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दिसम्बर, 25, 2025

Rohtas Orphans: कोचस में जिंदगी की ठोकरें खाते अनाथ भाई-बहन, भूख और ठंड से जूझते दिन

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जीवन कभी-कभी एक क्रूर मज़ाक बन जाता है, जहाँ नियति अपनों को छीन लेती है और फिर बेबसी को ही सहारा बना देती है। बिहार के रोहतास जिले से आई एक खबर दिल को चीर देती है, जहाँ मासूम बच्चे अपने ही वतन में दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। Rohtas Orphans: कोचस की सर्द रातों में, दो मासूम भाई-बहन न केवल अपने माँ-बाप को खो चुके हैं, बल्कि अब उन्हें एक छत और दो वक्त की रोटी के लिए भीख मांगनी पड़ रही है, जबकि समाज और सिस्टम अपनी आँखें मूंदे हुए है।

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Rohtas Orphans: माता-पिता की मौत के बाद बेघर हुए मासूम

रोहतास जिले के कोचस से एक हृदय विदारक घटना सामने आई है, जहाँ नियति ने दो बच्चों से उनका सब कुछ छीन लिया। पहले माँ और फिर पिता की असमय मृत्यु ने इन मासूमों को अनाथ कर दिया। अब आलम यह है कि कड़ाके की ठंड में उनके पास सिर छुपाने के लिए एक अदद छत भी नहीं है, और पेट की आग बुझाने के लिए उन्हें सड़कों पर भीख मांगने पर मजबूर होना पड़ रहा है।

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क्षेत्र के लोग और जिम्मेदार समाजसेवियों की आँखें भी इस भयावह दृश्य से बेरुख दिख रही हैं। इन मासूमों की दयनीय स्थिति पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा। उनका बचपन सड़कों पर ही बीत रहा है, जहाँ वे भूख, ठंड और उपेक्षा का दंश झेल रहे हैं। यह एक गंभीर मुद्दा है जो बाल भिक्षावृत्ति की ओर धकेले जा रहे बच्चों के भविष्य पर प्रश्नचिह्न लगाता है। माँ-बाप के निधन के बाद मिलने वाला दुर्घटना बीमा क्लेम भी इन बच्चों तक नहीं पहुँच पाया है, जिससे उनकी मुश्किलें और भी बढ़ गई हैं। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। यह व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल है कि आख़िर ऐसे अनाथ बच्चों का भविष्य किसके भरोसे है।

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Rohtas Orphans: प्रशासन की अनदेखी और भविष्य पर सवाल

कोचस में सामने आया यह मामला केवल एक घटना नहीं, बल्कि एक गहरी सामाजिक समस्या की ओर इशारा करता है। जहाँ एक ओर सरकारें बच्चों के कल्याण और सुरक्षा के बड़े-बड़े दावे करती हैं, वहीं जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। इन भाई-बहनों को न केवल तत्काल सहायता की आवश्यकता है, बल्कि उन्हें एक सुरक्षित भविष्य और शिक्षा का अधिकार भी मिलना चाहिए। स्थानीय प्रशासन को इस मामले पर गंभीरता से संज्ञान लेते हुए इन बच्चों के लिए उचित आवास, भोजन और शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए।

समाज और व्यवस्था की चुप्पी

उनकी कहानी पूरे समाज के लिए एक दर्पण है, जो दिखाता है कि आज भी कई बच्चे ऐसे ही विषम परिस्थितियों से जूझ रहे हैं। समाज को चाहिए कि ऐसी बाल भिक्षावृत्ति को रोकने और इन बच्चों को मुख्यधारा में लाने के लिए आगे आए। इस मामले में त्वरित कार्रवाई की सख्त आवश्यकता है ताकि ऐसे और बच्चों को इस अभिशाप से बचाया जा सके, आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। प्रशासन और सामाजिक संगठनों को मिलकर इन मासूमों की मदद के लिए एक ठोस रणनीति बनानी होगी, अन्यथा ऐसे कई Rohtas Orphans अंधेरे में भटकने को मजबूर होंगे। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।

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