विधायक के रुख ने इस परियोजना को लेकर नई बहस छेड़ दी है, आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। यह मुद्दा केवल भूमि अधिग्रहण का नहीं, बल्कि स्थानीय पहचान और आजीविका के संरक्षण का भी है। किशनगंज जैसे सीमावर्ती जिले में सैन्य उपस्थिति का महत्व निर्विवाद है, लेकिन इसे इस तरह से स्थापित किया जाना चाहिए जिससे स्थानीय समुदाय को कम से कम परेशानी हो।
देश की हर बड़ी ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें: https://deshajtimes.com/news/national/
अब देखना यह है कि सरकार और प्रशासन इस मामले पर क्या रुख अपनाते हैं और क्या विधायक की मांगों को स्वीकार करते हुए कैंप के स्थान में कोई बदलाव किया जाता है या नहीं। यह विवाद आगामी दिनों में और गहरा सकता है, जब तक कि कोई सर्वमान्य समाधान नहीं निकल जाता। स्थानीय लोगों का कहना है कि वे देश की सुरक्षा के पक्ष में हैं, लेकिन उनकी जीविका पर आंच नहीं आनी चाहिए, आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।




