Land for Job Case:दिल्ली से बड़ी खबर! चर्चित लैंड फॉर जॉब घोटाले में लालू परिवार को मिली है एक बड़ी राहत। आरोप तय होने को लेकर अदालत का फैसला एक बार फिर टल गया है, जिससे उनकी मुश्किलें कुछ वक्त के लिए कम हुई हैं। लेकिन क्या है इस देरी की असल वजह और अब कब होगी अगली सुनवाई? जानिए पूरी खबर।
आज दिल्ली की एक अदालत में चर्चित लैंड फॉर जॉब केस में एक अहम सुनवाई हुई। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख और पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव के परिवार को इस मामले में पांच दिनों की बड़ी राहत मिल गई है। अब इस केस की अगली सुनवाई 15 को तय की गई है।
इससे पहले भी, राउज एवेन्यू अदालत ने बुधवार को आरोप तय करने पर अपना आदेश टाल दिया था। विशेष सीबीआई जज विशाल गोगने की अदालत में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने बताया कि इस मामले में कुल 103 आरोपी हैं, जिनमें से चार की दुर्भाग्यवश मृत्यु हो चुकी है। सभी आरोपियों से जुड़े दस्तावेज़ अभी पूरी तरह से तैयार नहीं हो पाए हैं।
जांच एजेंसी ने क्यों मांगा समय?
सीबीआई के आग्रह को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने सुनवाई को गुरुवार तक के लिए स्थगित कर दिया था। आपको बता दें कि 8 दिसंबर को भी सुनवाई के दौरान सीबीआई ने अदालत से विभिन्न आरोपियों की स्थिति की पुष्टि करने के लिए और समय मांगा था। विशेष सीबीआई न्यायाधीश विशाल गोगने यह तय कर रहे हैं कि क्या आरोपियों के खिलाफ आरोप तय करने के लिए पर्याप्त सबूत मौजूद हैं। न्यायाधीश ने 4 दिसंबर को सीबीआई को आरोपियों की स्थिति के संबंध में एक रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था। 8 दिसंबर को सीबीआई ने फिर से समय मांगा, जिसके बाद सुनवाई 10 दिसंबर के लिए निर्धारित की गई थी, लेकिन तब भी सुनवाई टल गई।
क्या है Land for Job Case घोटाला?
इस चर्चित मामले में सीबीआई ने लालू प्रसाद, उनकी पत्नी और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, उनके बेटे और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के साथ-साथ अन्य कई लोगों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किए हैं। अभियोजन पक्ष का आरोप है कि लालू प्रसाद के रेल मंत्री के रूप में 2004 से 2009 के कार्यकाल के दौरान, भारतीय रेलवे के पश्चिम मध्य क्षेत्र (मध्य प्रदेश के जबलपुर में) में ग्रुप-डी श्रेणी में नियुक्तियां की गईं।
इन नियुक्तियों के बदले में, नौकरी पाने वाले व्यक्तियों द्वारा लालू प्रसाद के परिवार के सदस्यों और सहयोगियों के नाम पर ज़मीन उपहार में दी गई या हस्तांतरित की गई। सीबीआई का दावा है कि ये नियुक्तियां तय मानदंडों का उल्लंघन करके की गईं और इन लेन-देनों में बेनामी संपत्तियां शामिल थीं। जांच एजेंसी इसे आपराधिक कदाचार और षड्यंत्र मान रही है। हालांकि, सभी आरोपियों ने इन आरोपों से इनकार किया है। उनका दावा है कि यह पूरा मामला राजनीति से प्रेरित है और उन्हें गलत तरीके से फंसाया जा रहा है।


