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18 मई, 2024
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Bihar Politics: अब रात में लड़का-लड़की घूमते हैं…

यह बिहार है। यहां दैत्य को राजनीति की हर भाषा आती है, उसका सरोकार भी तत्काल दिखता है। भोगता कौन है? समाज की वही बेटी जो आज जिंदगी तलाश रही। मौत को हराने की जिद लिए दरभंगा की अस्पाल में पड़ी है। सच मानो तो, कल ही सीएम ने जो कहा, उसका फलसफा बाबा की नगरी कुशेंश्वरस्थान ने भोगा। राजनीति चलती रहेगी। समाज बंटता-टूटता रहेगा। हवांए गर्म सलाख बनकर नसों में उतरतीं रहेंगी। सुरसुरी होगा। पुलिस हांफेंगी। मगर, फर्क के सिलवटों में पाट का अंतर कम नहीं होगा। भोग्या बनती हमारी बहू-बेटी, उसी भोग में अस्मत तलाशेंगी जहां से सियासत के कद्रदानों की अंगेठी धधकती भी है, सुलगाती भी है। सच मानो तो...

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देशज टाइम्स | Highlights -

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बिहार में किस मोड़ पर आ गई राजनीति। चुनाव नजदीक। इसी साल। फिर अचानक रात में लड़का-लड़की घूमने लगे। मगर, जब यह बात स्वंय सीएम नीतीश कुमार कहें, तो मामला सियासी ना हो, कैसे संभव है? दोनों डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा की मौजूदगी में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय के सामने सीएम ने कहा, अब 11-12 बजे रात तक लड़के लड़कियां घर से बाहर रहते हैं, घूमते हैं, किसी को डर नहीं लगता है। यह क्राइम कंट्रोल है या वैलेंटाइन की लटखेड़।

खैर, अचानक याद आ रहे हैं, शक्ति सिंह। कौन शक्ति सिंह? अरे वही, राजद के मुख्य प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव। जिन्हें, बिहार बीजेपी ने अपने X पर साझा किया है। वीडियो के साथ बीजेपी ने तीखा तंज कसा है। लिखा है, देखिए, शराबबंदी कानून की धज्जियां उड़ाते राजद के मुख्य प्रवक्ता!

Bihar Politics: अब रात में लड़का-लड़की घूमते हैं…42 सेकेंड के इस वीडियो में

42 सेकेंड के इस वीडियो में शक्ति सिंह यादव बनियान और शॉर्ट्स में एक सोफे पर बैठे नजर आ रहे हैं। इनके सामने टेबल पर ग्लास और खाने-पीने की चीजें मौजूद हैं। आसपास कुछ और लोग भी बैठे दिख रहे हैं। हालांकि, वीडियो में यह स्पष्ट नहीं हो रहा है, ग्लास में क्या भरा हुआ है? लेकिन, इसे लेकर बीजेपी ने जोरदार हमला बोल दिया है। मगर, शक्ति सिंह कहते हैं, यह हमारी निजता का हनन है। कोई प्रतिक्रिया नहीं देंगे।

सवाल तो उठेंगे ही कि आखिर, माजरा क्या है? क्या यह निजी मामला है? या फिर सत्ता पक्ष की सच्चाई? वजह भी है। दरअसल, एक सर्वे ने एनडीए को स्वींग कर दिया है। पक्ष में हवा क्या चली है, रुख में तेजी आ गई है।

सर्वे के मुताबिक, अगर अभी लोकसभा चुनाव हुए तो बीजेपी बिहार में 40 लोकसभा सीटों में से 33 से 35 सीटों पर जीतेगा? यानि, गत लोकसभा चुनाव से चार से नौ सीटें ज्यादा। पिछले चुनाव में एनडीए को 29 सीटें मिलीं। इसबार, एनडीए का वोट शेयर 47 से  52 फीसद तक पहुंच सकता है।

कांग्रेस-आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन को महज 42 फीसद वोट ही मिलने का अनुमान है। यह अंतर केवल दस फीसद नहीं, बल्कि बिहार की सियासत में “जीत और हार के बीच की खाई” है।

सर्वेकार-जानकार यह भी बता रहे, बिहार में इसबार “सीधा और सपाट” चुनाव यानि बिल्कुल एकतरफा है। दिल्ली के हाल से बिल्कुल उलट, विभाजित कतई नहीं। सीधा  मतदान। शर्त्त यही, भाजपा, जेडीयू और एलजेपीआर को एकजुट रहना होगा। अगर ऐसा रहा तो महागठबंधन के लिए 5-7 सीटें भी बड़ी उपलब्धि होगी। यह एकता ही एनडीए का सबसे बड़ा हथियार है। नीतीश कुमार, जिन्हें कुछ महीने पहले तक ‘राजनीतिक दिवालिया’ बताया जा रहा था, अब एक बार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी के सबसे मजबूत दावेदार बनकर उभरे हैं।

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यही वजह है, नीतीश कुमार दिल्ली में मोदी बिहार में नीतेशे कुमार की तर्ज पर बार-बार दोहराते फिर संत रविदास जयंती के दिन पटना में विकास मित्र क्षमता वर्धन कार्यक्रम में बापू सभागार में दोहरा दिया। हम दो बार उधर चले गए। यह हमारी भूल थी। उन लोगों के लिए भी हमने काम करने का मौका दिया। लेकिन, लोगों ने कोई काम नहीं किया। अब एक बार फिर साथ आ गए हैं। साथ मिलकर राज्य का विकास कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री को लेकर भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्पष्ट कर दिया, अपनी कुर्सी सलामती के साथ कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह से देश के हर तबके के लिए काम कर रहे हैं वैसे ही हम यानि नीतेशे कुार बिहार में हर वर्ग के लिए काम करने में लगे हुए हैं। मतलब साफ, जब तक केंद्र में मोदी, बिहार में सीएम की कुर्सी की नो वैकेंसी?

इधर जब से, महागठबंधन के कांग्रेस और तेजस्वी की आरजेडी के गठजोड़ को सर्वेक्षण ने करारा झटका दिया है। महज, 5-7 सीटें देकर समेटने की जिद की है। राजद और कांग्रेस के साथ वीआइपी सचेत हो गई है। रणनीति बनने लगे हैं। सवाल खड़ा करते लालू प्रसाद स्वयं सामने हैं।

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने बीजेपी को सख्त चुनौती देते सवाल भी उठाया। लपेट भी लिया। “हमलोग के रहते हुए, बीजेपी कैसे सरकार बना लेगी?”गुरुवार की सुबह दस सर्कुलर रोड आवास के समीप मीडिया से बातचीत करते समय लालू यादव ने स्पष्ट कर दिया कि बिहार के मतदाता बीजेपी के असली चेहरे से परिचित हो चुके हैं। “सब लोग बीजेपी को जान चुके हैं। कहा, दिल्ली चुनाव का बिहार में कोई असर नहीं पड़ेगा।

इसकी तैयारी भी दिखने लगी है। विकासशील इंसान पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मंत्री मुकेश सहनी आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जोरशोर से जुटे हुए हैं। विभिन्न जिलों का दौरा करते हुए सहनी ने न केवल अपने कार्यकर्ताओं को बूथ स्तर पर ठोस तैयारी करने का निर्देश दिया, बल्कि अपने समर्थकों से प्रतिज्ञा भी करवाई कि अगली सरकार में उनकी ही छाप रहेगी। “इस बार अपनी सरकार बनेगी और मैं बिहार का अगला डिप्टी सीएम बनूंगा। चिंता मत करिए, आपकी समस्याओं का समाधान होगा। ‘सन ऑफ मल्लाह’ के नाम से प्रसिद्ध वीआईपी पार्टी के सुप्रीमो के रूप में, अब मल्लाह समाज अपना जवाब देगा और आगामी विधानसभा चुनावों में बीजेपी को मल्लाहों की ताकत का अहसास करवाएगा। यानि, तेजस्वी सीएम, मुकेश सहनी डिप्टी सीएम। सरकार का खांका तय। मगर, कांग्रेस है कि मानती नहीं।

यहां तक सन ऑफ मल्लाह ने कह डाला,  2025 के विधानसभा चुनावों में उनकी लड़ाई महागठबंधन के साथ ही होगी। आने वाली सरकार में तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनेंगे और स्वयं डिप्टी सीएम के रूप में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाएंगे। हालांकि, तेजस्वी अभी तक इस पर कोई आधिकारिक एलान नहीं किया है। वजह है कांग्रेस। जब कांग्रेस ने बिहार विधानसभा चुनाव में 70 सीटों की मांग की। राजद के भाई वीरेंद्र ने इसे महज मीडिया की अटकलें करार दिया। यह कहते टाल गए।  हमारा मुख्य उद्देश्य भाजपा और आरएसएस को बिहार से भगाना है। हम सभी दल मिलकर चुनाव लड़ेंगे। तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाएंगे।

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मगर, कोई फर्क नहीं पड़ता? यह बात चल निकलीं हैं। लालू के बयान पर बीजेपी नेता और उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा का कहना है, “लालू प्रसाद यादव रहेंगे या नहीं, यह तय नहीं है, लेकिन एनडीए की सरकार बनना तय है। लालू जी, आपका रहना अब जरूरी भी नहीं है। आपने बिहारी शब्द को गाली बना दिया, बिहार को बर्बाद किया और भाई-भाई को लड़ाया। अब बिहार को ऐसे लोगों की जरूरत नहीं है, जो सामाजिक सौहार्द को तोड़ें।

विजय सिन्हा यहीं नहीं रूके। आगे भी लालू को झकझोरा। कहा, “अब बिहार को विकास और सामाजिक सौहार्द चाहिए। एनडीए ही यह कर सकता है। लालू जी, आपके रहने या न रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता।

रूकिए जरा… यही बात तो राजद के भाई वीरेंद्र भी कह रहे, पीएम नरेंद्र मोदी के 24 फरवरी के बिहार दौरे पर आने-जाने से राज्य की राजनीति पर कोई असर नहीं पड़ेगा। “प्रधानमंत्री आते रहते हैं, जाते रहते हैं, इससे बिहार को कोई फर्क नहीं पड़ता।

फर्क तो कांग्रेस को भी बिहार में कतई कुछ नहीं पड़ता। अब सुनिए, विधायक प्रतिमा दास (Congress MLA Pratima Das) की। कहती हैं, कांग्रेस को बिहार की सभी 243 सीटों पर अकेले लड़ना चाहिए। एकला चलो।

कांग्रेस पूरे देश में क्षेत्रीय दलों से समझौता कर रही है। इससे कांग्रेस के अपने कार्यकर्ता पार्टी से दूर होते जा रहे हैं। कार्यकर्ताओं को खड़ा किए बिना लीडरशिप डेवलप नहीं हो सकती। बिहार में कांग्रेस अपनी नीति और सिद्धांत से लोगों को अवगत कराएगी तो ज्यादा से ज्यादा सीटें जीत पाएगी। बिहार विधानसभा चुनाव के बाद समान विचारधारा वाले सभी दल मिलकर सरकार बनाएंगे. कांग्रेस को अकेले लड़ना चाहिए।

बात यहीं नहीं रूकी। ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य और बिहार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता किशोर कुमार झा का बयान सियासी गलियारों में उफान पर है कि बिहार में कांग्रेस को कम से कम सौ सीटों पर  चुनाव लड़ना चाहिए। अगर, इतनी सीट महागठबंधन में नहीं मिलती है तो पार्टी अकेले विधानसभा चुनाव लड़ने पर विचार करे।

वैसे भी, कांग्रेस खासकर राहुल गांधी इन दिनों इंडिया महागठबंधन को जोड़ने में कम, तोड़ते ज्यादा दिखाई पड़ रहे। कांग्रेस की रणनीति ही क्षेत्रीय दलों को कमजोर करने की है। अगर ऐसा नहीं होगा, कांग्रेस की सत्ता वापसी असंभव सा है। वजह यही क्षेत्रीय दल हैं, जो रोड़ा-बाधक बने हुए हैं। पप्पू यादव भी कम फॉर्म में नहीं है। कांग्रेस का हाथ जोरों से पकड़े बैठे हैं। एकला चलो…।

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कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तारिक अनवर ने भी दिल्ली चुनाव के नतीजों के बाद लिखा था, “कांग्रेस को अपनी राजनीतिक रणनीति को स्पष्ट करने की जरूरत है। उन्हें तय करना होगा कि वे गठबंधन की राजनीति करेंगे या अकेले चलेंगे। पार्टी के संगठन में मूलभूत परिवर्तन करना भी जरूरी हो गया है।

ऐसे में, महागठबंधन जातिगत समीकरणों को तोड़ने की नाकामी से बाहर निकलने की छटपटाहट में है। वजह है एनडीए। इसने जदयू–एलजेपीआर के रास्ते दलित और पिछड़े वोटों को साध लिया है। तेजस्वी यादव का ‘युवा चेहरा’ और कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व भी बिहार में जमीनी स्तर पर असरदार साबित नहीं हो पा रहा।

ऐसे में, चुनाव से पहले महागठबंधन में जितनी आग है उतनी ही एनडीए में भी धधक रही है। टारगेट पर वोट बैंक है। अगले दस साल की बिहार की राजनीतिक मानचित्र है जिसमें रंग भरने में बीजेपी की मजबूरी नीतीश कुमार भी हैं, चिराग भी हैं और जीतन और उपेंद्र भी हैं। इधर, महागठबंधन की लठ्ठ भी सीधा होता दिख नहीं रहा।

पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बिहार में 70 सीटों पर लड़ी थी। 19 पर जीती थी। कांग्रेस महागठबंधन की सरकार में डिप्टी सीएम की कुर्सी डिमांड कर रही। मगर, सियासत में इस तरह की बयानबाजी और मांग चुनाव से पहले और चुनाव बाद तक होते रहेंगे…शर्त्त यही जीत मिले। बात बनें….

निष्कर्ष : यह बिहार है। यहां दैत्य को राजनीति की हर भाषा आती है, उसका सरोकार भी तत्काल दिखता है। भोगता कौन है? समाज की वही बेटी जो आज जिंदगी तलाश रही। मौत को हराने की जिद लिए दरभंगा की अस्पाल में पड़ी है। सच मानो तो, कल ही सीएम ने जो कहा, उसका फलसफा बाबा की नगरी कुशेंश्वरस्थान ने भोगा।

राजनीति चलती रहेगी। समाज बंटता-टूटता रहेगा। हवांए गर्म सलाख बनकर नसों में उतरतीं रहेंगी। सुरसुरी होगा। पुलिस हांफेंगी। मगर, फर्क के सिलवटों में पाट का अंतर कम नहीं होगा। भोग्या बनती हमारी बहू-बेटी, उसी भोग में अस्मत तलाशेंगी जहां से सियासत के कद्रदानों की अंगेठी धधकती भी है, सुलगाती भी है। सच मानो तो…

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