दीपक कुमार | सामा-चकेवा मिथिला (Mithila) का एक प्रसिद्ध लोक पर्व है, जो भाई-बहन के बीच स्नेह और प्रेम का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व कार्तिक शुक्ल सप्तमी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है और सात दिनों तक भाई-बहन एक-दूसरे के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं। मिथिलांचल के गांवों में यह पर्व बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है।
सामा चकेवा की शुरुआत (Beginning of Sama Chakeva)
आज से मिथिला में सामा चकेवा की शुरुआत हो गई है। इस सात दिन के पर्व का समापन कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) की रात को होता है, जब मिथिला की लड़कियां सामा की विदाई करती हैं। सामा की विदाई उस प्रकार से होती है, जैसे किसी घर की लड़की की विदाई होती है।
स्कंद पुराण में सामा चकेवा का उल्लेख (Reference of Sama Chakeva in Skanda Purana)
संस्कृत के विद्वान और वेदाचार्य डॉ. धीरज कुमार झा के अनुसार, स्कंद पुराण (Skanda Purana) में सामा चकेवा की कहानी का वर्णन किया गया है। इसमें भगवान कृष्ण और उनकी बेटी सामा का उल्लेख है।
सामा और भगवान कृष्ण की कहानी (The Story of Sama and Lord Krishna)
सामा नाम की द्वारकाधीश भगवान कृष्ण की एक बेटी थी। सामा की माता का नाम जाम्बवती (Jambavati) था और भाई का नाम संबा (Samba) था। एक बार चूडक (Chudak) नामक एक व्यक्ति ने सामा पर ऋषियों (Sages) के साथ घूमने का आरोप लगाया, जिससे भगवान कृष्ण क्रोधित हो गए और उन्होंने सामा और ऋषियों को पक्षी बनने का श्राप (Curse) दे दिया।
चकेवा का दुख (Chakeva’s Grief)
सामा का पति चकेवा (Chakeva) बहुत दुखी हुआ और अपनी पत्नी के वियोग में उसने भी पक्षी का रूप धारण कर लिया। वह भी वृंदावन में सामा के साथ रहने के लिए चला गया।
साम्ब की तपस्या (Samba’s Penance)
सामा के भाई संबा को जब इस घटना का पता चला, तो उसने भगवान कृष्ण से सामा के श्राप को समाप्त करने के लिए तपस्या की। वह वर्षों तक कठोर तपस्या करता रहा, और भगवान कृष्ण से वरदान प्राप्त करने में सफल हुआ।
भगवान कृष्ण का वरदान (Lord Krishna’s Blessing)
भगवान कृष्ण अपने पुत्र संबा की तपस्या से प्रसन्न हुए और उससे वरदान मांगने को कहा। संदर्भ में, संबा ने अपनी बहन सामा को पुनः मनुष्य रूप में लौटाने की प्रार्थना की। भगवान कृष्ण ने सामा को मुक्ति देने का तरीका बताया:
“कार्तिक सप्तमी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक, मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करें।”
इसके बाद, यह परंपरा शुरू हुई कि लोग इस दौरान मिट्टी की मूर्तियों की पूजा करते हैं और भाई अपनी बहन की लंबी उम्र की कामना करते हैं।
सामा चकेवा की मूर्तियां (Idols of Sama Chakeva)
इस पर्व में विशेष रूप से सामा और चकेवा की मूर्तियों की पूजा होती है। मिथिला में यह परंपरा बहुत पुरानी है, और इन मूर्तियों में अलग-अलग रूप होते हैं। इनमें मुख्य रूप से:
- सतभैया (Sathbhaiya) — सात ऋषियों की मूर्तियां।
- चुगला (Chugla) — वही व्यक्ति, जिसने सामा के बारे में कृष्ण को झूठी सूचना दी थी।
- वृंदावन जंगल (Vrindavan Jungle) की प्रतिकृति।
सामा चकेवा की पूजा और खेल (Rituals and Games of Sama Chakeva)
सामा चकेवा के इस पर्व के दौरान, मिथिला की महिलाएं और लड़कियां पूरे उत्साह से सामा चकेवा का खेल खेलती हैं। इस खेल में मिट्टी की मूर्तियों को बांस के डाले (Bamboo Basket) में रखकर, महिलाएं और लड़कियां सामा चकेवा के गीत गाते हुए इकट्ठा होती हैं।
सामा चकेवा के गीत (Songs of Sama Chakeva)
इस सात दिन के दौरान, सामा चकेवा के विशेष गीत गाए जाते हैं जो भाई-बहन के प्रेम को व्यक्त करते हैं। यह गीत शाम के समय गाए जाते हैं, और महिलाएं सामा चकेवा के खेल में भाग लेने के लिए एक स्थान पर इकट्ठा होती हैं।
भाई की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना (Praying for Brother’s Long Life)
पूरे पर्व के दौरान, लड़कियां अपने भाई की लंबी उम्र (Long Life) की प्रार्थना करती हैं और यह पर्व भाई-बहन के रिश्ते को प्रगाढ़ बनाने का एक महत्वपूर्ण अवसर होता है।
मिथिला में सामा चकेवा की परंपरा (Tradition of Sama Chakeva in Mithila)
सामा चकेवा का पर्व मिथिलांचल के हर गांव (Every Village) में मनाया जाता है, चाहे वह किसी भी जाति या समुदाय से संबंध रखता हो। यह पर्व भाई-बहन के रिश्ते की महत्ता को प्रदर्शित करता है और एकता, प्रेम और सामूहिकता का प्रतीक बनकर समुदाय को जोड़ता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
सामा चकेवा न केवल एक त्योहार है, बल्कि यह मिथिलांचल की संस्कृति (Culture), परंपराओं (Traditions) और भाई-बहन के प्रेम की एक सुंदर अभिव्यक्ति है। इस पर्व के माध्यम से हम भाई-बहन के रिश्ते की शक्ति और महत्व को महसूस कर सकते हैं।