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दिसम्बर, 23, 2025

Tribal Language Day: आदिवासी भाषाओं के संरक्षण का संकल्प, पहचान बचाने की मुहिम तेज

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Tribal Language Day: भाषा महज संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि किसी भी सभ्यता की आत्मा होती है। जब उसकी धड़कनें धीमी पड़ने लगें, तो संस्कृति का अस्तित्व भी संकट में आ जाता है। ऐसे ही एक गंभीर संकट से जूझ रही आदिवासी भाषाओं के संरक्षण का संकल्प हाल ही में लिया गया है, जो उनकी पहचान और विरासत को बचाने की दिशा में एक अहम कदम है।

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Tribal Language Day: आदिवासी भाषाओं के संरक्षण का संकल्प, पहचान बचाने की मुहिम तेज

Tribal Language Day: क्यों है आदिवासी भाषाओं का संरक्षण जरूरी?

दुनियाभर में हर साल सैकड़ों भाषाएं विलुप्ति की कगार पर पहुँच जाती हैं। इनमें बड़ी संख्या आदिवासी भाषाओं की है, जो पीढ़ियों के ज्ञान, लोककथाओं और जीवनशैली को समेटे हुए हैं। इन भाषाओं का क्षरण सीधे तौर पर आदिवासी संस्कृति और उनकी विशिष्ट पहचान को प्रभावित करता है। हाल ही में मनाए गए अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी भाषा दिवस के अवसर पर, विभिन्न आदिवासी समुदायों और बुद्धिजीवियों ने अपनी भाषाओं और समृद्ध आदिवासी संस्कृति को बचाने का संकल्प लिया। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।

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यह संकल्प केवल शब्दों का नहीं, बल्कि एक ठोस कार्ययोजना का आह्वान है, जिसमें इन भाषाओं को स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल करने, उन पर शोध को बढ़ावा देने और बोलचाल में उनके उपयोग को प्रोत्साहित करने जैसे उपाय शामिल हैं। कई विशेषज्ञों का मानना है कि शहरीकरण और आधुनिक शिक्षा की दौड़ में युवा पीढ़ी अपनी जड़ों से कट रही है, जिससे भाषाएं और दूर होती जा रही हैं। इस चुनौती से निपटने के लिए समुदाय स्तर पर पहल की जा रही है। देश की हर बड़ी ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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इस अवसर पर कई वक्ताओं ने कहा कि हर भाषा अपने आप में एक ज्ञानकोष है। आदिवासी भाषाएँ हमें प्रकृति के करीब ले जाती हैं और उनके पास पर्यावरण संरक्षण के अद्वितीय तरीके हैं। इन भाषाओं के खोने का मतलब मानव ज्ञान के एक महत्वपूर्ण हिस्से का खोना है। आदिवासी संस्कृति के संरक्षण में भाषा का महत्व सर्वोपरि है। हम आपको बता दें, आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।

संरक्षण की दिशा में चुनौतियाँ और समाधान

आदिवासी भाषाओं के संरक्षण में कई बाधाएँ हैं, जिनमें संसाधनों की कमी, भाषाई डेटा का अभाव और सरकार तथा समाज का उदासीन रवैया शामिल है। हालांकि, डिजिटल युग इन भाषाओं के लिए एक नया अवसर भी लेकर आया है। सोशल मीडिया, ऑनलाइन शिक्षण मंच और ऑडियो-विजुअल सामग्री के माध्यम से इन भाषाओं को नई पीढ़ी तक पहुंचाया जा सकता है।

समुदायों द्वारा स्वयं आगे आकर अपनी भाषाओं के दस्तावेजीकरण, शब्दकोशों के निर्माण और कहानियों-गीतों के संकलन का कार्य किया जा रहा है। यह एक सामूहिक प्रयास है जिसमें सरकार, अकादमिक जगत और स्वयंसेवी संगठनों की भागीदारी आवश्यक है ताकि इन बहुमूल्य भाषाओं को विलुप्ति से बचाया जा सके और आने वाली पीढ़ियां अपनी सांस्कृतिक विरासत पर गर्व कर सकें। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।

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