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5 दिसम्बर, 2024
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आज कर्पूरी ठाकुर….Manoranjan Thakur के साथ

जननायक की आज जयंती है। क्या ऐसा नहीं करना, भारत रत्न को सांकेतिक बना दे रहा। आरक्षण के बढ़े दायरे संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल अगर ना हो। तो क्या, भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर के प्रति यह सच्ची श्रद्धांजलि नहीं होगी। क्या बिहार में हुई जाति गणना, इसके परिणाम के फलसफा कुछ और हैं। क्या, राजद का डिमांड केंद्र को स्वीकार है? राजनीतिक दबाव काम आएंगें। संविधान की अनुसूची में इसकी हिस्सेदारी बनेंगी। सामाजिक गणित की नई परिभाषा क्या बनेंगी। क्या गढ़ीं जाएगी। राजनीतिक शुचिता क्या कहता है? क्या होना चाहिए? सवाल अधिक हैं। जवाब तलाशे जा रहे। ऐसे में....कारतूस बदलने का मौसम बढ़िया है...मनोरंजन ठाकुर के साथ

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देशज टाइम्स | Highlights -

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काश! आज कर्पूरी जिंदा होते। तो, सामाजिक न्याय की असल परिभाषा क्या होती। समाजवादियों का क्या होता। सार्वजनिक चर्चाएं क्या होतीं। फिक्र किसका होता। जिक्र के केंद्र में कौन होता।

Jananayak Karpoori Thakur | एक समग्र व ठोस बहस की जरूरत महसूस हो रही है

सामाजिक स्थिति की मजबूती, सामाजिक सुधार के प्रयास उसकी जड़ें कहां तक होतीं। कारण, वर्तमान समाज, उसके बहकाव, उसकी सोच, राजनीतिक घुसपैठ, नए-नए राजनीतिक पैतरें, उसके अस्तर, उसके ट्रेंड, स्वरूप, सोच का फलसफा उस निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है, जहां से एक समग्र व ठोस बहस की जरूरत महसूस हो रही है। आखिर समाजवाद का भावी चेहरा कैसा होगा? क्या समाज धंसान, अवसान की ओर है। कोई मापदंड, कहीं निर्धारित नहीं।

Jananayak Karpoori Thakur | आखिर, 1988 से चली बात 2024 पर आकर क्यों अटकीं

बड़े दांव। बड़े खेले। आखिर, 1988 से चली बात 2024 पर आकर क्यों अटकीं। क्यों यहीं से एक नई बहस चल पड़ी हैं जहां,आज भी उसी जननायक की सोच, सरकारी नौकरियों में पिछड़ों के लिए आरक्षण, गन्ना किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य,गरीबों के लिए मुफ्त राशन का बंटवारा बदस्तूर है। फर्क कहां है। नयापन कौन देगा। नई परिभाषाएं कौन गढ़ेगा। क्यों बिहार के एकमुश्त 36 फीसद से अधिक अति पिछड़े वोट, टारगेट पर हैं। वहीं टिकीं सबकी निगाहें अकाल अनायास…कौवे-गिद्द।

Jananayak Karpoori Thakur | आखिर, इस सोच का फलसफा क्या था? आज क्या हो रहा है?

एक से अधिक समावेशी समाज की नींव, ध्रुवीकरणकारी नीतिगत निर्णय, स्वच्छ छवि, सरकारी धन पर खुद को समृद्ध करने से इनकार करने की प्रवृत्ति, ऑस्ट्रिया के आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल के लिए चुने जाने पर दोस्त से फटा कोट उधार लेना, सार्वजनिक जीवन में तीन दशक बिताने के बाद 1988 में जब मौत को चुना, उसी झोपड़ी के अंश भर में। इस गुदरी के लाल ने, बतौर बिहार के मुख्यमंत्री, राजनीतिक नेताओं के लिए एक कॉलोनी बनाने का फैसला जरूर किया। मगर, खुद के लिए कोई जमीन या पैसा नहीं लिया।

Jananayak Karpoori Thakur | आखिर, जननायक की बात आज कर कौन रहा है?

यही वह सोच है, जो आज नदारद है। विखंडित है। जेल की सलाखों में है या जाने भर को तैयार बाहर खड़ा है। ऐसे में जननायक की बात आज कर कौन रहा है? जिस भ्रष्टाचार के वे सख्त विरोधी थे। इसी भ्रष्टाचार की जद में आज पूरा समाज निर्वस्त्र है। नेताओं की सफेदी पर भ्रष्टाचार के निशान, अफसरों की कोट में भ्रष्टाचार के दास्तांन, आखिर सच्चा अनुयायी है कौन?

Jananayak Karpoori Thakur | उसी झोपड़ी के भाग जाग गए हैं, प्रभु राम और कर्पूरी की झोपड़ी

पहले आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को दस फीसद, संसद में 33 फीसद महिलाएं और अब भारत रत्न… प्रमाण के ईद वही झोपड़ी हैं जो जननायक की सादगी, ईमानदारी के अचूक शस्त्र थे, जहां उसी झोपड़ी के भाग जाग गए हैं। प्रभु राम और कर्पूरी की झोपड़ी। वही कमंडल। वहीं मंडल। अंतर कहां।

Jananayak Karpoori Thakur | ईमानदार कोट और उसी ईमानदारी के पैजामे आज कौन पहन रहा

कर्पूरी का शिष्य होना। कहलाना। उनके मार्गों पर चलना। उनकी विसात को अग्रसारित करना, भला किसे आया है। किसने किया है। कौन कर रहा है। उस ईमानदार कोट और उसी ईमानदारी के पैजामे आज कौन पहन रहा, जिसे कभी कर्पूरी के लिए ऊंची जातियों के बड़े विरोध का हिस्सा बनते देर ना लगी थी।

Jananayak Karpoori Thakur | कर्पूरी कर पूरा, छोड़ गद्दी, धर उस्तुरा…कहां की बात कहां आकर ठकरी

‘ कर्पूरी कर पूरा, छोड़ गद्दी, धर उस्तुरा (अपना काम खत्म करो, कर्पूरी। कुर्सी से हटो, जाओ उस्तरा पकड़ो)’ की बात उसी ऊंची जातियों के बड़े विरोध का हिस्सा बनते देर ना लगी जहां जून 1970 में, बिहार सरकार ने मुंगेरी लाल आयोग नियुक्त किया। इसने फरवरी 1976 की अपनी रिपोर्ट में 128 “पिछड़े” समुदायों का नाम दिया।

Jananayak Karpoori Thakur | यह फॉर्मूला ‘कर्पूरी को महंगा पड़ा, आज की सरकारें इसी रास्ते पर

इनमें से 94 की पहचान “सबसे पिछड़े” के रूप में की गई। ठाकुर की जनता पार्टी सरकार ने आयोग की सिफ़ारिशों को लागू किया। ‘कर्पूरी ठाकुर फॉर्मूला’ ने 26% आरक्षण प्रदान किया। इसमें ओबीसी को 12% हिस्सा,ओबीसी के बीच आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को 8%, महिलाओं को 3% और “उच्च जातियों” के गरीबों को 3% मिला। हालात कमोबेश आज भी वहीं हैं। जहां, यह फॉर्मूला ‘कर्पूरी ठाकुर को महंगा पड़ा। उनकी सरकार गिर गई। वहीं, आज की सरकारें इसी रास्ते पर बनी हैं और बनती दिख रही हैं।

Jananayak Karpoori Thakur | परिवार वाद, हिस्सेदार, चुनना या दरकिनार

परिवारवाद से आज कोई भी दल अछूता नहीं है। कमोबेश, कहीं अधिक, कहीं कम मगर जद में परिवार के हिस्से सभी दल हिचकी ले रहे। जहां, कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर भी राज्यसभा भेजे गए। मगर, सोचिए, कर्पूरी अगर जीवित रहते तो क्या होता? रामनाथ राज्यसभा जाते? क्या वह मौजूदा राजनीति के हिस्सेदार बनते। क्या, कर्पूरी अपने परिवार के लोगों को राजनीति में आने देते। शायद ना।

Jananayak Karpoori Thakur | सिंहासन का रेड कॉपरेट बनने को आतुरता कौन है?

कारण, शुरू से ही इसके विरोध में खड़े रहने वाले यह कदम कतई ना चुनते जहां बिहार में राजनीतिक दलों के बीच कर्पूरी ठाकुर के नाम पर होने वाले सियासी घमासान खाली होने वाले सिंहासन का रेड कॉपरेट बनने को आतुरता के साथ बनने, बनाने को बैचेन दिख, सामने है।

Jananayak Karpoori Thakur | चुनावी माहौल है, जननायक हैं, उनका स्वभाव है, हिस्से की सत्ता है, सबकुछ इस दफे है

चुनावी माहौल कोई हो। बिहार में जननायक कर्पूरी के स्वभाव और चिंतन से इतर इनका नाम लेना, उसे भुनाने की कोशिश करना, उससे अपने हिस्से की सत्ता बंटोराना कोई नई बात नहीं रही है। सो, इस दफे, खुद को कर्पूरी के शिष्य बताने वाले भी इसे भुनाएंगें। जिसने भारत रत्न दिया या जहां से यह चला वह भी कर्पूरी पर अब तक के सबसे बड़े दांव के खेल में पिच पर बल्लेबाजी करते नहीं थकेंगे…जहां केंद्र सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा कर दी है।

Jananayak Karpoori Thakur | उस अनदेखी की देखी…सही में, चुनाव तो है

यह, जननायक की जन्मशताब्दी है। सामने लोकसभा चुनाव है। दो दशक तक की बिहारी राजनीति और सामाजिक न्याय के प्रणेता की मूर्ति है। अति पिछड़े समुदाय हैं। सर्वश्रेष्ठ सम्मान भारत रत्न है। दूरगामी रणनीति है। खास यह, 1988 के कर्पूरी को भारत रत्न देना  गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री वीपी सिंह, चंद्रशेखर, एचडी देवेगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल के भ्रम जाल में भी नहीं रहा, उस अनदेखी की देखी…सही में, चुनाव तो है।

Jananayak Karpoori Thakur | जनसंघ का जनसमर्थन और बिहार के कर्पूरी

1990 से 2005 तक राजद प्रमुख लालू यादव। वही उसी सलीखे बिहार से केंद्र की राजनीति। तत्कालीन जनसंघ (अब भाजपा) के सहयोग से कर्पूरी ठाकुर का बिहार में दो बार मुख्यमंत्री और एक बार उप मुख्यमंत्री बनना। अब ऐसे में, सामने जब लोकसभा चुनाव हो भाजपा इसे भला ना भुनाए, कैसे हो सकता है।

Jananayak Karpoori Thakur | 100वीं जयंती, कोशिश, कब्जाधारियों की बड़ी होगी

सीएम नीतीश कुमार। हर मौकों पर कर्पूरी के लिए ‘भारत रत्न’ की मांग। ऐन मौके पर, कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती आज। अब राजनीतिक दल अपनी ताकत तो दिखाएंगें ही। कोशिश तो यही होगी…पिछड़े वर्गों के वोट बैंक पर कब्जा हो जाए। कारण, इस कब्जाधारियों में जेडीयू भी है राजद तो है ही, बीजेपी के अलावे उपेंद्र कुशवाहा, हम के मांझी भी हैं जो एक नई बहस भी शुरू कर दी है, माउंटेन वाले मांझी कि जहां जयंती समारोह के लिए अलग-अलग कार्यक्रम, अलग-अलग दल, अलग-अलग वेश, अगल-अलग सोच, आयोजित किए जा रहे हैं। मगर, इन मंसूबों पर पानी फेरना बीजेपी को बखूबी आ गया है। सो,

Jananayak Karpoori Thakur | उल्टी गिनती की शुरूआत 10 रैलियों से

बिहार में लोकसभा चुनाव 2024 की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। सभी दलों की अपनी राग, अपनी तैयारियां शुरू हैं। इसी कड़ी में बिहार भाजपा की अगले दो महीनों में दस बड़ी रैलियां होने वाली हैं। इन रैलियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जैसे वरिष्ठ नेता शामिल होंगे।

Jananayak Karpoori Thakur | यह महत्व जताएंगें, मनोबल बढ़ाएंगें, रणनीति की सेज भी सजाएंगें

इन रैलियों का महत्व कई मायनों में है। सबसे पहले, ये रैलियां बिहार में भाजपा की सक्रियता और उसके चुनावी अभियान की शुरुआत का प्रतीक हैं। ये रैलियां भाजपा के संदेश को आम लोगों तक पहुंचाने का एक बेहतरीन माध्यम, तरीका बनेगा। तीसरी बात, ये रैलियां भाजपा कार्यकर्ताओं के मनोबल बढ़ाएंगें, उनकी रणनीति में मददगार होंगे।

Jananayak Karpoori Thakur | कुछ चुनौतियां हैं, मगर 17 को बढ़ाना है

बिहार में भाजपा की स्थिति कुछ चुनौतीपूर्ण है। राज्य में एनडीए की गठबंधन सरकार है। लेकिन भाजपा के पास केवल 17 लोकसभा सीटें हैं। ऐसे में भाजपा को 2024 के चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के लिए अपने प्रचार अभियान को तेज करने की जरूरत है। इन रैलियों के जरिए भाजपा यही कोशिश कर रही है।

Jananayak Karpoori Thakur | उपल ब्धियां गिनाना, विपक्ष को साधना, विकास का पंच और बहुत कुछ

इन रैलियों में भाजपा सरकार की उपलब्धियों को गिनाने और विपक्ष पर निशाना साधने की कोशिश करेगी। भाजपा यह संदेश देने की कोशिश करेगी कि वह बिहार के विकास के लिए प्रतिबद्ध है। भाजपा यह संदेश देना चाहती है कि वह बिहार में चुनाव जीतने के लिए पूरी तरह से तैयार है।

Jananayak Karpoori Thakur | जिक्र होगा तो तभी सामाजिक न्याय की असल परिभाषा जमीं पर उतरेंगीं

सामाजिक न्याय की असल परिभाषा को जमीन पर उतारने का समय आ गया है। करोड़ों लोगों के जीवन में सकारात्मक प्रभाव डालने की गुंजाइश शेष है। समाजवादियों की संगम भूमि बिहार में रामविलास पासवान, शरद यादव और चंद्रशेखर से लेकर सार्वजनिक चर्चाओं में कर्पूरी ठाकुर का जिक्र होना, बहुत कुछ हासिल करना होगा।

Jananayak Karpoori Thakur | यहां मंडल के साथ कमंडल, संख्यात्मक छोटे समुदाय, कर्पूरी से निकटता, जुड़ाव सब जगजाहिर होंगे

जैसे-जैसे मंडल-कमंडल की राजनीति तेज हो रही है। बिहार के सभी राजनीतिक खिलाड़ी ठाकुर की विरासत पर नतमस्तक हैं। कई सारे दावे देखे जा रहे हैं। ऐसे में, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो स्वयं संख्यात्मक रूप से छोटे ईबीसी समुदाय से हैं, की विशेष रूप से कर्पूरी से निकटता,वह जुड़ाव जगजाहिर है।

Jananayak Karpoori Thakur | मैथिली भाषा वहीं हैं जहां कर्पूरी रूक गए थे…

राजनीतिक जीवन में गरीबों के लिए शिक्षा सुविधाओं में सुधार। खासकर, स्थानीय भाषाओं में शिक्षा के समर्थक के तौर पर उनकी विस्तारित करती सोच आज भी सामने है जहां मैथिली को लेकर जनवादी सोच, पाठ्यक्रम में उसके विस्तार की हिमायत आज भी बदस्तूर जारी है।

Karpoori Thakur Bharat Ratna | सोच को किताबी अध्यायों में उतारने, सहेजनें की जरूरत क्या हो पाएगा कभी पूरा?

कर्पूरी का मकसद, छोटे शहरों और गांवों के लोगों को जिन सीढ़ियों पर परवान तक  पहुंचाना, सफलता की गारंटी देना था उसी सोच को आज किताबी अध्यायों में उतारने उसे सहेजने की जरूरत भर है जहां एक सीएम वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण के लिए भी कई कदम उठाता है, एक युवा के रूप में भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सेदार भी बनता है।

Karpoori Thakur Bharat Ratna | काश! कर्पूरी यह सब देख रहे होते…

वह श्रमिक वर्ग, मजदूरों, छोटे किसानों और युवाओं के संघर्षों को सशक्त रूप से आवाज देते हुए, विधायी सदनों में एक ताकतवर आवाज बनकर जिस कर्पूरी ने बिहार को सींचा, उसके विस्तार को नववाद से जोड़ा, यह आज जहर बनकर उनके ही काम नहीं कभी आया ना आ रहा है। जिस व्यक्ति पर भ्रष्टाचार या ‘अराजकता’ का कोई आरोप नहीं लगा। उस जननायक के उसी देश में ये क्या हो रहा है…? काश? आज कर्पूरी यह सब देख रहे होते…समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे….मगर कब?

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