बिहार की राजनीति में एक नई मिसाल पेश करते हुए, नवनिर्वाचित विधायक मैथिली ठाकुर ने अपने काम से सबको चौंका दिया है।
उन्होंने आधिकारिक तौर पर विधायक पद की शपथ भी नहीं ली है, लेकिन वह पूरी तरह से एक्शन मोड में आ चुकी हैं।
अपने क्षेत्र की जनता से मिलना, उनकी समस्याओं को सुनना और समाधान के लिए प्रयास करना, यह सब उन्होंने शपथ ग्रहण का इंतजार किए बिना ही शुरू कर दिया है।
इस मौके पर मैथिली ठाकुर ने मीडिया से बातचीत में कहा, “जनता ने मुझ पर बहुत उम्मीद और भरोसे के साथ अपना वोट दिया है। मैं उनके इस विश्वास को टूटने नहीं दे सकती। इसीलिए मैंने शपथ का इंतजार न करके तुरंत काम पर लगने का फैसला किया।” उनका यह कदम दर्शाता है कि वह अपने चुनावी वादों और जनता की उम्मीदों को लेकर कितनी गंभीर हैं।
विपक्ष के सवालों पर सधी हुई चुप्पी
एक तरफ जहां मैथिली ठाकुर अपने क्षेत्र के विकास और जनता के मुद्दों को लेकर बेहद सक्रिय नजर आ रही हैं, वहीं दूसरी तरफ उन्होंने तीखे राजनीतिक सवालों पर एक सधी हुई चुप्पी साध ली है। जब पत्रकारों ने उनसे विपक्ष की रणनीतियों और आगामी राजनीतिक चुनौतियों को लेकर सवाल पूछे, तो उन्होंने बड़ी ही चतुराई से इन सवालों को टाल दिया।
उनके इस रवैये से राजनीतिक गलियारों में कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह उनकी एक सोची-समझी रणनीति है, जिसके तहत वह किसी भी तरह के शुरुआती विवाद से बचना चाहती हैं। उनका पूरा ध्यान फिलहाल अपने क्षेत्र के लोगों के बीच अपनी एक सकारात्मक और ‘काम करने वाली नेता’ की छवि बनाने पर केंद्रित है।
क्या कहती है मैथिली की शुरुआती रणनीति?
मैथिली ठाकुर का यह दोहरा दृष्टिकोण—जनता के काम के लिए चौबीसों घंटे तैयार रहना और राजनीतिक विवादों से दूरी बनाए रखना—उनकी परिपक्व रणनीति की ओर इशारा करता है। वह यह संदेश देने की कोशिश कर रही हैं कि उनकी प्राथमिकता केवल और केवल विकास है, न कि व्यर्थ की राजनीतिक बयानबाजी।
हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि वह कब तक इस रणनीति पर कायम रह पाती हैं। विधानसभा सत्र शुरू होने के बाद उन्हें विपक्ष के तीखे हमलों और सदन के अंदर की राजनीति का सामना करना ही पड़ेगा। फिलहाल, उनके इस अनोखे अंदाज ने बिहार की सियासत में एक नई बहस को जन्म दे दिया है, और सबकी निगाहें उनके अगले कदम पर टिकी हुई हैं।







