पटना। बिहार की सियासत में इन दिनों गहमागहमी तेज है. एक तरफ जहां मंत्री पद को लेकर खींचतान जारी है, वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय लोक जनता दल में बड़ा सियासी भूचाल आ गया है. पार्टी अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के एक फैसले ने ऐसा तूफान खड़ा किया है कि कई कद्दावर नेताओं ने दामन छोड़ दिया है. आखिर क्या है पूरा मामला, और क्यों हो रही है कुशवाहा के ‘परिवारवाद’ पर इतनी चर्चा?
कुशवाहा के फैसले पर क्यों मचा बवाल?
राष्ट्रीय लोक जनता दल (RLJD) के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा इन दिनों अपनी ही पार्टी में भारी विरोध का सामना कर रहे हैं. यह विरोध उनके एक हालिया फैसले के बाद भड़का है, जिसमें उन्होंने अपने बेटे को मंत्री पद दिलवाया है. इस कदम को लेकर पार्टी के भीतर से ही ‘परिवारवाद’ और ‘वंशवाद’ के आरोप लगने शुरू हो गए हैं, जिसने एक बड़े राजनीतिक विवाद का रूप ले लिया है.
कुशवाहा के इस कदम को पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने सिद्धांतों के खिलाफ माना है. उनका तर्क है कि जिस राजनीति में वे ‘परिवारवाद’ का विरोध करते रहे हैं, उसी राह पर चलकर उन्होंने अपने बेटे को आगे बढ़ाया है. इस फैसले के बाद से ही पार्टी के भीतर असंतोष सुलग रहा था, जो अब खुलकर सामने आ गया है.
किन नेताओं ने छोड़ी पार्टी?
बेटे को मंत्री बनाए जाने के फैसले से उपजे विवाद के कारण राष्ट्रीय लोक जनता दल को बड़ा झटका लगा है. पार्टी के कई महत्वपूर्ण नेताओं ने एक साथ पार्टी छोड़ने का ऐलान कर दिया है. इनमें पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जितेंद्र नाथ भी शामिल हैं, जो पार्टी के एक बड़े चेहरे माने जाते थे.
- जितेंद्र नाथ: राष्ट्रीय उपाध्यक्ष
- अन्य कई वरिष्ठ नेता: इनकी पहचान अभी पूरी तरह से सामने नहीं आई है, लेकिन सूत्रों के अनुसार कई और महत्वपूर्ण पदाधिकारियों ने भी इस्तीफा दे दिया है.
इन नेताओं का आरोप है कि पार्टी में अब सिद्धांतों और निष्ठा की कोई कद्र नहीं रही है, और निर्णय केवल व्यक्तिगत हितों को साधने के लिए लिए जा रहे हैं. उन्होंने साफ कहा कि वे ऐसे दल का हिस्सा नहीं रह सकते, जहां मेरिट के बजाय पारिवारिक संबंधों को प्राथमिकता दी जाती हो.
राष्ट्रीय लोक जनता दल में उठे सवाल
राष्ट्रीय लोक जनता दल में एक साथ कई नेताओं के इस्तीफे से पार्टी के भविष्य पर सवाल खड़े हो गए हैं. उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व पर उंगलियां उठाई जा रही हैं, और यह पूछा जा रहा है कि क्या वे पार्टी को एकजुट रख पाएंगे. यह घटना ऐसे समय में हुई है जब बिहार में राजनीतिक समीकरण लगातार बदल रहे हैं, और हर दल अपनी स्थिति मजबूत करने में जुटा है.
विश्लेषकों का मानना है कि इस आंतरिक कलह का सीधा असर पार्टी के जनाधार और आगामी चुनावों में उसके प्रदर्शन पर पड़ सकता है. इस घटना ने न केवल उपेंद्र कुशवाहा की राजनीतिक साख पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि राष्ट्रीय लोक जनता दल के भीतर ‘लोकतांत्रिक मूल्यों’ को लेकर भी नई बहस छेड़ दी है.







