Dollar’s Future: 2025 का साल वैश्विक अर्थव्यवस्था और राजनीति में एक नए युग की शुरुआत का स्पष्ट संकेत दे रहा है। यूक्रेन-रूस युद्ध, ईरान-इजरायल तनाव और बदलते वैश्विक गठबंधनों ने न केवल भू-राजनीति बल्कि डॉलर-आधारित वैश्विक वित्तीय प्रणाली को भी गंभीर चुनौती दी है। भारत-रूस के बीच कच्चे तेल का व्यापार अब बड़े पैमाने पर रुपया-रूबल और युआन में हो रहा है, जिससे डॉलर की वैश्विक पकड़ कमजोर हुई है। तीन साल पहले जहां भारत रूस से केवल 2% तेल आयात करता था, वहीं अब यह हिस्सेदारी 36-38% तक पहुँच गई है, और वह भी भारी छूट पर, जो अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
बदलते आर्थिक समीकरण: डॉलर का भविष्य और BRICS की बढ़ती ताकत
इसी बीच, BRICS देशों द्वारा अमेरिकी ट्रेजरी की बड़े पैमाने पर बिक्री, बढ़ता अमेरिकी राष्ट्रीय कर्ज और वित्तीय अस्थिरता निवेशकों के विश्वास को कमजोर कर रहे हैं। यह स्थिति इस बड़े सवाल को जन्म देती है कि क्या 2026 में BRICS देश एक स्वर्ण-समर्थित मुद्रा लॉन्च करेंगे? चीन और रूस द्वारा रिकॉर्ड सोने की खरीद इसी दिशा में स्पष्ट संकेत करती है।
सोना: क्या यह होगी अगली वैश्विक मुद्रा?
डॉलर के दबदबे को मिल रही चुनौतियों के बीच, सोना एक मजबूत और स्थिर विकल्प के रूप में उभर रहा है। कई आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले समय में सोना वैश्विक व्यापार और रिजर्व मुद्रा के रूप में अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है, खासकर यदि BRICS जैसी आर्थिक शक्तियां इसे अपनी नई मुद्रा के आधार के रूप में अपनाती हैं। यह कदम वैश्विक मुद्रा बाजार के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हो सकता है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
विशेषज्ञ अब इस बात पर विचार कर रहे हैं कि 2026 में डॉलर का भविष्य किन महत्वपूर्ण फैसलों पर टिका होगा और क्या सोना अगली वैश्विक मुद्रा के रूप में उभर सकता है। भू-राजनीतिक उथल-पुथल, व्यापारिक संबंध और विभिन्न देशों की आर्थिक नीतियां इन फैसलों पर निर्भर करेगा। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
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