Rohtas News: जिंदगी की बिसात पर जब भाग्य की चालें उल्टी पड़ जाती हैं, तब इंसान के सामने सिर्फ संघर्ष ही बचता है। कोचस की सर्द रातों में दो मासूम भाई-बहनों की आंखों में भविष्य की कोई उम्मीद नहीं, बस पेट की आग और बेबसी का अथाह सागर है। उनकी आंखों में भविष्य की कोई उम्मीद नहीं, बस पेट की आग और बेबसी का अथाह सागर है, आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
बिहार के रोहतास जिले के कोचस से एक बेहद हृदय विदारक खबर सामने आई है, जिसने पूरे इलाके को झकझोर कर रख दिया है। यहां एक ही परिवार के बच्चों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। पहले मां की मौत हुई और कुछ समय बाद पिता भी दुनिया छोड़कर चले गए। माता-पिता के निधन के बाद इन मासूम बच्चों को न तो किसी सरकारी योजना का सहारा मिला और न ही पिता के दुर्घटना बीमा का क्लेम मिल पाया। अब इन अनाथ बच्चों के पास इस कड़कड़ाती ठंड में सिर छुपाने के लिए एक छत तक नहीं है। वे हर दिन भीख मांगकर किसी तरह अपनी जिंदगी जीने को मजबूर हैं।
रोहतास न्यूज: जब सिस्टम भी बन जाए बेबस, अनाथ बच्चों का भविष्य अधर में
यह दर्दनाक कहानी हर संवेदनशील व्यक्ति को झकझोर देती है। इस कड़कड़ाती ठंड में इन मासूमों के पास न सिर छुपाने को छत है, न पेट भरने को भोजन। समाज के जिम्मेदार लोगों ने भी इन बच्चों की ओर से अपनी आंखें मूंद ली हैं, जिससे उनकी स्थिति और भी दयनीय हो गई है। यह घटना समाज के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा करती है कि आखिर इन अनाथ बच्चों का क्या कसूर है? क्यों उन्हें सरकारी और सामाजिक दोनों ही स्तरों पर उपेक्षा का शिकार होना पड़ रहा है?
स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की चुप्पी भी सवालों के घेरे में है। क्या इन मासूमों के लिए कोई योजना नहीं है? क्या कोई अधिकारी या सामाजिक संस्था इनकी मदद के लिए आगे नहीं आएगा? इन बच्चों का अकेलापन और लाचारी यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम एक ऐसे समाज में जी रहे हैं, जहाँ इतनी छोटी उम्र में ही बच्चों को अपनी भूख मिटाने के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है।
कड़ाके की ठंड और मासूमों की बेबसी: कौन बनेगा सहारा?
इस भीषण सर्दी में जहां लोग अपने घरों में दुबके रहते हैं, वहीं ये मासूम खुले आसमान के नीचे रात गुजारने को मजबूर हैं। उनके पास न गर्म कपड़े हैं, न पेट भर खाना। उनकी आँखों में भविष्य के प्रति एक खालीपन साफ झलकता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्होंने कई बार प्रशासन से गुहार लगाई है, लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। यह स्थिति सरकार की उन कल्याणकारी योजनाओं पर भी सवाल उठाती है, जो बेसहारा और अनाथों के लिए बनाई गई हैं। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
हम देशज टाइम्स के माध्यम से प्रशासन से अपील करते हैं कि इन मासूमों की सुध ली जाए और उन्हें उचित सहायता प्रदान की जाए, ताकि वे भीख मांगने के बजाय एक सम्मानजनक जीवन जी सकें। क्या इन अनाथ बच्चों को भीख मांगने के बजाय एक सम्मानजनक जीवन का अधिकार नहीं है? आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
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